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________________ 'तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य ' इसी प्रकार अनेक मुहावरे और लोकोक्तियों उद्धत की जाती है। संस्कृत साहित्य तो बहुत विशाल है उसकी बात तो मैं नहीं करता, किन्तु उसके जितने अंश से मेरा परिचय है उसमें कहीं भी मुझे एले जीवित, मुहावरे दार भाषा के दर्शन नही हुए जैसी 'अभयकुमार चरित' में पाई जाती है। 1 धन्य शेष महाकाव्यों में पौराणिक और रोमन्टिक दोनों शैलियां मिलत हैं । विनयचन्द्रसूरि कृत 'मल्लिनाथ चरित' वर्धमानमूरि-कृत 'वासुपूज्यचरित' भावदेवसूरि कृत 'पार्श्वनाथ चरित', मानुतु गसूरि कृत 'श्र यांसनाथचरित' श्रमचद्रसूरि कृत 'पद्मानन्द महाकाव्य' कमलप्रभ कृत 'पुण्डरीक चरित' आदि सभा चरित काव्य है जिन्हें पौरा शिक-रोमन्टिक महाकाव्य कहना अधिक उपयुक्त है । इन महाकाव्यों के अतिरिक्त शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, यशोधर, मन कुमार, नेमिनाथ, संभवनाथ, मुनिसुव्रत, चद्रप्रभ, कुमार, शालिभद्र आदि के चरित्रों को लेकर अनेक महाकाव्य लिखे गये, जिनका उल्लेख ऊपर तालिका में किया जा चुका है | सामान्य कर से इनमें महाकाव्य क सभा लक्षणों का समावेश मिलता है किन्तु इनमें भाषा-शैली की उदारता और चमत्कार प्रियता अपेक्षाकृत कम है। इन पौरा शिक- रोमेस्टिक चरित काव्यों का मूल उद्देश्य तीर्थकरों के चरित्र का गान करना और धर्मभावना का प्रसार करना है माणिक्यदेवसूरि कृत 'यशोधरचरित' की रचना नवरात्रों में पाठ करने के लिए की गई है। इसका पाठ करने से पुत्र की उत्पत्ति होती है जाने इन शब्दों में कहा है- 1 ईद जातिस्मृतिकरं पटयंत नवरात्रेषु प्रयतैः परम्। पुत्र काम्यया ॥ मर्ग १, श्लोक ७. कभी-कभी इन पौराणिक रोमेन्टिक महाकाव्यों के रचयिताओं में भी अपने विविध ज्ञान को प्रदर्शित करने की इच्छा जाग पडी है और उन्होंने कथा प्रवाह की चिन्ता किये बिना ही अपना पाण्डित्य प्रदर्शन किया है। भावदेव सूरि-कृत पार्श्वनाथ चरित' के सप्तम सर्ग में कवि ने अपने वैद्यक ज्ञान का विस्तृत परिचय दिया है। इसी सगं में, लगभग ४० श्लोकों में मादिक ज्ञान का परिचय भी दिया गया है। ११३ द्वितीय सर्ग में कवि एक ज्योतिषी की भांति स्वप्नों के फन का विस्तृत वर्णन करने में लग गया है। इसी सर्ग में श्रागे शकुन और अपशकुनों की विस्तृत सूची प्रस्तुत की गई है। 'मल्लिनाथ चरित' में विनयचन्द्र सूरि का दार्शनिक ज्ञान मुखरित हो उठा है और उन्होंने सप्ततस्त्रों के निरूपण, सम्यकत्व और पञ्चावत सन्बन्धी विस्तृत विवरण दिये हैं। इनके अतिरिक्त अपने ज्योतिष ज्ञान का परिचय देते हुए उन्होंने 'होराज्ञान तत्वार्थ', 'मी प्रवर्धक लग्न' यदि के लम्बे, उबा देने वाले विवरण प्रस्तुत किये हैं । कमलप्रभ-कृत 'पुण्डरीक चरित' में प्राकृत के शास्त्रीय व तरणों को स्थल-स्थल पर उत त किया गया है और बांचबीच में 'वाद', 'समय', 'नस्य' किवटुना तथा रोक उवाच' आदि का प्रयोग है। विनयचन्द्र कृत 'मुनिसुमन चरित' के छटे मर्ग में मृतिशास्त्र के विधान का है जिससे कवि की शिवशास्त्र बन्दी विद्वत्ता प्रकट होती है। इस काव्य में दो एक जगह गद्य का भी प्रयोग है (देखिए सर्ग ७, श्लोक २८६ के बाद) । कहने का आशय यह है कि इन पौराणिक रोमेन्टिक महाकाव्यों में भी कवियों ने अपने विविध ज्ञान का परिचय दिया है, किन्तु कतिपय अपवादों को छोड़कर, उनकी भाषा सरहा रही है और मुहावरों का प्रयोग भी किया गया है । इन काव्यों में जिनोपत्ति, समवसरण, देशना, निर्वाण आदि के विस्तृत वर्णन मिलते हैं। अन्य धर्मावलम्बियों और जैन विद्वानों के शास्त्रार्थ का भी वर्णन हुआ है। यहाँ उनका उद्देश्य अन्य धर्मों पर जनधर्म की विजय दिखाना और जनधर्म का मित्र करना रहा है। इन पौराणिक - रोमेन्टिक महाकाव्यों में अनेक भ्राश्चर्यजनक कार्यों का और प्रति प्राकृत तत्वों का वर्णन है। इनका कथानक भी अपेक्षाकृत जटिल और असन्तुलित है, क्योंकि बीच-बीच में अनेक अवान्तर श्री प्रासङ्गिक कथाएँ, थाती रहती है। इनमें भूत-प्रेतों का आगमन, जादू-टोना, तन्त्र-मंत्र, पशु-पक्षियों की बातें, शाप, वरदान शकुन श्रशकुन आदि में विश्वास आदि अलौकिक और अप्राकृत बातों का वर्णन है, किन्तु इनका कथानक पूर्णतया पौराणिक है और इनका उद्देश्य महत है तथा इन सभी का पर्यवपान वैराग्य और शान्त रस में हुआ है।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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