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________________ जैन साहित्य का अनुशीलन डा० इन्द्रचन्द्र शास्त्री एम. ए., पो. एच-डी. कलकत्ता निवासी बाबू छोटेलालजी से यह जानकर सके। इस विषय में मैं नीचे लिखे कार्यों को प्रोर ध्यान प्रसन्नता हुई कि वे 'अनेकांत' तथा साहित्य योजना को आकृष्ट करना चाहता हूँ। पुनः प्रारम्भ कर रहे हैं। इस दिशामें मैं कुछ सुझाव १-महाभारत भारतीय चेतना का विश्वकोष है। उपस्थित करना चाहता हूँ। उसके गम्भीर अध्ययन से पता चलता है कि हमारी जैन समाज का क्षेत्र कितना ही सीमित हो किन्तु संस्कृति का मूल स्रोत त्याग तथा सर्व-मंत्री रहा है। जैन साहित्य की दृष्टि से यह परम्परा अत्यन्त समृद्ध है। यह एवं बौद्ध परम्पराओं ने भी उसी पर बल दिया है। महासाहित्य जैन समाज की ही नहीं समस्त भारत की सम्पत्ति भारत के एक हजार श्लोकों को चुनकर उनके साथ तुलहै उसमें जीवन के लिए वह प्रेरणा विद्यमान है, जिसकी नात्मक दृष्टि से जन एवं बौद्ध आगमों से उद्धरण दे वर्तमान मानवता को अत्यन्त आवश्यकता है । दुख की बात दिये जाएं, तो वह मूल स्रोत सामने आ जाएगा, जो भारत यह है कि साम्प्रदायिकता के संकुचित वातावरण में उस की सांस्कृतिक त्रिवेणी के रूप में प्रवाहित हुआ है। इतना महती प्रेरणा को भी भुला दिया जाता है। हमें प्रकाश ही नहीं ईसाई तथा मुस्लिम परम्पराओं के साथ भी यथाकी आवश्यकता है किन्तु ऐसी मनोवृत्ति बन गई है कि स्थान तुलना की जा सकती है। महाभारत का शान्तिपर्व दूसरे से प्रकाश लेने की अपेक्षा अंधकार में पड़े रहना जैनियों के उत्तराध्ययन एवं दशवकालिकसूत्र तथा ज्ञानार्णव अच्छा प्रतीत होता है । दूसरी ओर वह प्रकाश एवं बौद्धों का धम्मपद इस दिशा में विशेष रूप से उल्लेजिनके आधिपत्य में है, वे भी उसकी प्रत्येक किरण पर खनीय है। अपना नाम पट्ट लगाकर अहंकार एवं अस्मिता के पोषण २-जैन चरित्र का प्राधार अहिंसा सत्य आदि पांच में लगे हुए हैं। उन्हे प्रकाश के व्यापक प्रसार की इतनी महाव्रत हैं। योग दर्शन में वे पाच यमो के रूप में बताए चिन्ता नहीं है, जितनी नामपट्ट की । वर्तमान युगकी आव- गए हैं और बौद्ध साहित्य में शील के रूप में। तीनों परश्यकता है कि एक ओर प्रकाशप्राप्त करने के लिए उसके म्परामों में इनका पर्याप्त विकास हुआ है किन्तु दृष्टिकोण स्रोत को महत्व देने की संकुचित वृत्ति का परित्याग किया मे थोड़ा सा भेद भी है। उदाहरण के रूप में योगजाय और दूसरी ओर जिनके पास प्रकाश है वे नामपट्ट दर्शन का बल मानसिक पवित्रता पर है, बौद्ध दर्शन अहिंसा की अपेक्षा अन्धकार दूर करने की अधिक चिन्ता करें। को करुणा के रूप में उपस्थित करता है और उसके विधि ___ स्वस्थ मानवता के निर्माण के लिए धर्म का जो पक्ष पर बल देता है। जैन दर्शन मनवचन और काया संदेश है वह किसी एक परम्परा में सीमित नहीं है । भारत तीनों के अनुशासन पर बल देता है। इन सब का तुलकी जैन बौद्ध तथा वैदिक परम्पराम्रो में वह समान रूप नात्मक अध्ययन भारतीय प्राचार की आधारशिला को से प्रवाहित हुआ है। तीनों में उसका विकास भी हुआ है उपस्थित कर सकता है जो साम्प्रदायिकता से परे हैं और और दुरुपयोग भी। हम अपने विकास को सामने रखते है जहां सबका एकमत है। और दूसरे के द्वारा किए गए दुरुपयोग को नहीं इसी मनो- ३-भारतीय कथा विश्व के प्राचीन साहित्य में वृत्ति ने मानवता को छिन्न-भिन्न कर रखा है और एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अनेक कथाएं व्यापारियों द्वारा व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति संदेह भरी दृष्टिसे देखने लगा अरव, तुर्किस्तान, यूनान, रोम तथा विश्व के अन्य महाहै । हमें ऐसे साहित्य की आवश्यकता है, जो इस मनो- द्वीपों में पहुंची और उनके माहित्य की सम्पत्ति बन गई । वृत्ति को दूर करके सभी के स्वस्थ रूप को सामने रख बहुत सी कथाएँ सैकड़ों भाषाओं में मिलती हैं। इस क्षेत्र
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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