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________________ ६४ पर्व १५ सुख पौर परम मानन्द ही है । मुनि मानन्द तिलक ने कि परमानन्द रूपी सरोवर में जो मुनि प्रवेश करते हैं, वे भी-'प्रणणिरंज गु परम सिउप्पा प्रपा परमा गदु' लिख- अमृत रूपी महारस को पीने में समर्थ हो पाते हैं, किन्तु कर प्रात्मा को 'निरजन' और शिव कहते हुए 'परमानन्द' गुरु के प्रदेश से' । मुनि रामसिंह ने ब्रह्मको अमर कहकर भी कहा ।' अर्थात प्रात्मा परमानन्द रूप है। उसे अपनाने का प्राग्रह किया है। अर्थात् उसके प्रमतरूप की कबीरदास ने परमात्मा के मिलन को प्रमत का धारा- महिमा गायी है। योगीन्दु ने अमृत सरोवर को एक सार बरसना कहा है। जिस प्रकार अमृत अमरत्व प्रदान दृष्टान्त के द्वारा प्रकट किया है। उन्होंने लिखा हैकरता है, इसी प्रकार मिलन की यह वर्षा जीवको परम ज्ञानिया क निमल मन म अनादि देव इसी प्रकार निवास पद देती है। इस अमत का ज्ञान गरु से प्राप्त होता है। कर रहा है, जैसे सरोवर में हरा लीन रहता है। सभी कछ कबीर इसके पारखी हैं। उन्होंने इस अमत को छक कर अनादि है हंस भी और सरोपर भी परमात्मप्रकाश में माती पर स्थित ब्रह्म का अजरामर विशेपण तो एकाधिक बार प्रयुक्त हुमा सुधा-सरोवर का उल्लेख किया है। उसमें स्नान करने से है। हृदय रूपो सरोवर में हंस के विचरण करने की बात दुख दूर हो जाते हैं, परम प्रानन्द उपलब्ध होता है। इस तो महचन्द ने भी लिखी है। सरोवर को गुरुदेव दिखाता है, किन्तु वह ही देख सकता मध्यकालीन.संत कवियों ने अपने ब्रह्म को सभी पौरा. है, जिसका उममें दिन लगा है। इस मुधा-सान और णिक देवों के नाम से पुकारा है। किन्तु उनका अर्थ मुधा-पान की महिमा कवि बनारसीदाम को भी विदित पुराण-सम्मत नहीं था। कबीर का राम निरजन है। वह थी। कवि प्रानन्दमूरि ने भी अमृत का प्राचमन किया था। निरञ्जन जिसका हम नहीं, प्राकार नहीं, जो समुद्र नहीं, जिस अमृत के प्रानन्द की बात हिन्दी के जैन और अजन पर्वत नही, धरती नहीं, पाकाश नहीं, सूर्य नही, चन्द्र नहीं, कवियो में इतनी प्रसिद्ध है, उसका पूर्ण स्वाद प्राभ्रंश-कवि पानी नहीं, पवन नहीं-प्रर्थात् सभी दृश्यमान पदार्थों से ले चुके थे। मुनि प्रानन्दतिलक ने लिखा है कि ध्यान विलक्षण । उनका विष्णु वह है जो संसार रूप में विस्तत रूपी-सरोवर में प्रत रूपी जल भरा है, जिसमें मुनिवर है, उनका गोबिन्द वह है जिसने ब्रह्माण्ड को धारण किया स्नान करते हैं और मटकों को धोकर निर्वाण में जा है, उनका खुदा वह है जो दम दरवाजों को खोन देता है. पहुँचते है । इन्हीं मुनि ने एक दूसरे स्थान पर लिखा है करीम वह है, जो इतना सब कर देता है, गोरख वह है जो ज्ञान से गम्य है, महादेव वह है जो मन को मानता है, १. देखिए पामेरशास्त्र भण्डार, जयपुर को 'पाणंदा' की हस्तलिखित प्रति दूसरा दोहा। सिद्ध वह है जो इस चराचर दृश्यमान जगत का साधक है, २. अमृत बरिसै हीरा निपजे, ५. परमाणंद सरोवरहं जे मुणि करइ प्रवेग । घटा पड़ टकसाल । अमिय महारसु जइ पिवइ प्रागंदा गुरु स्वामि उपदेनु॥ कबीर जुलाहा भया पार, देखिए वही, २६ वाँ पद्य । अनर्भ उतरघा पार।। कबीर-वाणी कबीरदास, डा. द्विवेदी, पृ० २६० ६. देह हो पिक्विवि जरमरणु मा भउ जीव करेहि । जो अजरामरु बंभु परु सो अप्पाण मुगेहि ।। ३. सुधा सरोवर है या घट में, जिसमें सब दुख जाय । विनय कहे गुरुदेव दिखावे, जो लाऊँ दिल ठाय ।। __ पाहुइ-दोहा, ३३ वाँ दोहा, पृ० १० प्यारे काहे कं ललचाय ॥ ७. णिय-मणि णिम्मलि णाणियह णिवसइदेउ अणाइ । देखिए पदसंग्रह, बड़ौत शास्त्र भण्डार की हस्तलिखित हंसा सरवरि लीणु जिम महु एहउ पडिहाइ॥ प्रति, पृ०१७ परमात्मप्रकाश, १/१२२, पृ० १२३ झाण सरोवर अमिय जलु मणिवरु करइ सोहागु । प्राकम्म मल धोहि पाणंदा रे !णियहा पांह णि-वाण। ८. महचन्द, दोहापाड, ग्रामेर शास्त्र भण्डार की हस्तदेखिए भामेर शास्त्रभण्डार की हस्तलिखित लिखित प्रति, ३२० वां पद्य । प्रति, पांचवां पद्य। ६. कबीर ग्रंथावली, २१६ वा पद ।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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