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________________ त्मिभावनोत्पन्न-मुख सुधारसपिपासितस्य भेदाभेद नक्त नेमिचन्द्र के शिष्य पंचाणचंद की मूति बनी थी। लत्रय भावनाप्रियस्य भब्यवरपुण्यरीकस्य भाण्डागा- २-दूसरे नेमिचन्द्र वे हैं, जो प्रभयनन्दी प्राचार्य के द्य ने क नियोगाधिकारि मोमाभिधान तो शिष्य थे, और जिन्होने वीर नन्दी और इन्द्र नन्दी को भी नमित्त श्री नेमिचन्द्रमिद्धान्त देवैःपूर्व षडविंशति गाथा अपना गुरू बतलाया है। ये सिद्धान्त चक्रवर्ती की उपाधि भर्लघु द्रव्यसंग्रहं कृत्वा पश्चाद्विशेषतत्वापरिज्ञानार्थ से समलंकृत थे । और गोम्मटसार लब्धिसार क्षापणामार, त्रिलोकसार के कर्ता थे । इन्होने गंगवशी राजा राचवरचितस्य बहद्-द्रव्यसंग्रहस्याधिकार शुद्धि-पूर्व कत्वेन मल्ल के मत्री और सेनापति चामुण्डराय के अनुरोध से ति. प्रारम्यते ।' - इसमें टीकाकार ने मूलग्रन्थ के निर्माणादि का सम्ब गोम्मटमार की रचना की थी। चूंकि चामुण्डराय ने 'ध बतलाते हुए, पहले नेमिचन्द्रसिदान्त देव द्वारा सोम' अपना चामुण्डगय पुराण (सठशलाका पुरुष पुराण) नाम के राज श्रेष्ठि के निमित्त प्राधम नामक नगर के शक सं० १०० (वि० सं० १०३५) में बनाया था। प्रतः इनिसुवत चैत्यालय मे २६ गाथात्मक द्रव्यसंग्रह के लघु नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती का समय भी विक्रम की प में रचे जाने, और बाद में विशेष तत्त्व परिज्ञानार्थ ११ वी शताब्दी का पूर्वार्ध है। ३-तीसरे नेमिचन्द्र नयनन्दि के शिष्य थे। जिनके उन्ही नेमिचन्द्र के द्वारा बृहद्रव्यस ग्रह की रचना हुई सम्बन्ध मे कोणर' लेख में निम्न पद्य दिया हुआ है .है, उस बृहदद्रव्यस ग्रह के अधिकारों के विभाजन मा मुनिमुख्यनशिष्यं श्रीमच्चारित्रक्रि सुजन विलासं । वक यह वृत्ति (टीका) प्रारंभ की जाती है। साथ मे भमियकिरीग्ताडित कोमलनखरश्मिनेमिचन्द्र मुनि । 'ह भी मूचित किया है कि उस समय पाश्रम नाम का इस शिलालेख का समय सन् १०८७ ई० दिया है, ह नगर धाराधिपति भोजदेव नामक कलिकाल चक्रवर्ती यह वि० सं० ११४४ अर्थात् विक्रम को १२ वी शताब्दी । सम्बन्धी श्रीपाल नामक महामण्डलेश्वर (प्रान्तीय- के विद्वान है । प्राचार्य वमुनन्दि ने भी वसुनन्दि श्रावका सक) के अधिकार में था, और सोम नाम का राज. चार की प्रशस्ति में नयनन्दि के शिष्य के रूप में अपने ष्ठि भाण्डागार (कोष) प्रादि अनेक नियोगों का अधि- गुरू नेमिचन्द्र का उल्लेख किया है२ । बहुत संभव है कि जारी होने के माथ साथ, तत्त्वज्ञानरुप सुधारस का पिपा- दोनो ही नेमिचन्द्र परस्पर अभिन्न हो। था । ब्रह्मदेव का उक्त घटना-निर्देश और लेखनशैली ४-चौथे नेमिचन्द्र वे है जो मूल संघ देशियगण पुस्तक गच्छ यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि ये सब घटनाएं उनके कोण्ड कुन्दान्वय के विद्वान नयकोति के शिष्य थे। इनका सामने घटी हैं। और नेमिचन्द्र मिद्धातदेव तथा सोम उल्लेख हलेवीड के शिलालेख में पाया जाता है, जिसका प्रेष्ठि उस समय मौजूद थे, और उनके समय मे ही लघु समय सन् ११३३ (वि० सं० ११६०) है ३ । तथा बृहत् दोनों द्रव्यसंग्रहों की रचना हुई है। ब्रह्म देव ५-पांचवें नेमिचन्द्र वे है जो एक कवि के रूप में प्रसिद्ध ने दो स्थानों पर 'पत्राह सोमाभिधानो राजश्रोष्ठि, है। और जिसने वीर वल्लाल देव और लक्ष्मणदेव इन दो क्यों के द्वारा तथा टीका गत प्रश्नोत्तर सम्बन्ध से उसकी राजारों की राजसभा में प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। और भी पुष्टि होती है। क्योंकि नामोल्लेख पूर्वक प्रश्न ६-छटवें नेमिचन्द्र वे हैं। जो प्रवचन परीक्षा के का है, बिना समक्षता के नहीं हो सकते । और जिनका समय सन् १३७५ ई० से १४२५ ई० के यहां नेमिचन्द्र के सम्बन्ध में विचार करना भी अन- मध्य बतलाया जाता है। ७-मातवें नेमिचन्द्र वे हैं जो भ० विद्यानन्द के सधर्मा पयुक्त न होगा । नेमिचन्द्र नाम के अनेक विद्वान हो गये। थे। इन्होंने पोम्बयं में पाश्र्वनाथ वस्ती (मन्दिर) है उनमें कौन से नेमिचन्द्र द्रव्य संग्रह के कर्ता हुए हैं और ..... १०५८ वर्षे चैत्र वदी २ सोमे धारागञ्ज प० नेमचन्द्र उनका समय क्या है ? यह विचारणीय है। शिष्य पचाणचन्द मूत्ति । जैन शिलालेख २ भाग पृ० १६ १-प्रथम नेमिचन्द्र वे हैं, जो पंडित नेमिचन्द्र कहलाते २-देखो जैन शिलाल० सं०भा०२ ५० ३३७ ये मोर स० ५० वर्ष में चैत्र वदी २ को धारागज में ३-देखो हम्मच शिलालेख
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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