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________________ लगने से उसका अर्थ होता है मोक्ष के प्रति तीव्र प्रभिसामायिक या समता पांचों युगल जीवन की विषमतायें लाषा । मुमुक्ष साधु ही नहीं गृहस्थ भी हो सकते हैं, हैं। उनका त्याग ही सामायिक है। साधक में सबसे पहले यदि-मुमुक्षा के भाव प्रबल हों। गाधी जी एक दिन मुमुझा वृति होनी चाहिए उसके सुप्त होने पर सब सुप्त राजेन्द्र बाबू के घर पर गर। द्वारपाल ने उनकी वेष- हो जाते हैं । मुमुक्षा वृत्ति का परिणाम है-धर्म के प्रति भषा देखकर जाने नहीं दिया । दुतकार कर वापस कर श्रद्धा या इच्छा उत्पन्न होना। बिना प्रयोजन इच्छा दिया। गजेन्द्र बाबू ने इस अपमान की स्थिति को देख जागृत नहीं होती। बन्धन से मुक्त होने की इच्छा का लिया। वे दौड़कर नीचे पाये और गांधी जी से माफी पहला साधन धर्म है । इसीलिए धर्म के प्रति श्रद्धा होती मांगने लगे। उत्तर में गाधी जी ने कहा-मान अरमान है फिर उसका प्रावरण। एक व्यक्ति क्रोध मे जल उठता मात्मा का बन्धन है, मैं तो इससे मुक्त होना चाहता। है । दूसरा क्षमा करता है। क्षमा करने वाला प्रानन्द की अनुभूति करता है । तब वह निश्चय करता है कि क्षमा " ये विचार वही उठते हैं जहां ममता का भाव माता का मार्ग सुन्दर है। है मन के अनुकूल कार्य में गर्व की अनुभूति होती है और संवेग से अनुत्तर धर्म के प्रति श्रद्धा होती है और प्रतिकल स्थिति में हीन भावना सताती है। यह वृति उससे अधिक सवेग बढ़ता है। धर्म के प्रतिश्रद्धा है या मनुष्य को बार-बार दुःखी बनाती है । निन्दा और प्रशसा नही इसका सही उत्तर प्रात्म-निरीक्षण से मिलता है। में सम रहना अति कठिन है। किन्तु मुमुक्ष को उनमें जिसके मन में श्रद्धा होती है। वह क्षुद्र व्यवहार नही सम रहना चाहिए। करता । जहाँ उसके प्रति श्रद्धा का प्रभाव होता है वहाँ लाभा लाभे, सुहे दुक्खे, जीविए मरणे तहा। सब कुछ होता है जो नहीं होना चाहिए। समो निन्दापंससासु. तहा माणावमाणयो। धर्म की वैज्ञानिकता लाभ और अलाभ, सुख और दुख जीवन और मरण धर्म वैज्ञानिक तत्व है । वैज्ञानिक तत्त्व यह होता है प्रशंसा मोर निन्दा, मान तथा अपमान, य पाच युगल जो देशकाल से अबाधित हो जिसका निष्कर्ष सब देश पक्ति में मानवीय दुर्बलता होती है। इसीलिए कार में ममान हो। प्रमरीका में प्रयोग करने से सफलता वह पांच मुगलों में से लाभ, सुख, जीवन, प्रशंसा और . र मिलती है तो भारत में भी उसका प्रयोग सफल होगा। मान को चाहता है, अलाभ, दुख मरण, निन्दा और अप निन्दा प्रार अप- एक वर्ष पहले प्रयोग में सफलता मिल जाती मान को नहीं चाहता । वास्तव में जिन पाँचों को व्यक्ति भी उसमें सफलता मिलेगी सर्वत्र और सर्वदा चाहता है वे भी बन्धन हैं और उनसे अधिक गहरे है. जो प्रयोग में एक रूप रहता है वह वैज्ञानिकतस्व होता जिनको वह नहीं चाहता। क्योंकि द्वेष और निन्दा की है। धर्म इस कसौटी में परम वैज्ञानिकतक्व है। धर्म बात समझ में प्रा जाती है, पर राग पोर प्रशसा की बात पाराधना, लंदन में भारत में या प्रमरीका में कहीं पर समझ में नहीं पाती। जब यह समझ में प्राजायेगा कि भी करो सबको प्रानन्द मिलेगा। आज कल और परसों ये भी बन्धन हैं तभी साधना सफल होगी। साधु बनने मात्र से जीवन ऊपर उठ जाएगा, यह मानना भूल कभी उसकी पाराधना करो, उसके परिणाम में कोई है। जीवन उन्नत तभी होगा जब इनकी साधना मन्तर नही पाएगा। धर्म की पाराधना करने वाले सब फल वती होगी । गृहस्थ की सामायिक मुहर्त भर तक मुक्त हो गए, वर्तमान में हो रहे हैं और भविष्य में होना होती है, साधु उसे जीवन भर के लिए स्वीकार करता इसलिए, धर्म प्रायोगिक है, कालिक है और देश का से प्रबाधित है। इसीलिए वह परम वैज्ञानिक तस्व है। सामायिक का अर्थ है-विषमता का सर्वथा परि. पाश्चात्य देशों में नए दाशिनिक यह मानने लगे कि हार लाभ और मलाभ दोनों में जीवन की विषमता है। प्रध्यात्म के बिना शान्ति नहीं मिलती। जैन मागमों में लाम पहा है तो मलाम गड्ढा। दोनों का समतल है यह उल्लेख है कि शैक्ष साधु साधुत्व में रमण करता
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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