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________________ बारडोली के बैन, सन्त कुमुवचन्द्र २११ अन्थों का इन्होंने विशेषरूप से अध्ययन किया था। विद्यार्थी के अवसर पर ही कुमुदचन्द्र संघ सहित घोषानगर पाये, अवस्था में ही ये भ० रत्नकीर्ति के शिष्य बन गये । इनकी जो उनके गुरु रत्नकीति का जन्म-स्थल था। बारडोली विद्वत्ता वाक्चातुर्यता एवं अगाध ज्ञान को देखकर भ० रत्न- वापस लौटने पर श्रावकों ने अपनी अपार सम्पत्ति का कीति इन पर मुग्ध होते गये और इन्हें अपना प्रमुख शिष्य दान दिया। बना लिया । धीरे-धीरे इनकी कीर्ति बढ़ने लगी। रत्नकीर्ति कुमुदचन्द प्राध्यात्मिक एवं धार्मिक सन्त होने के साथ ने बारडोली नगर में अपना पद स्थापित किया । और संवत् साथ साहित्य के परम पाराधब थे। पब तक इनकी छोटी १६५६ (सन् १५६६) वैशाख मास में इनका जनो के बड़ी २८ रचनाएँ एवं ३० से भी अधिक पद प्राप्त हो प्रमुख सन्त (भट्टारक) के पद पर अभिषेक कर दिया। चके हैं। इनकी सभी रचनाएं.राजस्थानी भाषा में हैं, जिन यह सारा कार्य संघपति कान्ह जा, सघ बाहन जावाद, पर गुजराती का प्रभाव है । ऐसा ज्ञात होता है कि ये सहस्त्रकरण एवं उनकी धर्मपत्नी तेजलदे, भाई मल्लदास । चिन्तन, मनन एवं धर्मोपदेश के अतिरिक्त अपना सारा एवं बहिन मोहनदे, गोपाल प्रादि की उपस्थिति में हुआ था महुआ था समय साहित्य-सृजन में लगाते थे । इनकी रचनाओं में तथा श्रावकों ने कठिन परिश्रम करके महोत्सव को सफल गीत अधिक है, जिन्हें ये अपने प्रवचन के समय श्रोताओं बनाया था। तभी से कुमुदचन्द्र बारडोली के सन्त कह- के माथ गाते थे'• नेमिनाथ के तोरण द्वार पर आकर लाने लगे। वैराग्य धारण करने की अद्भुत घटना से ये बहुत प्रभाबारडोली नगर एक लंबे समय तक आध्यात्मिक, साहि- ६. संघपति कहांन जी संघ वेग जीवादेनो कन्त । त्यिक एवं धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र रहा। सन्त सहेसकरण सोहे रे तरुणी तेजलदे जयवंत ॥ कुमुदचन्द्र के उपदेशामृत के सुनने के लिये यहाँ धर्म प्रेमी मलदास मनहरू रे नारी मोहनदे प्रति संत । सज्जनों का हमेशा ही पाना-जाना रहता। कभी तीर्थ- रमादे वीर भाई रे गोपाल वेजलदे मन मोहन्त ।।६।। यात्रा करने वालों का संघ उनका आशीर्वाद लेने पाता तो -गुरु गीत कभी अपने-अपने निवास-स्थान के रजकणों को संत के xx पैरों से पवित्र कराने के लिये उन्हें निमन्त्रण देने वाले वहां ___ संघवी कहान जी भाइया वीर भाई रे।। माते । संवत् १६८२ में इन्होंने गिरिनार जाने वाले एक मल्लिदास जमला गोपाल रे॥ संघ का नेतृत्व किया। इस संघ के संघपति नागजी भाई छपने संवत्सरे उछव अति करयो रे। थे, जिनकी कीर्ति चन्द्र-सूर्य-लोक तक पहुंच चुकी थी। यात्रा संघ मेली बाल गोपाल रे॥ ७. संवत् सोल छपन्ने वैशाखे प्रगट पटोधर थाप्या रे । गीत गणेशकृत । रत्नकी ति गोर बारडोली वर सूर मंत्र शुभ प्राप्या रे॥ १०. इणि परि उछव करता माव्या घोघा नगर मझारि। माई रे मन मोहन मुनिवर सरस्वती गच्छ सोहंत । नेमि जिनेश्वर नाम जपंता उता जलनिधि पार ॥ कुमुदचन्द भट्टारक उदयो भवियण मन मोहंत रे॥ गाजते बाजते साहमा करीने भाव्या बारडोली ग्रान । गुरु स्तुति गणेशकृत याचक जन संतोष्या पोष्या भतलि राख्यो नाम ॥१०॥ - X X X 1. बारडोली मध्ये रे पाट प्रतिष्ठा कीष मनोहार । संवत सोल व्यासीये संवच्छर गिरिनारि यात्रा कीधा । एक शत पाठ कुंभ रे, ढाल्या निर्मल जल अतिसार ॥ श्री कुमुदचन्द्र गुरु नामि संधपति तिलक कहवा ॥१३॥ सूर मंत्र प्रापयो रे, सकल संघ सानिध्य जयकार । गीत-धर्मसागर कृत 'कुमुदचन्द्र' नाम कह्यरे, संघवि कुटंब प्रतपो उदार॥ १. देश विदेश विहार करे गुरु प्रतिबोधे प्राणी। गुरु गीत गणेशकृत धर्मकथा रसने वरसन्ती, मीठी छ वाणी रे भाय । x
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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