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जैन समाज के समक्षाबलंत प्रश्न देश में परिवर्तनों की बात सोपा गयी है। जिधर सारी जिम्मेवारी सरकार पर छोड़ कर हाथ पर हाथ इष्टि जाती है, वहीं परिवर्तनों की भरमार दिखाई देती घरे नहीं बैठ सकता। ।। जन-जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जो परिवर्तनों समाज को शीघ्रता से परिवर्तित होनेवाली परिस्थिके प्रवाह से अछूता हो।
तियों और नये वातावरण के अनुकूल बनाने के लिए परि.
पूर्ण जागरुकता पौरतैयारी कोपग पग पर पावश्यकता है। स्वाधीनता लाम करने के बाद हमारी राष्ट्रीय
हमें सुनियोजित एवं योजनाबद्ध पद्धतियों में अग्रसर होना सरकार की योजनाएं और गतिविधियां भारतीय समाज
होगा। तभी हम इन परिवर्तनों का लाभ उठा सकते हैं। पौर उसको इकाइयों-सम्प्रदायों के ढांचे को तेज रफ्तार
बदली हुई परिस्थितियां और प्रबाध रूप से होने वाले से बदल रही हैं । धन सम्पदा के उत्पादन एवं वितरण
ये परिवर्तन समाज के नेतामों के लिए नया दायित्व की पुरानी प्रणालियों शीघ्र गति से परिवर्तित हो रही हैं ।
लेकर पाये है । हमे अपने लिए ही नहीं, भावी पीढ़ी के साथ ही, सामाजिक मादर्श भी तेजी से बदल रहे है और
प्रति भी अपने गुरुतर दायित्व का निर्वाह करना है जीवन के नये मूल्यों का निर्माण हो रहा है।
समाज के नेताओं, कर्णधारो,विचारकों और शुभहमारा नवजात प्रजातन्त्र समाजवादी समाज-व्यव
चिन्तकों को परिवर्तनशील स्थितियों के प्रति पूर्णरूप से स्था की पोर अग्रसर हो रहा है। दृष्टिकोण एवं जीवन
जाग्रत रहना होगा मोर इस नये उत्तरदायित्व को ग्रहण यापन के तरीकों के माथ सयुक्त परिवार का ढाँचा भी
करना होगा एव बदली हुई स्थितियों के अनुरूप समाजका बदल रहा है।
नेतृत्व तथा मार्ग दर्शन करना होगा। यह प्रतियोगिता का युग है । प्रारम्भ से ही व्यक्ति
हमारा प्रतीत जितना गौरवमय रहा हो, पाज को शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए, रोजगार के लिए,
उसकी गुण गरिमा का बखान करने मात्र से काम नही वाणिज्य व्यवसाय में सफलता के लिए प्रतियोगिता का
: चलेगा । वर्तमान स्थिति के प्रति प्राखमूद कर बैठे रहना सामना करना पड़ता है-यहा तक कि विवाह के इच्छुक समाज के प्रति खतरनाक साबित होगा। मवयुवकों पोर नवयुवतियों को भी प्रतियोगिता का
प्रश्न यह पैदा होता है कि, हम समाज को इस घोर शिकार होना पड़ता है।
प्रतियोगिता के लिए कैसे तैयार करे? इसके लिये हमें हमारे देश की वर्तमान शिक्षा एवं प्रशिक्षण पद्धति में कोई भी कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व समाज की वास्तविक मानिक प्रतियोगी विश्व की प्रावश्यकतामो को पूरा स्थिति का पता लगाना होगा । यह देख कर दिल को करने की सामथ्र्य नहीं है। इसके अलावा, पाठ्यक्रमों में ठेस लगती है कि, साधन सम्पन्नता के बावजूद भी अपने अनिवार्य सांस्कृतिक एवं सृजनात्मक कार्य-कलापों का समाज की वास्तविक स्थिति का सम्पूर्ण चित्र हमारे समाविशन होना छात्रों के व्यक्तित्व के विकास में भारी सामने नही है। इसे जानने के लिए कल्पना या प्रादाज बाधक है। पोर वर्तमान युग मे वैज्ञानिक एवं तकनीकी
से काम नही चल सकता। इसके लिए हमे माधुनिक शिक्षा के बिना जीवन में प्राधिक सफलता एवं प्रतिष्ठा वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना होगा। साख्यिक पद्धतियों प्राप्त करना बहुत ही कठिन है।
द्वारा सामाजिक सर्वेक्षण (Sociological Survey by प्रब समय मा गया है, जबकि प्रत्येक भारतीय नाग- Statistical Methods) से समाज की स्थिति का वास्तरिक, कुटुम्ब, सम्प्रदाय निरंतर अपनी योग्यता एवं विक चित्र उपलब्ध हो सकता है। सक्षमता की जांच करें कि प्रतियोगिता का वह किस स्वाधीनता की प्राप्ति के पश्चात् प्रजातान्त्रिक ढांचे प्रकार सरलतापूर्वक सामना कर सकता है। प्रतएव, जो के अन्तर्गत देश के राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक. समाजसततजागरूकनहीं रहेगा, वहमपने अस्तित्व को ही खो सास्कृतिक एव जन जीवन के अन्य विविध नेत्रों में बत गा। ऐसी परिस्थितियों में कोई प्रगतिशील सम्प्रदाय
[ष पृ० १९२ पर]
साग