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________________ २५२ अनेकान्त परिचित न होते अथवा कुशराज से कवि का परिचय न संरक्षण के लिये जो कुछ किया वह भारतीय वाङ्मय का कराते तब 'सावयचरिउ' के लिखे जाने का कोई प्रश्न ही एक अद्भुत अध्याय है। उनकी कृपा से साहित्य-प्रणयन न उठता। रइधू की अन्य रचनाओं में भी यही परम्परा का जो एक तूफान पाया उसी का यह फल है कि भारतीय उपलब्ध होती है कि ग्रन्थ-प्रणयन की प्रेरणा कोई अन्य जैन शास्त्र भण्डार उनसे भरे-पड़े है । शत-प्रतिशत करता है जबकि पाश्रयदाता वही अथवा अन्य दूसरा कोई भट्टारक प्रायः साहित्यकार थे, जिन्होंने विशाल साहित्य होता है। लिखा, साथ ही उन्होंने जन-जनेतर विद्वानों से भी सावयचरिउ अथवा समत्त कउमुइ के विषय में जो साहित्य-सृजन का कार्य कराया। भट्टारक यशः कीर्ति की कुछ भ्रान्त धारणाएं जगी है, उसका मूल करण यथार्थ में प्रवृत्ति हिन्दी के भारतेन्दु बाबू की भांति थी। उन्होने नागौर शास्त्र-भण्डार के अधिकारी भद्रारक एवं वहाँ की साहित्य एव साहित्यकार दोनों का ही निर्माण किया । प्रबन्ध समिति ही है। मध्यकालीन राजनैतिक, साम्प्रदायिक एक अोर साहित्य-प्रणयन का ऐसा उत्साह-भरा वातावरण एव धार्मिक उथल-पुथल के समय जन जैन साहित्य, कला था तो दूसरी ओर नागोर शास्त्र-भण्डार का द्वार साहित्यएवं सस्कृति अवनति के कगार पर खड़ी एक धक्के की जिज्ञासुमों के लिए बन्द रहता है, दोनों प्रवृत्तियों में कोई प्रतीक्षा कर रही थी। उसी समय भट्टारकों ने उनके मेल नहीं । [पृ० २४६ का शेष] द्रव्य एक क्षण मे गुण-रहित हो जाता है, तो वह रोग वस्तुओं के क्षेत्र के अनुसार भी भिन्नता होती है तथा और गेगी पर अपना प्रभाव कैसे डालेगा? अनेकता होती है। भिन्न-भिन्न देशों की प्रकृतियों का यदि सब द्रव्य एक रूप ही हैं तो एक ही औषधि से उल्लेख पायुर्वेद में प्रतिपादित है तथा उसके अनुसार रोग सन रोग दूर हो जावेगे । शेष प्रौषधियों से भी वैसा ही का निदान उपचार प्रादि यथासम्भव कर उचित है। होगा किन्तु इस विषय मे कोई एकान्त नियम नही पाया भिन्न-भिन्न कालों या ऋतुओं में भिन्न-भिन्न प्रकार के जाता है । अनेक औषधियाँ भी एक रोग को दूर करने के रोगों के कारण रोगी और उपाय पाये जाते है अत. काल निमित्त होती है तथा एक प्रौषधि भी अनेक रोगो को दूर की अपेक्षा भी द्रव्य का विचार किया जाता है। करती है, अत: प्रत्येक द्रव्य अनेकान्तात्मक तथा उत्पादव्यय-ध्रौव्य युक्त है। किस वस्तु मे कौन-सा गुण या विटामिन कितनी औषधि की मात्रामो में जो भिन्नता पाई जाती है, मात्रा में पाया जाता है तथा किसमे किस प्रकार की शक्ति वह वस्तु की शक्तियो की भिन्नता की द्योतक है। जब कम मात्रा में मौजूद है और कौन-सी अधिक मात्रा में वस्तु को स्वत. अनेकान्त रुचिकर है तो हम आईत् मत विकसित है, यह सब वस्तु को 'अनेकान्तात्मक' सिद्ध को कैसे टाल सकते है ? करती है।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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