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________________ पल्लू ग्राम की प्रतिमा ५६ मानवी, शार्दूलसिहों, मकरों, पूर्ण कनश तथा त्रिरत्न की युक्र कमल पुष्प व बांग हाथ में घट धारण किये है। कलापूर्ण प्राकृतियों में अलंकृत। नोग्ण के प्रत्येक स्तम्भ इन दोनों स्तम्भों के ऊपर मुग्ण्य वृत्त खण्ड पर मन्दिर में नीन श्रेणि ग में विभाजित है। मध्यवर्ती स्तम्भ में चार जमे तीन छोटे छोटे देवालय बने हैं। जिनमें श्वेताम्बर ढार देवियों विगजमान है । इन सबके दो हाथ हैं। मुद्रा सम्प्रदाय से सम्बधिन्त ध्यानम्थ अर्हन्तर्थिव बड़े हैं। जिन समान हैं। इनके वाहन व प्रायुध भिन्न भिन्न है । बांया की पहनी हुई धोती अत्यन्त स्पष्ट है। कवाणी के उपर पर बांगे पैर की पिरना पर सहा में श्री वाहन पर दोनों तरफ चार चार पुरुप खडे हैं तथा एक एक स्त्री बड़ी बैठी है । क्शपाश मंचाहा तथा आया और जुड़ा है। है। इनका एक पर स्पस्ट दिग्याई देता है, दूसरा पर जंघा दाहिने से प्रथम मुनि ।। वाहन सूर्य है. वा हाथ में छबड़ी तक है, बाकी कवाणी के पीछे की ओर है। पहला पुरुष व दायें हाथ में पपं है । दूसरी मूर्ति दाहिने हाथ में अभ्पष्ट दाएं की दो अंगुलियां दिखा रहा है, बाकी कवाणी के पीछे बाय नथा बायें हाथ में गाल ढाल मरश्य कुछ लिये है। योग ही पहला पुम्प दायें हाथ की दो अंगुलियों दिखा रहा तीसरी मूनि का वाहन वृषभ है, उसने दाहिने हाथ में गदा. है, वांया हाथ ऊंचा किये है । दूसरा ब्यक्रि हाथ की अंगुबाएं हाथ में प्रापष्ट ढक्कनदार पात्र धारण किये। नियां जमान से म्पर्श कर रहा है, तीसरे के हाथ में प्याले चतुर्थ मृति का वाहन भगा है और हाय में वज्र धारण किये जमा पांव है। चौथी स्त्री के हाथ में लम्बा दगा है। है । इन प्रतिमा कनों और बंटी म्बी प्रतिमानो के दा पांचवा पुरुष दोनों हाथों में पुष्पमाला लिये है। बाकी के हाय में नान युक्न कमल है। इसी तारण क बाई और पं. हाय मन्तक के पास है। कबाणा के बांयी पोर भी इसी मध्य भाग में सुग्वासन पर बैठी प्रथम देवी के दाय हाथ में प्रकार की मूर्तियां है। उनमें पहला पुरुष नम्बी दाढी धारण त्रिशूल तथा घट है । इसका वाहन मृग है । द्वितीय प्रतिमा किय है। कदार्थ माथ में बडग व बाएं हाथ में घट है। इनका वाहन दुसरी मरम्बनी प्रतिमा भी इससे मिलती जुलती है। मिह है । नातीय पनिमा के दाग हाय में अंकुश व बाएं हाथ यह भी संगमरमर की बनी है। राजस्थान के जिस वास्तु में चकले जपा गोल पदार्थ लिग है । इनका वाहन अस्पष्ट शिल्पी ने अपनी यह प्रादर्श माधना जनता को दी वह है। चतुर्थ प्रतिमा का बाहन मर्प है। दाहिने हाथ में नाल अपना प्रज्ञान नाम सदा के लिए अमर कर गया। सम्यग्दृष्टि का विवेक सती मीता को रामचन्द्र ने जब लोकापवाद के भय से दुबी होने हो । मेरा अशुभ कर्म उदय में पाया है उसका कृतांतवा सेनापति के साथ तीर्थ यात्रा के बहाने भीपण फल मुझे भोगना ही पड़ेगा। तुम रामचन्द्र से मेरा एक बनमें छुड़वा दिया। कृनान्तवक्त जब उस भीषण वनमें मन्दश कह देना कि जिस लोकापवाद के भय से आपने पहुंचा तो रय रोक दिया । मीता ने रथ रोकने का कारण मुझ जंगल में निर्वासित किया है। उप तरह अमरश पूछा-नब सेनापति ने अन्यन्न दुखित होकर सारा हाल सुना वहकावे में प्राकर अपने धर्म का परियाग न कर देना। दिया । और सीता को अकेली वहां छोड़ कर जब वापिस दवा मनी मीता का विवेक, माइम और दृढता । सम्यगाष्टि अयोध्या जाने लगा। तब मीता से कहने लगा माता जी जीव विपत्ति में भी अपने सन्तुलन को नहीं बोते, प्रत्युन कुछ सन्देश तो नहीं कहना है । सीता ने कहा, तुम क्यों अपने स्वरूप में मदा मावधान होने का प्रयत्न करते हैं।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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