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________________ अनेकान्त वर्ष १५ होने से यह वाराणसी कही जाती है। यह गंगा के तट ४८. श्रावस्ती-श्रावस्ती कुणाल या उत्तर कोशल पर है। देश की मुख्य नगरी थी जो अचिरावती (राप्ती) नदी के ४१. विलासपुर'-यह विद्याधर नगर है । हरिभद्र ने किनारे अवस्थित थी । जैन और बौद्ध साहित्य में श्रावस्ती इसकी स्थिति विजया में मानी है। पर यथार्य में का बहुत विस्तृत वर्णन है। श्रावस्ती में चार दरवाजे थे, इसकी स्थिति मालवा और गुजरात के मध्य में होनी जो उतरद्वार, पूर्वद्वार, दक्षिणद्वार तथा केवट्टद्वार के नाम चाहिए। मध्य प्रदेश का प्रसिद्ध विलासपुर भी संभवतः से पुकारे जाते थे। थावस्ती में पार्श्वनाथ के अनुयायी हरिभद्र द्वारा उल्लिखित विलासपुर हो सकता है। केशी मुनि तथा महावीर के अनुयायी गोतम स्वामी के ४२. विशाखबर्द्धन'-कादम्बरी पटवी में विशाख- महत्वपूर्ण संवाद होने का उल्लेख जैन ग्रन्थों में माता है। वर्द्धन नगर की स्थिति बतलाई गई है। बिहार में प्राधु- आजकल श्रावस्ती के चारों ओर घना जंगल है। यह गोंडा निक भागलपुर और मुंगेर के बीच इमकी स्थिति होनी जिलान्तर्गत सहेट-महेट स्थान है। चाहिए। ४६. श्रीपुर'-विविधतीर्थकल्प के अनुसार श्रीपुर में ४३. विशाला--प्रवन्तिदेश की प्रधान नगरी अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की गई है । श्रीपुर का नाम है। का निर्माण माली-सुमालि ने किया है। ४४. बराटनगर-यह मत्स्य प्रदेश की राजधानी ५०. साकेत-पायोध्या का दूसरा नाम साकेत है। था। महाभारत में इसकी चर्चा पायी है, यहाँ पांडवों ने ५१. सुशर्मनगर-इस नगर की स्थिति गुजरात में गुप्तवास किरा था। ग्राधुनिक धौलपुर, भरतपुर और कही होनी चाहिए। जयपुर का सम्मिलित भूभाग वैराट देश कहलाता था और ५२. हस्तिनापुर -यह नगर कुरुदेश की राजधानी वैराटनगर सम..वतः भरतपुर रहा होगा। था। यह जैनों का पवित्र तीर्थ माना जाता है। किंवदन्ती ४५. शंखपुर... हरिभद्र ने उत्तरापथ में इस नगर है कि इसे हास्तिन नाम के राजा ने बसाया था। यह वर्तकी अवस्थिति मानी है। विविध तीर्थ कल्प में बताया है कि मान में गंगा यमुना के दक्षिण तट पर मेरठ से २२ मील राजगह से जरासन्ध की सेना और द्वारिकावती से श्री दूर उतर-पश्चिम कोण में और दिल्ली से ५६ मील दक्षिणकृष्ण की सेना युद्ध के लिए चली। मार्ग में जहां ये दोनो पूर्व खण्डहरों के रूप में वर्तमान है। सेनायें मिनीं, वहा परिष्टनेमि ने शंखध्वनि की और शंख- ५३. क्षितिप्रतिष्ठित'-यह राजगृह का दूसरा नाम पुर नाम का नगर बसाया। है । जैन साहित्य में राजगृह को क्षितिप्रति प्ठत, चणकपुर, ४६. शंखवद्धन-हरिभद्र के अनुसार भरतक्षेत्र में ऋषभपुर तथा कुशाग्रपुर नाम से भी अभिहित किया गया शखबर्द्धन नगर की स्थिति है। इस नगर की सौराष्ट्र में है। जैन साहित्य के अनुसार राजगह में गुणसिन, मंडिअवस्थिति रही होगी। कुच्छ, मोग्गरपाणि आदि अनेक चैत्यगदिर थे। गुणसिल चैत्य में भगवन् महावीर अनेक बार पाकर ठहरे थे। ४९. श्वेतविका-यह केकया देश की प्राचीन पहाड़ियों में घिरे रहने के कारण यह नगर गिरिवज के नाम राजधानी है। यह श्रावस्ती के उत्तरपूर्व में नेपाल की तराई से भी प्रख्यात था। राजगृह व्यापार का बड़ा केन्द्र था। में अवस्थित था। श्वेतविका से गंगा नदी पार कर महा- यहाँ से नमशिला, प्रतिष्ठान, कपिलवस्तु, कुसीनारा ग्रादि वीर सुरभिपुर पहुँचे थे। बौद्ध ग्रंथों में श्वेतविका को भारत के प्रसिद्ध नगरो को जाने के मार्ग बने हुए थे। विविधतीर्थकल्प में राजगह में छत्तीस हजार घरों के होने सेतव्या कहा गया है। का उल्लेख है। वर्तमान में राजगृह पटना जिले का राज१. सम. पृ० ४१२५. वही, पृ० ७३७ गिर ही है। २. वही, पृ० ६७३६ . वही पृ० ६७३ ८. वही, पृ० २८३ ३. वही, पृ० २३४ ३. वही पृ०२८६% ३१२ ७. वही, पृ०३६५-३६६ १. सम० पु०६९८-३६६ ४. वही, पृ०१२७; १७५ ४. वही, पृ० २८५ २. वही, पृ० ३३६ ५. वही, पृ० ६७१,६
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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