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________________ सिद्धहमचन्द्र-शब्दानुशासन श्री कालिकाप्रसाद शुक्ल, एम० ए०, व्याकरणाचार्य (गतांक से मागे) नियम प्रकरण विभाग अध्याय पाद सूत्र सं० प्रकरण विभाग प्रथम प्रथम ४२ संज्ञा इस व्याकरण में माठ अध्याय हैं। उनमें उणादि द्वितीय ४१ स्वरादि सन्धि प्रभाग सहित प्रथम सात अध्याय संस्कृत भाषा की व्यवस्था के तृतीय ६५ व्यंजन सन्धि लिए हैं तथा पाठवां अध्याय प्राकृत एवं अपभ्रंश के नियम चतुर्थ ६३ नाम प्रकरण दि०भाग को बताता है। सात अध्यायों के सूत्रों पर दो स्वोपज्ञ द्वितीय प्रथम ११८७ वृत्तियाँ हैं । (१) लघुवृत्ति, (२) वृहद्वृत्ति (तत्त्वप्रका- द्वि० १२४ } कारक } तृ० भाग शिका)। इन दोनों की पद्धतियों में पर्याप्त साम्य है । तृ० १०५ } षत्त्व, णत्व संस्कृत प्राकृत आदि भाषामों का व्याकरण साथ ही लिखने च० ११३ स्त्रीप्रत्यय की परिपाटी हेमचन्द्राचार्य ने ही चलाई। वररुचि, भामह प्र० १६३ समास सामान्य च० भाग प्रभूति वैयाकरणों द्वारा रचित प्राकृत व्याकरण एवं हेम , द्वि० १५६ } समास विशेष नि.) चन्द्राचार्य विरचित व्याकरण की रचना में महान् भेद परिलक्षित होता है। प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं के निरूपण से प्राचार्य का विशिष्ट स्थान सर्वविदित है। लघुवृत्ति और (२) माल्यात बत्ति बृहवृति में इतना ही भेद है कि लघुवृत्ति में मतान्तरों की पाख्यातवृत्ति में १० प्रकार के प्रत्यय, भावकर्म चर्चा का अवकाश नहीं है, प्राकृतिगण का उल्लेख नहीं हैं। प्रक्रिया, प्यन्त, सन्नन्त, यङन्त, नामधातु, सेट् तथा अनिट् विस्तार से सूत्रों की वृत्ति का निरूपण नहीं है, किन्तु है। एक धातुमों का विमर्श प्रादि विषय वणित हैं। इस विभाग में परिगणित उदाहरण और प्रत्युदाहरण और तदुपयोगी याणा निम्नांकित सूत्र, अध्याय और पाद हैंवृत्तियां निरूपित हैं। वहद्वत्ति में तो सूत्रों की विस्तृत व्याख्या, पूर्वापरसम्बन्ध, बहुवचनादि पदों का प्रयोजन, ६४ मतान्तरों का उल्लेख, सूत्रघटक प्रत्येक पद की यथार्थता १२१ के सूचक उदाहरण एवं प्रत्युवाहरण अर्थात् संस्कृत भाषा को समझने के लिए सभी अपेक्षित सामग्री संगृहीत है । १२३ ११५ १२२ इस व्याकरण के प्रथम सात अध्याय ४ भागों में विभक्त हैं-(१) चतुष्कवृत्ति, (२) पाल्यातवृत्ति (३) कद्वत्ति (४) तद्धितवृत्ति । (१) चतुष्कवृत्ति चतुष्कवृत्ति में सन्धि, नाम, कारक एवं समास इन चारों का विवरण है। इसके निम्नलिखित ४ विभाग हैं- ६८३ (३) कृवृत्ति इसमें कृत्य प्रत्यय सम्बन्धी नियम निर्दिष्ट हैं। पञ्चम अध्याय के द्वि० पाद में अन्तिम सूत्र "उणादयः ५।२।६३" इसकी पूर्ति के लिए वृत्ति सहित १०९६ उणादि सूत्र पृथक
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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