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कुछ अप्रकाशित जन कथा ग्रंथ
यह भव पाज तो कल्पना लोक जैसी बातें लगती हैं इतने ३६वें सर्ग के ३२वें श्लोक से ४७वें श्लोक तक गुरु परबड़े भण्डार का तैयार करना कराना साधारण व्यक्ति के म्परा वर्णित हैं। 'ख' प्रति में २९६ पत्र हैं, लिपि काल वश की बात न थी, यह तो कोई विशेष प्रभावशाली असौज शुक्ला १२ भौमवार सं०१८१३ शाके १६७८ हैं व्यक्ति ही करा सकता था, ला. हरसुखराय जी ऐसे ही ग्रन्थ के अन्त में लिपिकार ने अपनी प्रशस्ति लिखी है जो प्रभावशाली व्यक्ति थे। मुगल-शासन में उनका महत्वपूर्ण जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह पृ० १०० तथा प्रशस्ति संगह पृ० स्थान था और इसलिए वे इतना महत्वपूर्ण विशाल सर- ७० पर प्रकाशित प्रशस्ति से सर्वथा भिन्न है । इनके प्रथम स्वती यज्ञ संपन्न कर सके।
१४ सर्ग जिनदास जी के गुरु सकलकीति द्वारा लिखे हैं। यहां मैं कुछ कथा साहित्य के ग्रंथों का विवरण 'ग' प्रति में २६६ पत्र हैं, २६वां पत्र नहीं है जिस पर प्रस्तुत कर रहा हूँ। जो मेरी शोध के पश्चात् अप्रकाशित प्रशस्ति तथा लिपिकाल आदि के होने की संभावना है। सिद्ध होते हैं। मैंने सभी उपलब्ध संभव साधनों से जानने इन प्रतियों का उल्लेख जि. र० कोश पृ० 46VIII तथा
का प्रयास किया है फिर भी यदि किसी विद्वान् कृपालु आमेर भंडार सूची पृ० १६१ पर मिलता हैं राज० स० पाठक को इनसे किसी प्रथ के प्रकाशित होने की सूचना २ पृ० २१८ सूची ३ पृ० २२४. उपलब्ध हो तो कृपया वह ग्रन्थ कब? और कहाँ ? से वषभनाथ चरित्र प्रकाशित हुआ है कि सूचना मुझे देकर अनुग्रहीत करें मैं उनका अत्यधिक आभार मानूगा।
इसके लेखक भ० सकलकीति हैं जो भ० पद्मनन्दी के
शिष्य थे। यह ग्रंथ २० सोंमें समाप्त होता है मूलसंस्कृत श्री मुनि सुव्रतनाथ पुराण
श्लोकों में है। इसकी तीन प्रतियाँ उपलब्ध हैं। 'क' प्रति इसके लेखक व कृष्णदास जी हैं जो हर्ष के पुत्र तथा के २१२ पत्र हैं लिपि काल बैसाख कृष्णा ८ रविवार सं० मंगल के भाई उल्लिखित हैं । यह गंथ २३ सर्ग मे समाप्त १८२५ है । इसमें ४६२८ श्लोक हैं यह ग्रंथ मुलतानी लाला होता है। यह मूल संस्कृत श्लोकों में है इस पर कोई लिल्लियन के पुत्र राजाराम उनके पुत्र गोकुलचन्द के पठटीका नही है। इसका रचना काल कार्तिक शुक्ला १३ नार्थ आत्माराम, अनन्दीराम, दीपचन्द ने लिखा था । संवत् १६८१ है। इसकी श्लोक संख्या ४ हजार २५ है। 'ख' प्रति में १६५ पत्र है प्रति अत्यधिक जीर्ण है। ७० कृष्णदास जी कल्पवल्ली नगर के रहने वाले थे। विशेष विवरण कुछ नही मिलता। लेखक ने अन्तिम पाठ श्लोकों में अपनी प्रशस्ति भी लिखी 'ग' प्रति में १२६ पत्र है तथा लिपिकाल कार्तिक है जो जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह (मुख्तार सा०) १० ६७ वदी ७ सं० १६६८ है । प्रति अत्यधिक जीणं है। इसका
और प्रशस्ति मंग्रह (काशलीवाल) पृ. ४७ पर प्रका- उल्लेख जि. र० को० मे पृ० ३६५ पर मिलता है। शित है। इस ग्रन्थ मे ६३ पत्र हैं तथा इसका विवरण राज० सृ० २ पृ०, १५, २१०, मूची ३ पृ० ६३. जिन रत्नकोप पृ० ३१२ प्रथम आमेर भण्डार की सूची
" सूची हनुमान चरित्र पृ. ११३ पर मिलता है। आमेर की प्रति का लिपि काल
इसके लेखक श्री वीरसिंह के सुपुत्र ब्र० अजित हैं इसे सं० १८५० है । राज० सू० २ पृ० १७.
'ग्रंजना चरित्र' भी कहते हैं। इसमें ८० पत्र तथा २००० हरिवंश पुराण
संस्कृत श्लोक हैं। प्रारम्भ के २१ श्लोकों में विभिन्न इसके लेखक श्री. जिनदास जी हैं जो श्री सकल- प्राचार्यों को नमस्कार किया गया है। यह ग्रंथ भृगुकच्छ कीति के शिष्य (छोटे भाई) थे। यह ग्रन्थ ३६ सर्ग में (भडौच) के नेमि जिन मन्दिर में लिखा गया था। इसका समाप्त होता है। यह मूल संस्कृत श्लोकों में हैं। इसकी उल्लेख जि. र० कोश प० ४५६। (हनुमच्चरित) आमेर तीन प्रतियां उपलब्ध है। 'क' प्रति में १६७ पत्र हैं तथा सूची पृ० १६० पर मिलता है। राज. म०२० २०, लिपि काल ज्येष्ठ शुक्ला ११ सं० १७७३ है । इसके २३४, सूची ३ पृ० २२१.