SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त वर्ष १५ सावयधम्म दोहा के रचयिता को लेकर दो भिन्न मत वैराग्यसार के रचयिता सुप्रभाचार्य हैं। कई दोहों हैं । डा० ए० एन० उपाध्ये इसे लक्ष्मीचन्द की रचना बत- में उनका नाम पाया है। यह काव्य सबसे पहले डा. लाते हैं और डा० हीरालाल जैन देवसेन की। इस समय वेलणकर द्वारा सम्पादित होकर 'एनल्स पॉव भण्डारकर देवसेन वाला मत ही प्रचलित है। डा. हीरालाल का मोरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट' में प्रकाशित हुआ था। सबसे बड़ा तर्क यह है कि सावयत्र मदोहा देवसेन के भाव- संस्कृत टीका के साथ जैन सिद्धान्त भारकर, भाग १६, संग्रह' से बिल्कुल मिलता जुलता है। भाषा, शैली और किरण २, दिसम्बर १:४६ में भी छा चुका है। कवि ने भावधारा के साम्य पर रचयिताओं की सही पहचान होती संसार की क्रूरता और व्यर्थता दिखाकर जीव को प्रात्मरही है। देवसेन मालवा प्रान्त की धारा नगरी के निवासी दर्शन की पोर उन्मुख किया है। इस काव्य में धन की थे। उन्होंने वहाँ पर ही सन् ६३३ ई० में सावयधम्म सार्थकता जिनेन्द्र की भक्ति में स्वीकार की गई है। काव्य दोहा का निर्माण किया था। अब यह 'दोहक' डा. हीरा- में सरसता और पाकर्षण की कमी नहीं है। लाल जैन के सम्पादन में कारंजा से प्रकाशित हो चुका है। मुनि रामसिंह के दोहापाहुड़ के अतिरिक्त एक और इसका दूसरा नाम श्रावकाचार दोहक भी है। इसमें श्रावक दोहा-पाहुड़ उपलब्ध हुअा है। उसकी हस्तलिखित प्रति धर्म का वर्णन होने पर भी कवि की उन्मुक्तता स्पष्ट है। मामेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में मौजूद है। उसमे ३३३ दोहे हैं। इसके रचयिता कोई महचन्द्र नाम के कवि दोहा-पाहुइ मध्यकालीन संत काव्य की एक शक्ति हैं। यह स्पष्ट है कि ये महीचन्द्र नाम के तीनो जैन शाली कृति है। इसके रचयिता मुनि रामसिंह के विषय में भट्टारकों से पृथक हैं। उन्होंने एक स्थान पर 'जोइंदु' का केवल इतना विदित है कि वे राजस्थान के निवासी थे। स्मरण किया है। उनका काव्य परमात्मप्रकाश से डा० रामकुमार वर्मा ने उनका समय वि० सं० ६६० से प्रभावित है। उसमें परमात्मप्रकाश की भाँति ही 'निष्कल ११५७ के मध्य निर्धारित किया है । डा. हीरालाल जैन ब्रह्म' के ध्यान से अनन्तसुख की प्राप्ति की बात कही गई उन्हें सन् १००० के लगभग मानते हैं। इस ग्रन्थ में है। उसकी अन्य प्रवृत्तियाँ भी परमात्मप्रकाश से हूबहू केवल २२२ दोहे हैं। डा. हीरालाल जैन के सम्पादन मिलती-जुलती हैं। यह भी र स्यवाद' का उत्तम और विद्वत्तापूर्ण भूमिका के साथ यह अथ भी कारंजा से निदर्शन है। प्रकाशित हो चुका है। इस ग्रन्थ में एक पोर प्रात्मसाक्षात्कार के बिना बाह्य पाडम्बर नितांत हेय और व्यर्थ महात्मा मानन्दतिलक ने 'पाणंदा' नाम की एक बताये गये हैं, तो दूसरी ओर जीवन को परमात्मा से प्रेम मुक्तक रचना का निर्माण किया था। उसकी हस्तलिखित पुन करने की बात कही गई है। वहाँ आत्मा और परमात्मा प्रति भामेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में मौजूद है। इसके के तादात्म्य से उत्पन्न हुए समरसीभाव के अनुपम चित्र रचना-कान पर मतभेद है, किन्तु भाषा की दृष्टि से वह पाये जाते हैं । दोहा-पाहुड़ एक रहस्यवादी कृति है । हिन्दी चौदहवीं शताब्दी की प्रतीत होती है। इतना निश्चित है के भक्तिकालीन रहस्यवाद पर उसका स्पष्ट प्रभाव परि कि उसका निर्माण कबीर आदि निर्गुनिए सन्तों से पूर्व लक्षित होता है। हुमा था। इसमें ४४ पद्य हैं। यह रचना आध्यात्मिक भक्ति का सरस उदाहरण है। इसमें 'म-पाको चिदानन्दु, १. यह ग्रन्थ माणिकचन्द-दिगम्बर जैन ग्रंथमालासे श्री सोनी जी के सम्पादन में, विक्रमाब्द १९७८ में णिरंजणु, परमसिउ आदि विशेषणों से युक्त किया गया प्रकाशित हो चुका है। है। इसमें लिखा है कि साधु जन तीर्थों में भ्रमण न करके २.देखिए 'हिन्दी साहित्य का मालोचनात्मकता कुदेवा को न पूज कर अपने हृदय में भरे प्रमत-सरोवर में डा० रामकुमार वर्मा, पृ० ३। __ स्नान करें और हृदय में ही विराजमान परमात्मा की ३. पाहुडदोहा, भूमिका-डा. हीरालाल जैन उपासना करें, उन्हें परमानन्द मिलेगा। सद्गुरु की महिमा लिखित पृ० ३३। का स्थान स्थान पर वर्णन किया गया है।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy