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साहित्य-समीक्षा
मयरण पराजय चरिउ
सम्पादक - डा० हीरालाल जैन एम० ए०, डी० लिट० प्रधान सम्पादकीयवक्तव्य डा० प्रा० मे० उपाध्ये अंग्रेजी हिन्दी प्रस्तावना लेखक- डा० हीरालाल जैन, प्रकाशक -- भारतीयज्ञानपीठ, काशी, श्री मूर्तिबेबी ग्रन्थमाला- अपभ्रंश धन्यनं० सन् १९६२, पृष्ठ संस्था - १७४, मूल्य--८ रुपये ।
'मयण पराजय चरिउ' अपभ्रंश का ललित काव्य है । इसमें सिद्धि रूपी वधू को प्राप्त करने के लिए जिनेन्द्र श्रौर कामदेव का युद्ध दिखाया गया है । जिनेन्द्र चरित्रपुरी के राजा हैं और कामदेव भावनगर का, जिनेन्द्र का मुख्य सेनापति सम्यक्त्व है और कामदेव का मोह । दर्शन और ज्ञान सम्यक्त्व के तथा राग और द्वेष काम देव के उपसेनापति हैं। पांच महाव्रत, सात तत्त्व, दशविध धर्म- शुक्ल ध्यान और निर्वेद आदि जिनेन्द्र के प्रमुख भट है । कामदेव के साथ भी मिथ्यात्व पाँच आस्रव, पांच इन्द्रियां, आर्त-रौद्र ध्यान, अठारह दोष और तीन शल्य आदि बलशाली योद्धा है जिनेन्द्र नायक दर्शन हाथी पर सवार है और मोह चित्तरूपी हाथी पर चढ़ा है। जिनेन्द्र के कोई पत्नी नहीं है, मोह के रति और प्रीति नाम की दो पत्नियां हैं। विश्वभर में केवल सिद्धि एक ऐसी रमणी है, जो कामदेव का वरण नहीं करना चाहती, इसी कारण कामदेव ने उसके साथ विवाह करने की हठ ठानी है। सिद्धि जिनेन्द्र से प्रेम करती है; किन्तु उसकी प्रतिज्ञा है कि जब तक कामदेव का समूल नाश न कर लेंगे, मेरे साथ विवाह न कर सकेंगे। जिनेन्द्र ने ऐसा ही किया और वे सिद्धि के साथ विवाह करने में समर्थ हो सके ।
'मयण पराजय चरिउ' की इस प्रतीकात्मक शैली के पीछे एक लम्बी परम्परा है। उत्तराध्ययन सूत्र में बिखरी । कथायें, छठा भूताङ्ग गाय धम्महामो, प्राकृतकथा वसुदेव हिण्डी (छठी शताब्दी ), हरिभद्र सूरिकृत समरादित्य कथा ( ८ वीं शती), उद्योतन सूरि की कुवलयमाला कहा ( शक सं० ७००) सिद्धधिकृत उपमिति भवप्रपंचकथा (वि०
सं०६२) और सोमप्रभाचार्य की 'मनः करण संलापकथा (वि० सं० १२४१) वे पूर्व-चिह्न हैं, जिनकी माने की कड़ी 'मयण पराजय चरित' है। दो जैन प्रतीकात्मक नाटक भी हैं जो 'मयण पराजय चरिउ' के पहले लिखे गए । यशः पाल मोढ़ का मोह पराजय' (१२२६-३२ ई०) गुजरात के सम्राट् कुमारपाल द्वारा बनवाये गए कुमार बिहार में महावीरोत्सव के समय खेला गया था। 'ज्ञान सूर्योदय' अध्यात्म का एक सुन्दर प्रतीकात्मक नाटक है। उसके रचयिता एक जैन साधु वादिचन्द्र सूरि थे।
तुलनात्मक परीक्षण से सिद्ध है कि प्रतीकात्मक शैली के सभी काव्यों और नाटकों में 'मयण पराजय चरिउ' का अपना एक विशिष्ट स्थान है । उसके रचयिता श्री हरदेव एक मंजे हुए कवि तथा जैन सिद्धान्त के ज्ञाता थे । आगे चलकर उन्हीं के वंशज श्री नागदेव ने संस्कृत में मदन पराजय चरित का निर्माण किया था किन्तु उसमें भी वैसा काव्य सौष्ठव नहीं है। मध्कालीन हिन्दी के जैन कवियों ने अनेक रूपक काव्यों का निर्माण किया। उनमें अध्यात्म परकता है और लालित्य भी । मयणपराजय चरिउ का उन पर स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।
डा० हीरालाल जैन ने तीन हस्तलिखित प्रतियों के प्राधार पर इस ग्रन्थ का सम्पादन किया है । सम्पादन उत्तम और सभी दृष्टियों से पूर्ण है प्राकृत और अपभ्रंश के ग्रन्थों के सम्पादन में डा० हीरालाल को प्रामाणिक माना जाता है। मूल का हिन्दी अनुवाद अत्यावश्यक था, उसके बिना हिन्दी पाठक ग्रन्थ के रसास्वादन से बन्चित ही रह जाते । सरलभाषा में होने से अनुवाद उपयोगी प्रमाणित होगा । प्रस्तावना अंग्रेजी और हिन्दी दोनों ही. भाषाओं में लिखी गई है। उसका अपना एक पृथक महत्व है । उसे यदि हम एक शोध निबन्ध कहें तो प्रत्युक्ति न होगी। उसमें मयण पराजय चरिउ से सम्बन्धित सभी पह तुपों पर विचार किया गया है परिशिष्ट सात भागों में विभक्त है। उसमें प्रस्तावना की प्राधारभूत मूल सामग्री का संकलन है । इसके अतिरिक्त श्रयं बोधक टिप्पण और राज्य कोष प्रत्य के अध्ययन की कुञ्जी हैं। ऐसे आकर्षक,