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________________ २०. १. पूर्ण मृदुता-जलरेखा अत्यन्त मृदु होती है। ३. लेप स्वयं भौतिक एवं लिप्त करने की योग्यता २. गहनता का प्रायः प्रभाव-जल रेखा गहरी नहीं सम्पग्न होता है। होती। इस बिम्ब के उक्त तीनों चित्रों से स्पष्ट है कि लेश्या ३. मस्थायित्व-जलरेखा अस्थायी होती है, जल में कर्मपरिणति से युक्त प्रशुद्ध मात्मा में ही पायी जाती है। रेखा खींचते जाइये और वह नष्ट होती जायगी। अतः शुद्धात्मा में लेश्या का प्रभाव है। कषाय और योग के क्रोध की ऐसी परिणति, जिसमें परिणाम उग्र न हों तथा उदय से अनुरंजित पात्म प्रवृत्ति में इस प्रकार की योग्यता तत्काल ही परिणामों में शांति उत्पन्न हो जाय । इस विद्यमान है, जिससे प्रात्मा पुण्य-पाप से लिप्त हो जाती है। प्रकार का क्रोष मन्द और क्षणभंगुर होता है। यह संज्व- प्रशुद्ध आत्मा में ही कर्मबन्धापेक्षया स्निग्ध, रूक्षत्वादि गुण लनक्रोष यथास्यात चारित्र की उत्पत्ति में बाधक होता है। पाये जाते हैं, अतएव विकारों और मनोरागों की उत्पत्ति पत्थर, हड्डी, काठ और वेंत अपनी कठोरता की होती है । ये विकार और मनोराग मात्मा को पुण्य-पापमय हीनाधिकता के कारण क्रमशः अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, कर्मों से लिप्त करते हैं। अतएव "लिंपई' शब्द बिम्ब है प्रत्याख्यान और संज्वलन मान का यथार्थ स्वरूप उपस्थित और यह हमारे मूल मनोभावों के रागात्मक स्तरों का सफल आकलन करता है। करते है । बांस की जड़, मेढ़े का सींग, गोमूत्र और खुरपा करणमोवलाण-भवसिद्ध का स्वरूप स्पष्ट करने के अपनी वक्रता के परिणामानुसार माया के चारों रूपों की अभिव्यंजना करते हैं। यहां उपमानों का अवलम्बन लेकर लिए उपमान के रूप में इस शब्द बिम्ब को प्रस्तुत किया गया है। कनकोपल में निमित्त मिलने पर शुद्ध स्वर्णरूप बिम्बों को उपस्थित किया गया है। इन बिम्बों द्वारा होने की योग्यता है, पर निमित्त के प्रभाव में इस योग्यता उपमान की अपेक्षा भावों का उत्कर्ष एवं कषायों का की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। इसी प्रकार जिन जीवों स्वरूपानुभव और गुणानुभव अधिक स्पष्ट रूप में होता में अनन्त चतुष्टय को प्राप्त करने की योग्यता तो है, पर है। यदि उक्त चारों को उपमान मान लिया जाय तो कषायों के रूपानुभव को तीव्रता तो प्राप्त हो सकती है, पर क्रिया जो इस योग्यता को निमित्ताभाव के कारण कभी प्राप्त नहीं कर सकते, भवसिद्ध हैं। इस बिम्ब द्वारा निम्न चित्र व्यापारों की व्यापकता एवं विविधता मूर्तिमान होकर उपस्थित होते हैंसामने उपस्थित नहीं हो सकती। अतः प्राचार्य नेमिचन्द्र के उक्त उपमान बिम्ब का कार्य कर रहे हैं, इनके द्वारा १. अशुद्धता है। मनोवेगों की गहनता और स्थायित्व का स्पष्ट बोध होता २. अशुद्धता का दूर होना सम्भव है। ३. अशुद्धता को दूर करने के लिए कारण-कलाप सम्भव है, पर इस प्रकार के निमित्त ही नहीं मिल पाते, लिप -लेश्या के स्वरूप के स्पष्टीकरण के हेतु जिसमे व प्रशद हतु जिससे वह अशुद्धता दूर हो सके। 'लिपह' शब्द द्वारा एक सुन्दर और स्पष्ट बिम्ब उपस्थित ४. कनकोपल का मैल साफ करने के लिए रासायनिक हमा है। दीवाल धरातल या अन्य किसी लम्बाई-चौड़ाई पदार्थों का उपयोग किया जाता है, इसी तरह प्रात्मा के यक्त रूपाकृतिवाली वस्तु को लिप्त किया जाता है । अतः मैल दूर करने के लिए रत्नत्रय को धारण किया जाता है। इस बिम्ब द्वारा निम्न बातें उपस्थित होती हैं: मुहकमल.--मुख की मृदुता और सुषमा का भाव १. किसी मूत्तिक वस्तु को लिप्त किया जाता है-- व्यक्त करने के लिए साहित्यकार कमल का बिम्ब उपलिप्त करने के लिए किसी माधार का होना आवश्यक है। स्थित करते हैं । कमल में कोमलता, सुषमा, सुगन्धि, मादि २. लेप को ग्रहण करने की योग्यता-रूक्षादि गुणों गुण पाये जाते हैं; तीर्थंकर महावीर के मुख में भी इन सद्भाव। २. वही गाथा ५५७ १. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाया। ३. वही गाथा ७२७
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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