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________________ ५४ अनेकान्त वर्ष १५ दीक्षादाने सुदक्षोवगतगुरुलघु शिख्यया क्षेत्रनाथं, ? [ तत्पट्ट मुच्चमुदयाद्रिमिवानुभानुः, ध्यायन्नश्रांतशिष्टं चरितसहृदयो मुक्तिमार्गे समागें। . थीभानुकीतिरिह भाति हतांधकारः । यो लोभ-क्रोध-माया-जलदविलयने मारुतो माथुरेशः, उद्योतयन्निखिलसूक्ष्मपदार्थसार्थान्, काष्ठासंघे गरिष्ठो जयति स मलयाद्यस्ततः कीतिसूरिः ॥ भट्टारको भुवनपालकपनबन्धुः ॥३८॥ तत्पट्टमब्धिमभिवर्द्धनहेतुरिन्दुः, गुणगणमणिभूषो वीतकामादिदोष, सौम्यः सदोदयमयो' लसदंशुजाल. । कृतजिनमततोषस्तत्पदे शांतवेषः । ब्रह्मव्रताचरणनिजितमारसेनो, धृतचरणविशेषः सत्यघोषो विरोषो, भट्टारको विजयतेऽथ कुमारसेनः ।।३९॥ ] जयति च गुणभद्रः सूरिरानन्दभूरिः ॥३६॥ ये नित्यं व्रतमन्त्रहोमनिरता ध्यानाग्निहोत्राकुलाः षट्कर्माभिरतास्तपोधनधनाः साधुक्रिया साधव । यो जानाति सुशब्दशास्त्रमनघं, काव्यानि तर्कादिक, शीलप्रावरणा गुणप्रहरणाश्चंद्रार्कतेजोधिकाः, सालंकारगुणर्युतानि नियतं जानाति छन्दांसि च । मोक्षद्वारकपाट-पाटन भटाः प्रीगंतु मां साधव; ॥४०॥ यो विज्ञानयुतो दयाशमगुगर्भातीह नित्योदयः, [] बड़े ब्रेकट वाले पद्य पांडे राजमल के जंवूस्वाजीयाच्छीगुणभद्रसूरिपदगः श्रीभानुकीर्तिर्गुरुः ॥३७॥ मिचरित की पीठिका से उद्धृत ग्येि गए हैं। पद राग विलावल चेतन अपनी रूप निहारो ___ नहिं गोरो नहिं कारो॥ टेक ।। दरसन ग्यान मई चिन्मूरति । ___ सकल करम ते न्यारौ ॥१॥ जाकी विन पहिचान जगत मैं सह्यो महादुख भारौ। जाके लखे उदै हूं ततखिन ___ केवल पान उजारौ ॥ २ ॥ करम जनित परजाय पाय तुम कीनौं तहाँ पसारी। मापा-परसरूप न पिछानी ताते भी उरभारी ॥३॥ प्रब निज में निज को अवलोकी ज्यों कै सब सुरझारौ। 'जगतराम' सब विधि सुखसागर पद पावौ अविकारी ॥४॥
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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