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________________ प्राचीन गरगरवतावरी कल्पसून इसमें से स्वर्णाक्षरी प्रति का परिचय एक अन्य लेख में १५ पत्रांक ५१ में एक तरफ नेमिनाथ सपरिकर प्रतिमा दिया गया है. यहाँ रोप्याक्षरी प्रति का परिचय देना भी. १६ पत्रांक ५१ में चौदह स्वप्न व नेमिनाथ जन्म ष्ट है। यह प्रति जीर्ण शीणं पोर कुछ पर विहीन भी है। १७ पत्रांक ५१ में नेमिनाय का विवाह के लिए जाना यह सचित्र प्रति पत्रांक ४ से ६३ तक की सचित्र है, पशुपों काबाड़ा देख कर रथ मोडना । मादि के ३पत्र नहीं है पन्त में पE७ में कल्पमत्र समाप्त १८ पत्राक ५२ में नेमिनाथ दीक्षा की १६ पत्रांक ५४ में नेमिनाथ समवशरण होती है जो 1158३ पान गई है। इस प्रति २० पत्राक ५५ में दस तीर्थकर को दो काम मेघागरा है और चारों पोर दिये २१ पत्राक ५६ मे दम तीर्थकर गये बोर्डर (हासिये) में विभिन्न प्रकार की फर पत्तिपा २२ पाक ५८ मे ऋषभदेव जन्म इन्द्रद्वारा मानना व हंस, बा, शुकादि की पतिया चित्रित है प्रथ के २३ पाक ६७ में स्थूलभद्र स्वामी गुफा मे गो मक्षर बहुधा काले पड़ गये हैं व प्रति भी जीर्ग हो गई माय व मिह रूप धारी है। पत्रक ११, २९, ३०, ३४, ३५ ३६, ५" ५३ २४पाक मे पार हों 4.4 मावा महारा ५१, ५६, ६०, और ६३ वा शताब्दी पूरा ही काले २५ पाक ७२ मे प्राचार्य महाराज दोक्षायों को दोना प्रक्षरों से नये लिवा कर डालेगाथे प्रगले और भी हरा पत्रकनहरही है। इस के दिन सुन्दर पोर मुनहरे २६ पत्राक७ मे प्राचार्य महाराज के समक्ष चतुर्विधमत्र है। पाठको की जानकागे क लिए यहाँ कल्पसूत्र और कालकाचार्य कथा:कालकाचार्य कथा के चित्रों की सूची दी जा रही है : २७ पत्राक ८८ मे गजा-रानी (कालकाचार्य के माता१ पत्राक १२ मे हरिणेगमेषी देव पिता) २ पत्राक १३ में वीर गर्भापहार २८ पत्राक ८६ गर्दभिल्ल, सरस्वती व कालकाचार्य ३ पत्राक २१ मे मज्जन शाला में सिद्धार्थ ४ पत्राक २५ मे स्वपन फल पाठक २६ पत्रा० अश्वारोही राजा व कालकाचार्य ५पत्राक ३१ में भगवान महावीर का जन्म ३० पत्राक १२ माही (शाकी) राजा के सामने कालका६ पत्राक ३२ में इन्द्र द्वारा प्रभु का जन्माभिषेक चार्य ७ पत्रांक ३७ में महा और प्रभु की दीक्षा ३१ पत्राक ६२ मे ईट के भट्ट से कालकाचार्य बाग ८. पत्राक ३८ ए में कार दीक्षा नोवे प्रभु के कानों में स्वर्ण सिद्धि ___ कीला ठोंकना, ३२ पत्रांक ६३ मे गर्दभिल्ल का गर्दभी विद्या साधन व पत्राक३८बी में ध्यानस्य प्रभु महावीर कालकाचार्य का तौर संधान । १० पत्राक ४० मे महावीर समवशरण इस समय इस प्रति में ३२ चित्र है, जो पत्र नष्ट हो ११ पत्रांक में ४२ में केवली गौतम गणधर गए उनमें भी कतिपय चित्र अवश्य रहे होंगे। पृष्ट भूमि १२ पत्रांक ४६ में पाश्र्वनाथ माता के ऊपर १४ स्वप्न लाल व क्वचित् ब्लू रंगादि भी है। इस कल्पसूत्र की और नीचे जन्म लेखन प्राशस्ति न होने से किस संवत् में व किसके द्वारा १३ पत्रांक ४८ में पार्श्वनाथ (सप्त फक मंडित) ध्यानस्थ लिखी गई यह नहीं कहा जा सकता। पर अनुपाना. १४ पत्रांक ५० में पाश्र्वनाथ निर्माण यह पद्रहवीं शती में लिखी गई प्रतीत होती है।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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