SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रोम अहम अनकान्त परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धविधानम् । सकलनय विलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।। वर्य १५ वीर-सेवा-मन्दिर, २१, दरियागंज, देहली-६ किरण, २ ) ज्येष्ठ शुक्ला १२, वीर निर्धारण सं० २४८८, विक्रम सं० २०१६ । सन् १९६२ वर्धमान-जिन-स्तुतिः प्रज्ञा सा स्मरतीति या तव शिरस्तद्यन्नतं ते पदे, जन्मादः सफलं परं भवभिदी यत्राश्रिते ते पदे । मांगल्यं च स यो रतस्तव मते गी: सेव या त्वा स्तुते, ते जा ये प्रगता जनाः क्रमयुगे देवाधिदेवाय ते । -स्वामी समन्तभद्राचार्य अर्थ-डे देवाधिदेव ! वृद्धि वही है जो कि अापको स्मरण करे-आपका ध्यान करे, मरतक वही है जो कि आपके चरणो में गत रहे-झुका रहे, जन्म वही सफल और श्रेष्ठ है, जिसमे ससार परिभ्रमण को नाट करने वाले आपके चरणों का आश्रय लिया गया हो, पवित्र वही है जो कि आपके मत मे अनुरक्त हो, वागी वही है जो कि आपकी म्नति गरे और बुद्धिमान पण्डितजन वे ही है जो कि अापके दोनों चरणों में नत रहें।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy