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________________ तीन मजिल की बनवाई थी। पौर बडी भक्ति के साथ उपाधि का गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाया ३६७वे में इसकी प्रतिष्ठा की थी। उल्लेख किया है। दूसरे गोम्मटसार के कर्ता ने भावाश्रत्र --पाठवे नेमिचन्द वे हैं, जो धनंजय कवि के दिमघान के भेदों मे प्रमाद को परिगणना नही की, और प्रविनि काध्य की टीका पदकौमुदी' के कर्ता है, और विनयचन्द्र के १२ भद भी दूसरी तरह से सम्रहीत किये है १ । जबकि द्रव्यसग्रह कार ने भावाश्रव के भेदों में प्रमाद को पंडित के मन्तवासी देवन के शिष्य थे । जिन्होंने लो गिनाया है और प्रविति के पाच भेद भी स्वीकार किये क्यकीति के चरण प्रसाद से उक्त टीका की रचना की है। ऐसी स्थिति में मान्यता भेद के कारग द्रमा थी। टीका कर्ता ने टीका मे अपना कोई समय नहीं दिया के कर्ता नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती नही हो स.1, है। इस लिये इन नेमिचन्द्र का ठीक समय निश्चित करना क्योंकि एक ही ग्रन्यकार अपनी रचना में इस प्रकार का कठिन है। पदकौमुदी टीका की एक प्रति पाश्वनाथ मत-भद व्यक्त नहीं करता। मन्दिर भडार जयपुर मे सं० १५०६ को लिखी हुई ७८ जीमरे नेमिचन्द्र, जो नयनन्दि के शिष्य थे, और पत्रात्मक मौजूद है। जिसका बेठन नं. ११३ है । इससे जिनका समय कोगूर शिलालेख मे सन् १०८७ (वि.. सं० ११४४) दिया है, या वे नेमिचन्द्र जी श्रीनन्दि के नेमिचन्द्र की उत्तराबधि स. १५०६ से पूर्ववर्ती है । हो शिष्य नयन्दि के शिष्य होने के माय वसुनन्दि के गुरू सकता है कि वे १४वी या १५ वी ताब्दी के विद्वान हो। ३। दोनो में से कोई एक व्यसपह के का प्रया ह-नौवे नेमिचन्द्र वे है जो गोमम्टसार की जीवतत्वप्रदीपिका दोनों के प्रभिन्न सिद्ध हो जाने पर भी वे द्रव्यसम्र के टीका के कर्ता है, जो मूलसघ, बलात्कारगण, शारदा- कर्ता हो जो बहुत सम्भवह क्योंकि वे सिद्धान्त के पारगामी समान विचार भी थे मोर लोक मे विख्यात थे शेष नेमिचन्द्र नाम के विद्वान द्र व्यस ग्रह के रचयिता रहीं हो सकने। क्योंकि जो भट्टारक ज्ञानभूपण के शिष्य थे और प्रभाचन्द्र ने वे बाद के विद्वान ठहरते है। जिन्हे प्राचार्य पद प्रदान किया था। इनका समय ईमा की १६ वी शताब्दी का प्रथम चरण है। ___ ऊपर के इस सब विवचन पर में स्पष्ट है, कि ब्रह्म. इन सब नेमिचन्द्र नाम के विद्वानो में से प्रथम और देव का पहला नाम जयसे । नहीं था, पौरन वे बाद को हितीय मिचन्द्र तो 'द्रव्य संग्रह के कर्ता नही हो सकते। ब्रह्म देव ही बने । किन्तु ब्रह्मदेव पौर जयसेन दोनो प्रथम नेमिवन्द्र तो इसके कर्ता हैं ही नही, किन्तु कुछ भिन्न भिन्न व्यक्ति हैं । प्रागा है इससे डा० विद्याधर, विद्वान दसरे नेमिचन्द्र को द्रव्यसंग्रह का कर्ता बतलाते ओहरा पुरकर का समाधान होगा। हैं। यद्यपि उन्होने अपने को द्रव्यसंग्रह का कर्ता कही १मिच्छत अविरमण कसाय जोगाय पासवा होति । प्रकट नही किया, और न कोई ऐमा पुरातन उल्लेख ही पणवारम पणवीस परसा होति तब्भया ।। उपलब्ध हुमा है । जिसमे ननके द्वारा द्रव्यस ग्रह के रचे गो० क०५६ जाने का उल्लेख हो। फिर भी जनसाधारण में उनके २ मिच्छता विरदि-पमा-जोग-कोहादयोऽथ विष्णया। कतत्व का प्रचार है । लघुद्रव्य मंग्रह के कर्ता ने अपने पण पण पणदह निय चतु कमसी जोगा दु पुरस्म । को नेमिचन्द्र गणी, भौर बृहद्रव्य संग्रह में उन्होंने तनु द्रव्य स ३० सुत्तधरेण, पल्प तधर बतलाया है। टीकाकार ने उन्हे "सिद्धान्त देव भी बतलाया है किन्तु सिवान्त पक्रवर्ती ३मिस्मो सस्म जिणागम- जलगिहि वेलानर गधोयमणो। नहीं बतलाया। संजामो सयलजए विक्वापो मिचन्दुत्ति ॥ जब कि गोम्मरसार के कर्ता मे सिद्धान्त पक्रवती को वसुनन्दि मा. प्रशस्ति
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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