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________________ २१६ अनेकान्त राग आदि कुछ तो प्राचीनतम स्तर वाले हैं पर अधि- का मौका मिल गया । पर मगध की श्रमण-संस्कृति का कांश ग्रन्थों में मध्य युगीन आर्य भाषा के दूसरे स्तर की प्रभाव व्यर्थ नही गया । उसने अन्य संस्कृतियों से समप्रवृत्तिया-समीकरण, सरलीकरण एवं वर्ण लोप आदि न्वय कर उनके रूप निखारने में सहयोग दिया। नवीन प्रवेश कर गई है । सम्भवतः ये उन आगमो की मौखिक ब्राह्मण वर्ग को उसने देवी-देवताओं की भक्ति, उपासना, परम्परा के कारण ही काल क्रम से घुस गई है। मूर्ति पूजा एवं जीव दया आदि बातें प्रदान की और मगध में चोदह वर्ष व्यापी भिक्ष की घटना जैन वैदिक धर्म के पुनरुद्धार काल में वह शक्तिहीन एवं प्रवधर्म के इतिहास की वह भयकर घटना थी, जिसने सघ नत हो गया और कुछ अंश उनमें समा गया। भेद के साथ-साथ जैन धर्म के पैर मगध की भूमि पर इतना सब होने पर भी जैन जनता युगों-युगों में कमजोर कर दिये । वह धीरे-धीरे इस भूमि के जन मानस मगध से अपना सम्बन्ध बनाये रही । जैन कवियो ने से विस्मृत-सा होने लगा और अपने विस्तार का क्षेत्र उसे अपनी पूण्यभूमि को तीर्थ रूप में सदा स्मरण किया पश्चिम और वाराणसी मथुरा की तरफ, पूर्व मे बगाल ग का तरफ, पूर्व म बगाल है। इस बात का प्रकाश हमें नालन्दा बडगाँव के जैन दक्षिण पूर्व कलिग तथा दक्षिण भारत मे ढढने लगा। मन्दिर से पाल वशी राजा राज्यपाल के समय (१०वी पर मगध के वक्ष स्थल पर जैन इतिहास की जो मह्व- शताब्दी का पूर्वार्ध) के एक लेख से मिलता है। लेख में पूर्ण घटनाएं घटी थी, उससे वह जनो की पुण्यभूमि तो मनोरथ का पुत्र वणिक श्रीवैद्यनाथ अपनी तीर्थ-वन्दना बन चुका था। आज भी राजगृह की पच पहाडियां, नालन्दा, पावा, गुणावा और पाटलिपुत्र एक साथ जैनो के ये पांच तीर्थ स्थान इसी मगध की पुण्यभूमि है और प्राज मगध के प्रमुख स्थानों मे जैन जनता वाणिज्य इसके पडोसी प्रदेश हजारीबाग मे सम्मेदशिखर, कोलुपा के लिए बसी है । मगध के जैन सास्कृतिक केन्द्र उनकी पहाड़ तथा मानभूम जिले के अनेक ध्वंमावशेष जैन धर्म सहायता की राह देख रहे है। चारों ओर विकास की के गौरव को उद्घोषित कर रहे है । योजनाएं लागू हो रही हैं । क्या वह मगध जिसने जैन संस्कृति को जन्म क्षण से पाला पोसा है, प्राज फिर उपसंहार उसके विकास के लिए पात्र नहीं हो सकता ? तीर्थमौर्य वंश के बाद मगध पर शुङ्ग और कण्ववश का यात्रा के नाम पर जैन जनता हजारो रुपये इस भूमि पर का राज्य हा। इन वशो के नरेश ब्राह्मण धर्म के प्राकर खर्च करती है, पर जैन-संस्कृति के प्रसार सबधी अनुयायी एवं पोषक थे । इनके समय में मगध हतप्रभ आदानो से, यह प्रान्त आज भी वचित है, जो बड़े खेद था और विदेशियो को भारत मे राज्य स्थापना करने की बात है। अनेकान्त की पुरानी फाइलें अनेकान्त को कुछ पुरानी फाइले अवशिष्ट हैं जिनमें इतिहास, पुरातत्त्व, दर्शन और साहित्य के सम्बन्ध में खोजपूर्ण लेख लिखे गए है जो पठनीय तथा सग्रहणीय है। फाइलें अनेकान्त के लागन मूल्य पर दी जावेंगी, पोस्टेज खर्च अलग होगा। फाइले वर्ष ८, ९, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६ वर्षों की हैं। थोड़ी ही प्रतियां प्रवशिष्ट हैं। मंगाने की शीघ्रता करें। ___ मैनेजर 'अनेकान्त' वोरसेवामन्दिर २१ दरियागंज, दिल्ली।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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