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अपभ्रंश के चर्चरी-ग्रन्थों के भाष्यों में चर्चरी शब्द का अर्थ स्पष्ट होते है। ' हिन्दी शब्द सागर ने भी इन्हीं कोष अर्थ खल बताया गया है। जिनदत्तसूरि की एक चर्चरी ग्रन्थों के अर्थों का समर्थन किया है। में उसके टीकाकार श्री जिनपाल उपाध्याय ने लिखा है कि
वास्तव में इन पर्थो से यह स्पष्ट होता है कि चर्चरी यह भाषा-निबद्ध-गान नाच-नाच कर गाया जाता है । इस
एक प्रकार का गीत विशेष था जो समूह में गाया जाता पर्चरी का प्रथम पद इस प्रकार है
था। यह ज्ञान इतना अधिक लोक प्रचलित था कि इसे कवव प्रउववु जुविरबइ नवरसभरसहिउ लोकगीत की संज्ञा सरलता से दी जा सकती है। वास्तव लद्ध पसिद्धिहि सुकइहि सायर जो महिउ
में इसकी पुष्टि १३वीं शताब्दी के जिनदत्त सूरि नामक जैन सुकह माहुति पसंसहि जे तसु सुहगुरूह
संत कवि ने लोक प्रचलित चर्चरी और रासक जाति के साहु न मुणइ भयाणुय मइजिय सुरगुरुहु । गीतों का सहारा लिया था, इस तथ्य से होती है ।चर्चरी
उन दिनों जनता में बड़े चाव से गाई जाती रही होगी। चर्चरी शब्द की व्युत्पत्ति का अनुमान (पा० चच्चर)
श्री हर्षदेव की रलावली तथा बाणभट्ट की रचनाओं से भी चोरट्टा-चौटुं, चौक से भी किया जा सकता है, (जहां
चर्चरी गीत की सूचना प्राप्त होती है । १२ वी शताब्दी लोग इकट्ठे होकर नृत्य सहित गान करते हैं)। नृत्य
में सोमप्रभ ने वसन्त काल में चर्चरी का गान सुना था। सहित गाने वालों के समूह को भी चर्चरी कहते है। संस्कृत में चर्चरी का अर्थ है हाथ की ताल की आवाज १३वीं शताब्दी के लवखण नामक कवि ने यमुना नदी
और इस कारण भी उसका यह नाम पड़ा हो यह असम्भव के आस-पास बसे रायवड्डिय नगर का वर्णन किया है। नहीं है संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ में चर्चरी के कई अर्थ दिए हुए हैं।' पाइयसद्दमहण्णवो' में चर्चरी के अनेक प्राचीन १-देखिये पाइयसद्दमहण्णवो-पं. हरगोबिंददास
सेठ कृत-पृ० ३६७ । चच्चरिया (स्त्री०) (चर्चरिका) दवणा जैसे फूल फूल रहे थे। घर घर रेणु (रज) नृत्य विशेष (रंभा) सहित रति पिंजरित (व्याप्त) रहने वाली) पाम्रतरू की चच्चरी-स्त्री [चर्चरी] १. गीत विशेष, एकप्रकार मंजरी शोभा पाती थी, घर-घर चर्चरी कौतूहल थे। का गान-"वित्थरिय चच्चरीरव मुहरिय उजाण घर-घर हिंडोले खाते हुए झूलते हुए सोहला गाते थे, भु भागे" (सुर ३,५४) । "पारंभिय चच्चरीगीया" (सुपा घर-घर वस्त्र-आभूषणों की शोभा की गई थी। घर-घर ५५) । २. गाने वाली टोली, गाने वालों का यूथ "पवत्ते महान यश के पोधभरे थे। घर-घर रूप से रंजित मनवाली मयण महसवे निग्गयासु विचित्तवेसासु नयर चच्चरीसु कह युवतियाँ दर्पण सहित देखती थी, घर-घर यश के मंगल नीय चच्चरी अम्हाणा चच्चरीये समासन्नं परिव्याइ" (स० कलश सजाए हुए थे। घर-घर देवता अवतरित थे और ४२) । ३. छन्द विशेष (पिंग)। ४. हाथ की ताली की घर-घर श्रृंगार वेश धारण करती हुई उत्तम युवतियों आवाज । ने नाच प्रारंभ किए थे। (भविसयत्तकहाधनपालकृत ८-६) २-चच्चरी संज्ञा (स्त्री) सं० १-भ्रमरा, भंवरी,
१. देखिए अपभ्रंश काव्यत्रयी-श्री सी० डी० २-चांचरि होली में गाने का यह गीत, ३-हरिप्रिया दलाल---प्रस्तावना भाग।
छंद ४-एक वर्णवृत्त । चचरा । चंनली। विबुध प्रिया २. संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ-संग्राहक द्वारका प्रसाद ५-छब्बीस मात्रामों का एक छन्द-संक्षिप्त हिन्दी शब्द शर्मा चतुर्वेदी चर्चरिका (स्त्री०) १-गीत विशेष, सागर-रामचन्द्र वर्मा पृ० ३४७ । २-ताल देना । चर्चरी-पंडितों का पाठ ३-उत्सव के ३. पसरन्त चार चच्चरिय भालु । जनपद-वर्ष १, समय का खेल ४-उत्सव का उल्लास ५-उत्सव ६- अंक ३, पृ०५-८ चापलूसी, ७-धुंघराले बाल ।
५. जउणा गइ उत्तर तडित्य रायवड्डिय-वही ।
नागा