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________________ धर्म स्थानों में व्याप्त सोरठ की कहानी महेन्द्र भनावत, एम० ए० रात्रि को किसी धर्मस्थान में सामायिक आदि करते नाम लेता तो बामण मरे जी काई समय धार्मिक महिलायें नाना स्तवन, भजन तथा मुख देखंता उसका बाप । कहानी-किस्सों की झड़ी लगा देती हैं। कहानियों में उत्तर में राजा जी ने लिखाधार्मिक कथानक लिए कई कहानियां प्रत्यन्त लोकप्रिय हैं राजा जी कागद मोकल्यो जी काई जिनमें पवित्र जीवन जीने की कला के साधन, संयम, सुणो रागी जी मोरी बात। त्याग, तपस्या आदि मानवी गुणों के संकेत मिलते हैं। खोटा नगतरां रा बाई जाया जी काई यहां सोरठ की सुप्रसिद्ध कहानी दी जा रही है जो मेवाड़ कांई होसी हवाल। प्रदेश की प्रोर धर्मस्थानों में अत्यन्त लोकप्रिय रही । है सतरे सोनी ने तेड़जो जी काई सोरठ की कहानी सोना रो पिंजरो घड़ाय । एक राजा था जिसके सात वधुयें। ६ मानेती तथा ऐरे मेरे तो हीरा जड़े जी कांई एक कोमानेती परन्तु पुत्र किसी के भी नहीं। राजा लाला माय लपेट । व्यापार के लिए गया था। कोमानेती को गर्भवास हमा, उस पिंजरे में कन्या को बिठाकर उलपुल नदी में महीने दो महीने, चार ६ महीने टले । नवम मास कन्या ने बहा देना।' सोनी को बुलाया पिंजरा बनवाया, हीरे पन्ने जन्म लिया। नाम निकालने ज्योतिषी पाया। मानेतियों जड़े और अन्दर लड़की को बिठाई, दासी को कहाने सोचा अपने किसी के पुत्र नहीं है, राजा पाते ही अपने 'इसे नदी में बहा दो, राजा जी का हुक्म है।' उलफूल को कोमानेती कर देगा, इसलिए ज्योतिषी को अपनी ओर नदी माई, दासी बहाने गई, बहाते-बहाते लड़की बोलीसे एक-एक थान दे दें और उसका नाम बदलवाने के लिए उलल फूलल तो नदी बहै ए बाई कह दें। ऐसा ही हुमा । ज्योतिषी ने उनके कहे अनुसार क्यूं बगाड़ी म्हारी मोत । बात मान ली और इस प्रकार नाम निकाला जमना ने गंगा खड़े पड़ी ए बाई नाम लेतां तो बामण मरे जी काई __ क्यू ए बगाड़े म्हारी मोत । मुख देखतां उसका बाप । दासी ने उसे बहा दी। पिंजरा बहता-बहता चंपावती चंवरी चढ़तां वर मरे जी काई नगरी पाया जहाँ कुम्हार मिट्टी खोद रहा था तथा धोबी सोरठ जिसका नाम। कपड़े धो रहा था। धोबी ने दूर से बहते हुए पिंजरे को ब्राह्मण ने कहा-'क्या नाम निकालू बाई जी ने तो देख कुम्हार को आवाजदी-'मेरे भो, पाल कुम्हार ! भारी नक्षत्रों में जन्म पाया है।' ऐसा सुन कोमानेती ने नदी में बहता हुमा पिंजरा पा रहा है, इसे अपन नदी में राजा को पत्र लिखा कि कन्या ने जन्म लिया है परन्तु कूद कर निकालें परन्तु शर्त यह कि यदि अंदर का धन भारी नक्षत्रों में । ज्योतिषी ने नाम निकाला हैं । तुम लोगे तो बाहर का मैं, और यदि बाहर का तुम लोगे राणीजी कागद मोकल्यो जी कांई तो भीतर का मैं।' दोनों ने नदी में गिरकर पिंजरा सुणो राणा जी मोरी बात। निकाला । कन्या को बैठी देख उन्होंने कहा१. मेवाड़ में कही जाने वाली इस कहानी का हिन्दी 'तुम इतनी सुन्दर कौन हो।' रूपान्तर यहाँ दिया जा रहा है। वह बोली-'राजा की कन्या ।'
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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