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________________ नेमिनाह चरित २२७ कुछ भी विवरण नहीं दिया है। पं० परमानन्द जैन नेमिनाह चरिउ और चन्द्रप्रभ चरित्र दोनों के परिमाण शास्त्री ने अपने ग्रन्थ 'जन-ग्रन्थ-प्रशस्ति संग्रह' की में एक भी श्लोक का अन्तर कैसे नही पाया ? मल्लिप्रस्तावना के पृष्ठ ४१ में 'सनतकुमार चरिउ' के अतिरिक्त नाथ चरित्र का परिमाण भी १००० श्लोकों का जिन-रत्न हरिभद्र के नेमिकुमार चरिउ का अलग से उल्लेख किया कोष में बतलाया है। इस तरह उपलब्ध तीनों तीर्थङ्कर है और उसे मुद्रित लिख दिया है, पर पता नही उनके करीब २५००० श्लोक परिमित है। इससे श्री मोहनलाल 'मुद्रित' का आधार क्या है।' सनतकुमार चरिउ 'नेमि- देसाई ने अपने 'जैन साहित्य नो इतिहास' पृष्ठ २७६ में नाह चरिउ' का ही प्रश है, सम्भव है इसकी उन्हें जान- यह विचार व्यक्त किया है कि इस हिसाब से यदि २४ कारी न हो। इसलिए दोनो के नाम अलग-अलग दे दिये तीर्थङ्करों का चरित्र उन्होने लिखा हो तो उन सब का और प्रकाशित है तो सनतकुमार चरिउ पर उसके प्रागे परिमाण २ लाख श्लोक के करीव का आयेगा। चन्दप्रभ मुद्रित न लिखकर नेमिकुमार चरिउ के मागे मुद्रित शब्द और मल्लिनाथ चरित्र प्राकृत भाषा में है और नेमिनाह गलती से लिख दिया होगा या छप गया होगा। चरिउ अपम्रश मे। जिन-रत्न कोषादि मे कहीं-कहीं इसे मन् १९२६ मे प्रकाशित स्व० मोहनलाल देसाई के प्राकृत और अपभ्र श दोनों भाप का भी बतलाया है। जैन गुर्जर कवियो प्रथम भाग के प्रारम्भ मे 'जनी गुजराती प्रत. इसमे प्राकृत का कितना अश है और अपभ्रश का नो इतिहास' ३२० पृष्ठो मे दिया गया है, उसके पृष्ठ ७२ कितना अंश है यह तो पूरे ग्रन्थ को पढने पर ही निश्चयमे नेमिनाह चरिउ का सक्षिप्त विवरण देते हुए लिखा है पूर्वक कहा जा सकता है पर प्रधानतया यह अपभ्रश का कि इसे डा० जाकोबी प्रकाशित करने वाले है। इसके हा लगता है। प्रथम भाग में नेमि-राजमति के नव पूर्व भवों का विस्तृत इस महाकाव्य की रचना सवत् १२१६ कातिक १३ वर्णन है और द्वितीय भाग में तीर्थर चरित्र के माथ- को अश्विनी नक्षत्र सोमवार को हुई थी। प्राग्वाट ज्ञानीय साथ श्रीकृष्ण और पाण्डवो का चरित्र भी दिया गया है। सरस्वती वरलब्ध महामति पृथ्वीपाल की अभ्यर्थना में ग्रन्य की एक ही प्रति प्राप्त होने के कारण इस महाकाव्य यह काव्य ८०३२ श्लोकों मे रचा गया। इन सब बातो को देखने और पढने का अवसर अब तक सुलभ न हो का उल्लेख ग्रन्थ की प्रशस्ति मे दिया हुआ है। उपलब्ध मका इमीलिये श्वे० अपभ्रश साहित्य का सबसे बडा तीनो चरित्र ग्रन्थ पृथ्वीपाल के लिये ही रचे गये प्रतः काव्य होने पर भी विद्वद् जगत इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ से उसके वश की विस्तृत प्रशस्ति तीनो ग्रन्थो के अन्त मे अज्ञात-सा रहा। कवि ने दी है। जो ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत ही 'नेमिनाह चरिउ' के रचयिता बड़गच्छीय हरिभद्र महत्वपूर्ण है। चन्द्रप्रभ चरित्र की प्राकृत भाषा की प्रशस्ति सूरि बहुत बड़े कवि और विद्वान थे। 'चन्द्रप्रभ चरित्र' पाटण भण्डार सूची के पृष्ठ २५२ से २५६ में प्रकाशित के उल्लेखानुसार इन्होंने २४ तीर्थङ्करो के चरित्र बहुत हो चुकी है। नेमिनाह चरिउ की प्रशस्ति का थोडा-सा विस्तार से और सुन्दर रूप में बनाये थे१ पर खेद है अब अश जैसलमेर भण्डार सूची में छपा था पर अभी मुनि पुण्यविजय जी ने जैसलमेर भण्डार का उद्धार करते समय तो उनके रचित चन्प्रप्रभ, मल्लिनाथ और नेमिनाथ इन पूरी प्रशस्ति की नकल पूरी कर ली थी अत. इस लेख में तीन तीर्थरो के चरित्र ही प्राप्त है। इनमे से चन्द्रप्रभ प्रारम्भ के तीन पद्य तो जैमलमेर सूची से दिये जा रह चरित्र की एकमात्र ताड़-पत्रीय प्रति पाटण के जैन भडार है और अन्त की पूरी प्रशस्ति मुनि पुण्यविजय जी मे है, जो सवत् १२२३ की लिखी हुई थी। उसका ग्रन्थ सम्पादित, पर अभी तक, अप्रकाशित जैसलमेर-मूची से परिमाण में भी ८०३२ श्लोको का ही है। पता नही उद्धृत करके दी जा रही है। १. चउवीसइ जिरणपुगवसुचरियरयणाभिराम सिगारो। जैन विद्वानों ने अनेक ऐतिहासिक साधनों का निर्माण एसो विणेयदेसो जानो हरिभद्द सूरि त्ति ।। किया है, उनमें ग्रन्थ की रचना और लेखन की प्रशस्तियाँ
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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