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________________ २८० भनेकान्त वर्ष १५ नमूना है। इसकी छत बहुत ही सुन्दर सजी हुई है। यह मौर्य राजा दुर्गगण के समय इस स्थान पर एक मंदिर बौद्ध विहारों के नमूनों पर बना हुआ है, किन्तु कुछ बातों बनवाया। बोप्पक एक बड़ा राज्य अधिकारी व सेनापति में उनसे भिन्न भी है । बौद्ध विहारों की दीवालों पर चित्र था, जिसने अपने स्वामी दुर्गगण तथा उसके सामंतों के चित्रित हैं परन्तु यहां पर प्रत्येक वस्तु पत्थरों पर अङ्कित बीच सम्बन्ध स्थापित करने में कूटनीति का परिचय दिया है। इस मंदिर में एक पुरुष की मूर्ति है जिस के हाथों में था । शीतलेश्वर महादेव के स्तम्भ पर का आठवीं शताब्दी तलवार या त्रिशूल है। कनिंघम' इसको विष्णु की गदा- का शिलालेख शंकरगण का इस मंदिर पर दर्शन के लिए घर के रूप में मूर्ति मानता है। उसके अनुसार यह मंदिर प्राने का उल्लेख करता है। बहुत सम्भव है कि शंकरगण प्रारम्भ में वैष्णव मंदिर था । वास्तव में पुरुष के हाथ दुर्गगण का उत्तराधिकारी होवे और उसने इस मंदिर को गदा न होकर त्रिशुल है। यह मंदिर प्रारम्भ में वैष्णव न कुछ दान भी दिया होगा । मोसुक का पुत्र मंचुक भी नौवीं होकर शैव मंदिर जान पड़ता है। इस मंदिर के भीतर सदी में इस स्थान की पूजा के लिए माया'। लिंग भी है तथा बाहर के हिस्सों पर महिषासुर मदिनी तथा अर्धनारी की मूर्तियां भी मिलती हैं। शिलालेखों से ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी में यात्री लोग चंद्रायह मंदिर शैव मंदिर जान पड़ता है। वती में तीर्थयात्रा के लिए बराबर पाते रहते थे। १०६६ ई० में बनिया जाति के यात्री विक्रम श्री हर्षदेव और इसके अतिरिक्त यहाँ पर अन्य मन्दिरों के भी प्राचीन मधुसूदन ने शैव मंदिर को दान दिया। एक स्तम्भ पर अवशेष हैं । एक मंदिर काजिका देवी का है जिसमें सभामंडप ___ ग्यारहवीं सदी के लेख में राजा श्री कुसुमदेव और उसके तथा अन्य मंडप भी पाये जाते हैं। मंडप के चित्रों से इस मंदिर पिता श्री बाल्हणदेव के नामों का उल्लेख है । बहुत संभव की प्राचीनता सिद्ध होती है। यह मंदिर पहले विष्णु का है कि इन्होंने इस मंदिर को कुछ दान दिया हो । बारहवीं था; क्योंकि इसकी प्रतिमा इसमें पाई जाती है ऐसा मालूम शताब्दी में दहिया राजा रावल, भीवसीह और ऊदा का होता है कि यह मंदिर भी शीतलेश्वर महादेव के समय का भी इस स्थान से संबंध रहा और उन्होंने इस मंदिर को है क्योंकि दोनों मंदिरों की बनावट में साम्यता है। अन्य कुछ भेंट दी होगी। कालिका माता के मंदिर के स्तम्भ छोटा मंदिर वराह अवतार का है जिसमें अब भी वराह की पर भी ऐसे यात्रियों के नाम खुदे हैं जो यात्रा के लिए मूर्ति पाई जाती है और उस पर नौवीं व दसवीं सदी का यहाँ आये थे। इन शिलालेखों से यह पता चलता है कि लेख है। सात सहेली के प्राचीन विष्णु के मंदिर का भी सातवीं सदी से बारहवीं सदी तक यह तीर्थ स्थान यात्रियों बाद में पुनरोद्वार हुमा, किन्तु उसके शिखर तथा मंडप प्राचीन दीख पड़ते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट प्रकट होता चन्द्रावती प्राचीन समय में जैनियों का भी एक बड़ा है कि चन्द्रावती में विष्णु तथा शिव की एक साथ पूजा होती थी । शांतिनाथ का जैन मंदिर भी प्राचीन मंदिर पर धार्मिक स्थान रहा है। यहाँ पर एक प्रसिद्ध शांतिनाथ का बना हुमा है। इस मंदिर की चंवरी तथा शिखर पुराने हैं प्राचीन मंदिर था जिसको १०४६ ई. में शाह पापा हूमड़ ने बनवाया था और उसकी प्रतिष्ठा भावदेवसूरि ने की किन्तु मंडप नया है। ___ इन पुरातत्व स्मारकों से स्पष्ट प्रकट होता है कि थी। सात सलाकी पहाड़ी के स्तम्भ का ११०६ ई० का चन्द्रावती शैवधर्म, वैष्णवधर्म तथा जैनधर्म का एक १. प्रोग्रेस रिपोर्ट भाकियालाजिकल सर्वे आफ वेस्टर्न बड़ा केन्द्र था। राजा और अनेक अधिकारी तथा साथ में इंडिया, १९०५-०६ झालरा पाटन के शिलालेख सं.७ व्यापारी बाहर से इस स्थान के देवी देवताओं की पूजा २. पाकियालाजिकल सर्वे रिपोर्ट, दूसरी जिल्द । के लिए पाते थे। ६८६ ई० में देव का भाई वोप्पक ने ३. प्रोग्रेस रिपोर्ट भाकियालाजिकल सर्वे माफ वेस्टर्न १. प्राकिलाजिकल सर्वे रिपोर्ट द्वितीय जिल्द इंडिया१९०५-०६, झालरापाटन का शिलालेख सं०६.
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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