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________________ दशर्वकालिक के चार शोष-टिप्पण ये दोनो शुद्ध है। 'हट' का अर्थ जलकुम्भी किया गया है १ । इसकी पत्तिया बहुत बड़ी कड़ी और मोटी होती है । ऊपर की सतह मोम जैसी चिकनी होती है। इसलिए पानी मे डूबने की अपेक्षा यह आसानी से तरती रहती है । जल-कुम्भी के पाठ पर्यायवाची नाम उपलब्ध है२ । ३. गन्ध - चूर्ण ( सिणाणं ) दशकालिक ६।६३ मे 'सिणाण' शब्द आया है । उसका अर्थ चूर्ण है टीकाकार ने 'स्नान' को उसके प्रसिद्ध अर्थ अग-प्रक्षालन मे ग्रहण किया है३ । वह सही नहीं है। बृद्वि मे इसको विशेष जानकारी नहीं मिलती फिर भी उससे यह स्पष्ट है कि यह कोई उद्वर्तनीय गन्ध द्रव्य है४ । उमास्वाति ने इसको प्राणेन्द्रिय का विषय बतलाया है५ । उससे भी इसका गन्ध-द्रव्य होना प्रमाणित है। मोनियर-मोनियर विलियम्स ने भी अपने सस्कृत। अग्रेजी को में इसका एक अर्थ सुगन्धित चूर्ण किया है६॥ १. सुत (सूत्रस्थान) ४५४७ पाद-टिप्पणी न० १ में उद्धृत अश का अर्थ हट जलकुम्भिका अभूमिग्नमूलस्तृणविशेषः इत्येके । २. शालिग्राम निषष्ट भूषण, पृष्ठ १२३० कुम्भिका वारिपर्णी च वारिमूली समूलिका । आकाशमूली कुतृणं, कुमुदा जनवल्कनम् ॥ ३ हारिभद्रीय टीका, पत्र २०६ 'स्नान' पूर्वोक्तम् । ४. अगस्त्य चूर्णि सिणाण सामायिगं उवण्हाण प्रथवा गन्धवट्टवो । ५. ( क ) प्रशमरति प्रकरण ४३ स्नानाडश रागवर्तिकवर्णकधूपाधिवासपटवासैः । अमितमनस्को मधुकर इव नाशमुपयाति ॥ (ख) प्रशमरति प्रकरण ४३ स्नानामंगलप्रक्षालनं चूर्णम् । Page 6. A Sanskrit English Dictionpry. 1266: Anything used in ablution (E. G. water, Perfumed Powder) ४. पद्म- केसर ( पउमनाणि ) अगस्त्य चूर्णि७ के अनुसार 'पद्मक' का अर्थ 'पद्मकेसर' अथवा कुकुम, टीकाकारद के अनुसार उसका अर्थ कुकुम और केसर तथा जिनदास चूर्णि के अनुसार कुकुम है। सर मोनियर-मोनियर विलियम्स ने भी इसका अर्थ एक विशेष सुगन्धित द्रव्य किया है१० । पद्मक का प्रयोग महाभारत मे मिलता है-तुलाधार ने जाजलि से कहा "मैंने दूसरो के द्वारा काटे गये काठ और घास फूस से यह घर तैयार किया है । प्रलयतक ( वृक्ष विशेष की छाल), पद्मक (पद्माख), तुगकाष्ठ तथा चन्दनादि गन्ध-द्रव्य एव छोटी-बडी वस्तुनो को मैं दूसरो से खरीद कर बेचता हूँ११ ।” सुश्रुत में भी इसका प्रयोग हुआ है— न्यग्रोधादि गण में कहे प्राम्र से लेकर नन्दी वृक्ष पर्यन्त वृक्ष की त्वचा, शंख, लाल चन्दन, मुलहठी, कमान, गैरिक, भजन ( सुरमा), मंजीठ, कमलनाल, पचास-इनको बारीक पीस कर दूध मे घोल कर शर्करामधु मिला कर, भली प्रकार छानकर ठण्डा करके जलन अनुभव करते रोगी को बस्ति देवे १२ । 1 अगस्त्य चूर्णि 'पउम' केसर कुकुम वा ८. हारिभद्रीय टीका, पत्र २०६ पद्मकानि च कुकुमकेसराणि । ६. जिनदास चूर्णि, पृष्ठ २३२ ७. २२५ पउम कुकुम भण्णइ । Page, 10. A Sanskrit English Dictionary. 584. Padmaka-A Particular Substance. ११. महाभारत शान्तिपर्व, श्रध्याय २६२, श्लोक ७ परिच्छिन्नः काष्ठतृणमयेद शरण कृतम् । अलक्त तुड्ग गन्धाश्चांच्यावचास्तथा ।। १२. सुश्रुत, उत्तर भाग ३६, १४८ आमूदीना त्वयं चन्दनामलकोत्पलैः ॥ गौरिकांजनमंजिष्ठानातान्यव पद्मकम् । लक्ष्णापिष्टं तु पयसा शर्करामधुसपुतम् ॥
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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