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राजस्थानी भाषा का अध्यात्म-गीत
( कर्ता अज्ञात्)
रे मन र मिरहु चरगा जिनन्द जाह पठावहि निहवनि इद ।।टेक यहु ससार असार मुगोप्पिणु, बरु जिय धम्म दयालं ।। परजय तच्चु मुरण हि परमेट्ठिहि, सुमरहि अट्ठ गुग्गाल ॥१ जीउ अजीउ दुविह पुणु पासव, बन्ध मुणहि चउभेयं ।। संवरु निज्जरु मोखु वियागहि, पुण्यरु पाप विरगेयं ।।१ जीउ दुभेउ मुक्त संसारी मुवत सु मिद्ध वियागे। वमु गुरण जुत्त कलङ्क विवजिजय, भामिय केवलगगाणे ॥३ जे ससारि भमहिजिय सकूल, लख जोगगी चउरामी। थावर विलिदिय सयलिदिय, ते पुग्गल सहवामी ॥४ पच अजीव पढम तहि पुग्गल, धम्म अधम्मु अगास । काल अकाउ पंचकायामय, ये छह दवपयासं ॥५ पासउ दुविह दव-भावहँ, पुणु पंच पयार जिगुत्त । मिच्छाऽविरय पमाय कमायहि, जोगह जीव प्रमृत्त ॥६ चारि पयार बंध पयडिय ठिदि, तह अणुभाव पयेस । जोगा पयडि पयेस ठिदायणुभाव कसाय विसेसं ।।७ सुह परिगा।मे होइ सुहासउ, प्रसूहि अमूह वियागो। सुह परिणाम करहु हो भवियह जिम सहु होय नियारणे ।।८ संवरु करहि जीव जग मुन्दर, पासवदार-
निरोहं। अरुह मिद्ध रामु यापु वियागहु सोहं मोहं मोह ।। रिगज्जर कम्म विगगासगा कारगु, जिय जिरण वयण संभाले। बारह विह तव दसविह सजम, पंच महावय पाले ।।१० घटविहि कम्म विमुक्कु परमपउ, परमप्पय थिरु वासो। रिगच्चलु गणाग सुखद समरापुरि, समरस भाव पयासो ॥११ जाणि प्रसारहु कहो क्या करणा, पंडित मनहि विनारइ। जिण वर सासणु भव्वु पयासणु, सोहिय बुह थिर धारइ ।।१२