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________________ हरिभद्र द्वारा उल्लिखित नगर लेखक-डा० नेमिचन्द जैन जैन साहित्य में ग्राम, नगर, खेट, कवंड, मडम्ब, पट्टण, तट से वेष्टित को संवाहन और पर्वत पर रहने वाले ग्राम द्रोण सवाहन और दुर्गाटवी का उल्लेख पाता है। जिस को दुर्गाटवी कहते है । हरिभद्र ने अपनी "समराइच्चकहा" गांव के चारों ओर दीवालें रहती है वह ग्राम कहलाता है। नामक रचना में ग्राम', नगर, पट्टण, गार', जिसके चारों ओर दीवालें हों तथा जो चार दरवाजों से मडम्ब' और ड्रोण' का उल्लेख किया है। भी युक्त हो वह गांव नगर कहलाता है। नदी पोर पवतो हरिभद्र ने बताया कि नगर बहुत सुन्दर होता था। से वेप्टित रहने वाले ईव को मडम्ब; जहां रत्न उत्पन्न उसके चारों ओर प्राकार रहता था। परिग्या भी नगर के होते है उसे पट्टण; नदी वेष्टित ग्राम को द्रोण; उप-समुद्र चारों ओर रहती थी। नगर में प्रधान चार द्वार रहते थे, जिनमे कपाट लगे रहते थे। यातायात के लिए नगर में इन्द्रनन्दि श्रुतावतार के श्लोक १३२ में जो 'दृष्ट्वा ' सड़कें होती थी। त्रिक, चतुष्क' और चत्वर नगर के पद है, उसका अर्थ 'देखकर' करना गलत है । उसका अर्थ मार्गों की संज्ञाएँ पाती है । जहां तीन राड़ो मिलती हों, 'मिलकर' करना चाहिए। उसे त्रिक; चार सड़के मिलती हो, उसे चतुक और जहां (३) गुणभद्रकृत उत्तरपुराण, पर्व ६२ श्लोक १२८ चार से भी अधिक रास्ते हों, उसे चत्वर कहते थे। जहां "नापूर्वो नः स पश्यताम्" का अर्थ ज्ञानपीठ प्रकाशन पृ० बहुत मे मनुष्यों का यातायात हो वह महापथ और १४६ में इस प्रकार किया है सामान्य मार्ग को पथ कहा जाता था। हरिभद्र ने उत्सवों "हमारे लिये यह अपूर्व प्रादमी नही, जिसमेकि देखागावे"। के अवसर पर नगर को सजाने और उसके मार्गो गे समीक्षा- यहाँ 'पश्यतां' का अर्थ जो देखा जाव' मुगन्धित पुष्प या सुगन्धित चूर्ग विकीर्गा करने का उल्लेख किया है, वह ठीक नहीं है, उसकी जगह 'मिला जावे' करना किया है। नगर के बाजारो को सीधी एक रेमा में बनाया समुचित होगा। जाता था। नगर में तालाब बनाने की भी प्रथा थी। इसी तरह आगे श्लोक १३०-"नाहमेष्यामि तं दृष्टु प्राचार्य हरिभद्र ने निम्नलिखित नगरों का अपनी मिति प्रत्यब्रवीदसौ" का अर्थ इस प्रकार किया है उक्त रचना में उल्लेख किया है जिनका मंक्षिप्त विवेचन "त्रिपष्ट ने कहा कि-मै उसे देखने के लिए नहीजाऊँगा।" यहां किया जाता है। समीक्षा यहाँ भी 'द्रष्टुम्' का अर्थ 'देखने के लिए', १. दहा पृ० ११८ किया गया है किन्तु वह ठीक नहीं है। 'मिलने के लिए' २. सम० के प्रत्येक भव में अर्थ होना चाहिए। ३. सम० पृ० २७ इस तरह उपर्युक्त प्रकरणों में दर्शनार्थक क्रियाओं का ४. सम० पृ० २७ 'मिलना' अर्थ करना ही सुसंगत है। ५. मम० पृ० २७ दर्शनार्थक धातुपों का 'देखना अर्थ शाब्दिक है और ६. सम० पृ० २७ 'मिलना' अर्थ भावात्मक है, जहाँ जैसा संगत हो वैसा ही ७. सम० पृ. ६, ३२६ अर्थ करना चाहिए तभी वह फबता है और ठीक अभि- ८. वही व्यक्ति होती है। ६. वही
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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