SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ झालरापाटन का प्राचीन वैभव डा.कैलाशचन्द जैन, एम. ए. पी.एच. डी. राजस्थान में झालरापाटन एक प्राचीन ऐतिहासिक दुर्गण और शिवगण थे। ग्यारहवीं सदी के लेख में राजा स्थान है। यह मन्दिरों का नगर कहा जाता है। प्राचीन श्री कुसुमदेव और उसके पिता श्रीराजा श्री बाल्हणदेव समय में यहाँ पर मन्दिरों के झालर बजने से यह नगर के नामों का उल्लेख है ।" एक स्तम्भ पर बारहवीं सदी के झालरापाटन के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त हुमा'। इस लेख में दहिया राउल भीवसीह और उसके पुत्र राउल नगर की उत्पत्ति प्रसिद्ध झाला जालिमसिंह से नहीं हुई ऊदा का उल्लेख है। ऐसा प्रतीत होता है कि ग्यारहवीं तथा जैसा कि गलती से समझा जाता है । इसके पहले यह नगर बारहवीं सदी में इस स्थान पर दहिया राजा राज्य करते थे। चन्द्रावती के नाम से प्रसिद्ध था। इस नगर की स्थापना चन्द्रावती अपनी कला कृतियों के लिए विशेष प्रसिद्ध के बारे में अनेक मत प्रचलित हैं। यहां पर बहुत से पंच है। कहा जाता है कि एक समय यहां पर १०८ मन्दिर मार्क (माहत) तथा अन्य प्राचीन सिक्के मिले हैं। जिनके थे। यहां के बिखरे हुए खण्डहरों से अब भी प्राचीन समय प्राधार पर यह कहा जा सकता है कि ईसा से पूर्व भी इस में मन्दिरों की अधिक संख्या जान पड़ती है। इन खंडहरों स्थान पर संभवतया लोग रहते होंगे। में अब भी चार-पाँच मन्दिर विद्यमान है, जो प्राचीन इस नगर का बहुत प्राचीन इतिहास तो अन्धकार में है कलात्मक वैभव को याद दिलाते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध किन्तु सातवीं सदी से बहुत संभव है मौर्य राजा यहाँ राज्य मंदिर शीतलेश्वर महादेव का है। इस मन्दिर को बुरी करते थे। ६८९ ईस्वी में इस स्थान का राजा दुर्गगण था, तरह नष्ट किया गया; कि तु फिर से इसकी मरम्मत हुई। जो राजाओं का महाराजा कहलाता था, उसके राज्य में इतना होने पर अब भी इसमें प्राचीन मंदिर के मौलिक जनता सुखी थी, तथा विपदाओं से मुक्त थी । यहाँ के हिस्से जैसे तोरण के स्तम्भ, दीवाल, तथा कुछ नीचे का सातवीं-आठवीं सदी के एक शिलालेख में शंकरगण के नाम अंग सुरक्षित हैं। जो दरवाजों पर पुरुषों और स्त्रियों के का उल्लेख है। शंकरगण उसी वंश का प्रतीत होता है __ रूप में द्वारपालों की प्राकृतियाँ हैं, उनसे जीवन झलकता है। जिस के कि कणसवा के ७३६ ई. के शिलालेख के इस मन्दिर की स्थापत्य कला कुछ रूप में एलोरा की १. एनल्स एंड एंटीक्विटीज अाफ़ राजस्थान,द्वितीय जिल्द गुफामों से मिलती-जुलती है। कलात्मक नमूने के माधार पर यह कोटा के पास मुकंदरा द्वार की चौरी तथा एरण पृष्ठ ७८६ के स्तम्भों जैसा होने से सातवीं सदी का प्रतीत होता है २. वही, पृ० ७८६, किसी हूण राजा ने इस नगर को जिसकी पुष्टि भी शिलालेखों से होती है। बसाया बताया जाता है। ऐसा भी लोगों को विश्वास फर्गुसन शीतलेश्वर महादेव के मंदिर को सबसे है कि किसी लकड़ी के काटने वाले ने इसको स्थापित प्राचीन और कलापूर्ण मंदिर समझता है। उसके अनुसार किया । कुछ लोग ऐसा भी सोचते हैं कि राजा चन्द्रसेन ने निर्माण करवाया। यह नगर चन्द्रभागा नदी भारत के प्रसिद्ध कलात्मक उदाहरणों में यह एक उत्तम के दोनों किनारों पर वसा हुआ है। ६. इंडियन एन्टीक्वेरी जिल्द १६ पृ० ५५ ।। ३. माकिलाजिकल सर्वे रिपोर्ट द्वितीय जिल्द । ७. एनुमल रिपोर्ट राजपूताना म्यूजियम अजमेर सन् १९१२, १३ पृ०२ ४. इंडियन एन्टीक्वेरी जिल्द ५ पृ० १८० । ८. वहीं ५. एनमल रिपोर्ट राजपूताना म्यूजियम, अजमेर सन् १.हिस्ट्री प्राफ इंडियन एण्ड ईस्टर्न प्राकिटेक्चर पु. १९१२-१३, पृ०२ ४४६
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy