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________________ अनेकान् इनौ, जो इतर जन ताहिं न बांचे । तामें पातिसाहन के नित्य fare दिन कृय, अदब की रीति, वैभव, प्रताप, मनसब जागीर मafra को व्योरा इत्यादिक अनेक प्रबन्ध हते । किताब को दल विशेष हतो । १३६ से यह पता चलता है कि ये पहले बादशाह के पास रहे थे और तदनन्तर आमेर के शासक मिर्जा रामसिंह के पास चले आये थे । 1 राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान, जोधपुर के हस्तलिखित पुस्तक संग्रहालयाध्यक्ष श्री लक्ष्मीनारायण जी गोस्वामी को एक गुटका प्राप्त हुआ था जिसमें प्राचीन अनेकों ग्रन्थ लिखे ये उसमें श्री दलपतिराम के नाम से रचनाएं उपलब्ध होती हैं (1) चकत्ता पातशाही की परम्परा और (२) राजरीति निरुपणम् कवि ने अपना वर्शन करते हुए उसमें अपने आश्रयदाता महाराज रामसिंह का यशोवर्णन एवं उनके आश्रय की प्रशंसा की है। प्रारम्भ में प्रास्ताविक परिचय उपस्थित करते हुए लिखा है कि लेखक ने वह विषय बादशाह अहमदशाह के उस्ताद महफूज खां नामक व्यक्ति की व्यक्तिगत पुस्तकें पढ़कर इस चकत्ता पातशाही की परम्परा" नामक रचना का प्रणयन किया है । इसमें बादशाहों के नित्यनैमितिक दिन कृत्य अदव की रीति वैभव, प्रताप, मनमब, जागीर आदि का स्तृित विवेचन है । यह पुस्तक उर्दू मिश्रित हिन्दी भाषा में हैं उक्त गुटके में उपर्युक्त ग्रन्थों के २३ पृष्ट हैं । 2 · इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में कुछ सामान्य विवेचन है"विनय विधिवाही विनेता के लायक है। जाकी चटसाल में विनय है भक्ति मेव (1) अरु दीनता परमसेव जाणो मनुष्य कौं च्यारिकों उपकार प्रतिकार है ।१ प्रभु २ माता पिता ३ गुरु ४ खाविंद || प्रथम प्रभु जान नरदेह दई सुरदेह 1 पुनीत दुसरे मातापिता जिन धाम सीत तीसरी गुरु, जो नरतन में नर गु (ण) न दायें । चौथो खाविंद जो अन्न बलते निन प्राण हि राम्बै । I aafa को प्रतिकार न ब बिना स्वामि के उपकार । जो वे सब ही नित्त नैमित्तिक देह के अधीन अरू देह अन्न के प्रश्न स्वामि के । ग्रन्थ लेखन की 'भूमिका' लिखते हुए श्री दलपतिराय लिखते है-"अथ विवुधन की शिलन्छ तिवारी में एक दिन महफूजपा [खां] नाम अहमदशाह को उस्ताद जो मोहू पै कृपा राखत हौ, ताकी बैठक के ताक में दोय यावनी किताबघरी हती । १. अदाबस्सहल तीन २. मिफ्ताहुज्जबाबित। ए दुई पातिसाही किताबखाना में आई इसी प्रतिबन्ध एक दिन खान के दिवानखाना के ताक तँ किताब में लई वांचनि लग्यो । ते ही प्रोसर [अवसर ] खान श्रायो । मोहि यनिये को निषेध कियो मोह जो नहीं द रही और पावन गीर्वाणवन ते जो जानिये में आई मो या संक्षिप्त प्रबन्ध में लिखी हैं। जो सीखे तिन्हें काम श्राव, चतुरनि की सभा में बादर बहाव । या प्रबन्धको नाम व [द] हुल प्रादाव धरयो है-ताको अर्थ है"विनय वि" बार्की उदय अधिकार इत्यर्थः ताम नाम पारसी में तल प्रत् श्रधिकार | इत्यादि” । । उपर्युक्त अवतरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि यवनबादशाह अहमदशाह के पुस्तकालय की २ गोपनीय पुस्तकों के किचित् अध्ययन से सामग्री प्राप्त कर लेखक ने इन प्रयों का निर्माण किया है। इसके पश्चात १३ उ फारसी के पारिभाषिक शब्दों का अर्थ प्रस्तुत किया है। जैसे - [१] सिजदा को दण्डवत् । [२] तवाफकोपरिजुम्म । [३] सलाम को - कुशलपृच्छा । तसलीम की सौपियो । [५] कियाम कौ— ठाडो रहिवौ । [६] कलर की वैटियी [७] राम की शिष्टाचारइत्यादि । "चकत्ता पातशाही की परम्परा' नामक ग्रन्थ प्रथम पृष्ठ से प्रारम्भ किया जाकर पन्द्रहवे पृष्ठ तक लिखा गया है । यह पूर्ण है। इसकी भाषा पूर्व प्रदर्शित उद्धरण के समान है। अक्षरों का दुर्वाच्यता एवं लिपि के प्राचीन होने से उसका यथावत् अध्ययन कठिन है । इसके पश्चात् सोलहवे पृष्ठ से २३ वे पृष्ठ तक "राजरीति निरूपणम" नामक ग्रन्थ है । इसमें लेखक की विद्वत्ता का आभास अत्यन्त शीघ्ररूप में हो जाता है । सर्व प्रथम - ग्रहल खिदमत के नाम" शीर्षक के अन्तर्गत संस्कृत के शब्दों का प्रचलित उद् मिति भाषा में प्रयुक्त होने वाले शब्दों के पर्यायवाची रूप में उल्लेख है । यथा
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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