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________________ प्राचार्य नेमिचन सिवान्त-बक्रवर्ती की विम्ब योजना २०५ समस्त पदार्थों में जिस प्रकार कोई न कोई वर्ण रहता है, सुबवरपबसंत'-वसन्तश्री किसी भी उद्यान की उसी प्रकार समस्त माकांक्षामों और कामनामों के मूल में शोभा में चार-चांद लगा देती है। यन प्रफुल्लित हो जाते हैं लोभ वर्तमान रहता है । लोभ के विभिन्न रूपों का निश्चय और अपने लावण्य से सभी को मुग्ध कर देते हैं। उनकी रंगों के संयोजन के समान पृथक् रूप में संभव नहीं। नव-चेतना जड़-चेतन सभी में नवोल्लास भर देती है । इस गंगामहारणइस्स पवाहोव्व'जघन्य देशावधि से लेकर अप्रस्तुत द्वारा प्रस्तुत श्रुतज्ञान के विकास में भंग-प्रपंच के सर्वावधिज्ञान पर्यत अवधिज्ञान के द्रव्यप्रमाण के आनयन वैशिष्ट्य का निरूपण किया है। भंग-प्रपंच श्रुतज्ञान के हेतु प्रवृत्त होने वाला भागहार गङ्गा नदी के प्रवाह के सौन्दर्य और वृद्धि में सहायक होता है । अतएव यहां भंगसमान सातत्यरूप से प्रवृत्त होता है। यहां पर 'गंगा नदी प्रपंच को वसन्त का बिम्ब दिया गया है और श्रुतज्ञान को अनि का प्रवाह' एक देशीय बिम्ब है। मात्र प्रवाह की गति- वन का। वन शीलता का ही चित्राङ्कन करता है, शीतस्पर्शजन्य अनन्दा बावरण बिम्ब-श्रवण इन्द्रिय-जन्य अनुभूति के नुभूति की अभिव्यञ्जना नहीं। यतः प्रस्तुत भागहार में आधार पर की गयी अप्रस्तुत योजना उक्त कोटि के एक ही धर्म पाया जाता है, दूमरा नहीं । अतः यह बिम्ब बिम्बों के अंतर्गत पाती है। इस कोटि के बिम्बों का एक देशीय है, मन के आवेगों को जागृत करने की क्षमता आचार्य नेमिचन्द्र की रचना में प्रायः प्रभाव है। इसमें नहीं है। अतीन्द्रिय बिम्ब-प्रतीन्द्रिय विषयों की अप्रस्तुत योजना द्वारा उच्चकोटि के बिम्बों की योजना की गई सुमोवही-आगम की विशालता और गम्भीरता । है। यहाँ सिर्फ एक बिम्ब का विश्लेषण किया जाता है। प्रकट करने के लिए इस बिम्ब की योजना की गई है। भावकलंक सुपउरा"-इस स्थल पर विशेषण ही जिस प्रकार गीत में स्वरलहरी और उसके सामञ्जस्य बिम्ब बन गया है । भावों के अत्यधिक कलुषित होने रूप को एक साथ प्रकट किया जाता है । उसी प्रकार इस बिंब । बिम्ब से निगोद पर्याय का सातत्य दिखलाया गया है । इस में विशालता और गहराई को एक साथ रखा गया है। बिम्ब द्वारा हमारे मन में दृश्य जगत् के नाना रूपों तथा समुद्र जितना विशाल होता है, उतना ही गहरा भी, व्यापारों में भावात्मक कलंक-पाप की प्रचुरता या मनोमागम भी समुद्र के समान विशाल और गम्भीर होता है। रागों का घनत्व प्रतिबिम्बित होता है। अतीन्द्रियानुभूति ___ पावमलं-पाप की पूर्ण अवधारणा प्रस्तुत करने के के समक्ष ऐसा चित्र साकार रूप में उपस्थित होता है, लिए मल का बिम्ब दिया गया है। मेल कृष्णवणं एवं जिसमें क्लेश. पाप, वासना एवं अनन्तानुबन्धी कषाय क घृणोत्पादक है, पाप भी इसी प्रकार का है। किसी स्वच्छ उत्कृष्ट शक्ति अंश का आलेखन किया गया है। वस्तु में भी लगकर मैल वस्तु को दूषित और गन्दा बनाती इस प्रकार प्राचार्य नेमिचन्द्र ने बिम्बयोजना या है, इसी प्रकार पाप निर्मल और ज्ञान-दर्शन गुण से युक्त अप्रस्तुत योजना द्वारा सिद्धान्तों एवं भावों की अभिव्यंजना प्रात्मा को मलिन बनाता है, उसके वास्तविक स्वभाव को में तीव्रता, स्पष्टता, एवं चमत्कार उत्पन्न किया है। जिस माच्छादित कर देता है । मल और वस्तु दोनों का अस्तित्व सिद्धान्त या भाव को प्राचार्य पाटकों के हृदय में पहुंचना स्वतन्त्र रूप से पृथक्-पृथक् रहता है, इमी प्रकार प्रात्मा चाहते हैं, उसे बिम्ब द्वारा ही उन्होंने पहुंचाया है जिन बिंबों और पाप ये दोनों भी पृथक्-पृथक् स्वतन्त्र अस्तित्व का ऊपर उल्लेख किया गया है, उनके अतिरिक्त अन्य रखते हैं। बिम्ब भी मिलने हैं । अवसर मिलने पर विशुद्ध सैद्धान्तिक - -- --- - - १. वही गाथा ४१४; बिम्बों पर भी प्रकाश डालने का प्रायास किया जायगा । २. कर्म काण्ड गाथा ४०८ ४. कर्मकाण्ड गाथा ७८४ ३. वही गाथा ४०८ उत्तरार्ध ५. जीवकाण्ड गाथा १६८
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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