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________________ अनेकार १२ की रचना है। इस ग्रन्थ की ६ सन्धियों या परिच्छेद हैं । ग्रन्थ रचना के प्रेरक कुसराज के वंश का भी प्रशस्ति में अच्छा परिचय दिया है। और अन्त में ऋषि कमलकीर्ति और संधाधिप हरिसिंह साहू का उल्लेख है परमानन्दजी के प्रकाशित पाठ से प्रस्तुत प्रति के पाठ में कुछ भिन्नता है । प्रकाशित प्रशस्ति के बाद थोड़ा ही पाठ ऐसा है जो नहीं छुप सका । ग्रन्थ का परिमाण करीब १|| हजार श्लोकों का । कवि रह के संबंध में धारा के प्रो० राजाराम जैन शोध सावय-चरिय पवित्र साहेयहु, भव भय हेयहु, सुइ गई पारं दुह अवहार, जय जिरण रिमह परम सुद्द कारण जय जय अजय भवुहितारण जय संभव संभव हिरामण जय हि ंद दिय साम जय जिण सुमइ सुमइ विन्धारण जय पउमप्पह कलिमल वारण जय सुपास पोसिय परमप्पय जय चंदप्यह समिय सप्पय जय जय सुविहि सुविहि विहि भूमण अब सीयल इंडिय मुह म जय संयंस सेय मर गाव धरण जय जय वास पूज्ज कय सम मण प्रबन्ध लिख रहे हैं। रहधू १२वीं शताब्दी के महान अपभ्रशसाहित्यकार है। उनकी २४ अपक्ष शरचनाओं का पता मिल चुका | इतनी रचनायें अन्य किसी अपभ्रंश कवि की नहीं मिली। इनमें से अनुपलब्ध है जिनकी खोज की जानी चाहिये। ग्वालियर हिस्सार आदि के जैन भण्डारोंमें सम्भव है ये प्राप्त हो जाय, वहां और भी कोई अज्ञात रचना मिल जाय । अब प्रस्तुत सावय चरिउ के आदि अन्त के पथ नीचे दिये जा रहे हैं पत्ता-दे तिम्यंकर, सिवसंपयवर, वड्रमाण जिस मुह कमलह परण भडारी वासर तिल्लोय पियारी साय वाय विहिपयडण मारी मिरलावाय वाय अनहारी सब्व भास गुण उरागाइ घारी परिण सामिणि सुहयारी चउदह सय तेवरण तवोणिहि णिच्च भव्व मगु उप्पाइय दिहि कम्मैथल पज्जालण खरमिहि भोयण काल भमिय सवय गिहि पयड़िय यहु पय जयलं । भमि उवमय विहि विमलं ॥ १ ॥ - परमप्पहपमुह जि होसहि एधु जि तह प्रतीत परावत्रि पर ॥ १ ॥ जय जय विमल त्रिमल गुण मंन्दिर जय श्रांत जोवलय मंदिर जय जय धम्म धम्म भासापिय जय संतीस संति जिण सामिय जय जय कुंथु कुरणय करि केसरि जय अर चरिय मग्गु दमण करि जय मन्त्रिकार मामंडिय जय जय जय मुहिमुख्य मीला मंडिय जय रामि सुद्ध बुद्ध श्रजगमर ऐमांसर रायमई वर सिरिपास फणीस कयासण जय जय वीर पवट्टिय सासण मिच्छत्त हर जय महमेगु धुरि ति जि गोयमु ने अहि दिवि पयडिय गोयमु नाह अणुक्कम पट्ट पयामगु सिरि पुरं गमुरिदिय जिलमामगु मूलगंध उज्जोय दियरु मदरस बुहया सुरतरु मासु पट्टि रयणत्तय धारउ संजायउ सुह चंदु भढारउ पुणु उवराणु सिंहासण मंडगु मिच्छावाइ वाय-भ
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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