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________________ भगवान कश्यप : ऋषभदेव श्री बाबू जयभगवान एडवोकेट बावजयभगवान जैन एम्बोकेट, पानीपत का यह लेख उनकी गहन विद्वत्ता का परिचायक है। जन होते हुए भी वेदों के उत्तम माता माने जाते हैं । इस लेख से ऐसा स्पष्ट है। किंतु मोहन-जोबड़ो को मूति के सम्बन्ध में उन्होंने तीसरे पैराग्राफ में जो लिखा है, वह भारतीय पुरातत्वों के मत से भिन्न है। मतवभिन्न विद्वानों का गुण है। बायोटेलाल जैन एम. प्रार० ए० एस० (जैन पुरातत्व के विशेषज्ञ) ने इस विषय में जो विचार व्यक्त किये हैं, वे इस प्रकार है, "यह मूर्ति हार कंकरणादि प्राभूषण और कवं लिंग-युक्त है। शिव जी की ई०पू०को तथा बाद की मूर्तियों में इसी प्रकार ऊवलिंग प्रचलित रहा है। जबकि एक मी जैनमूर्ति इस प्रकार उलिंग सहित प्राण तक न प्राप्त हुई है और न कोई प्रमाण ही उपलब्ध है। अतः यह मूर्ति शिवमूति ही है और सब पुरातत्वों ने इसे शिवमूर्ति ही माना है।"-सम्पावक] वृषभ भगवान् का एक नाम 'कश्यप' भी है। इनका सम्भवतः यह कश्यप पर्वत हिमालय का ही कोई भाग यह नाम सम्भवत: मानव जाति की उस शाखा के कारण मालूम होता है, जहाँ भगवान् वृषभ ने तप किया था। है, जिसमें भगवान का प्रादुर्भाव हुमा और जो विद्वानों के भगवान् की उक्त प्रकार की घोर तपस्या का परिचय विचारानुसार कर्मभूमि की प्रादि में कश्यप (Caspian) हमें शिव, रुद्र, वृषभ व महादेव की ३००० वर्ष ईसा पूर्व क्षेत्र से चलकर ब्रह्मपुत्र नदी के रास्ते भारत के पूर्वी भाग की उस प्राचीन मूति से भी मिलता है जो सिन्धु-उपत्यका मगध देश में पाकर पाबाद हुई । प्रस्तु; भगवान् का नाम के पुराने ध्वस्त नगर मोहन-जो-दड़ो की खुदाई से मिली कश्यप था। इनकी स्तुति करते हुए' जैन मागम में कहा है वह शिर पर त्रिशूल धारण किये हुए त्रिमुखी मूर्ति है, गया है कि "जैसे नक्षत्रों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है, वैसे ही धर्म- वह सिंह, हाथी, गेंडा आदि अनेक जंगली पशुओं से घिरे प्रवर्तकों में कश्यप श्रेष्ठ हैं। यजुर्वेद में भी तत्सम्बन्धी ऐसा वन में पचासन मुद्रा में ध्यानस्थ बैठी हुई है। ही बखान किया गया है "जैसे नक्षत्रों में चन्द्रमा (इन्द्र) (इन्द्र) इन्हीं भगवान् वृषभ की तथा इनके परम्परागत मार्ग श्रेष्ठ है, वैसे ही धर्म-प्रवर्तकों में वृषभ श्रेष्ठ है। अमृतदेव (अमृत के चाहने वाले) योगीजन शुद्ध और हर्षित मन से १. उत्तराध्ययन सूत्र २५-२६ नक्खणाणं मुह चंदो पाह्वान करते हुए उसका अभिनन्दन करते हैं। धम्माणं कासवो मुहं । इन कश्यप भगवान् की दुर्धर तपस्या की एक झांकी २. स्तोकानामिन्दुं प्रति शूर इन्द्रो वृषायमाणो वृषभहमें गोपथ ब्राह्मण' में मिलती है। इसमें वशिष्ठ, स्तुराबाट । विश्वामित्र, जमदग्नि, गौतम, भारद्वाज, गंगु, तपस्वी और धृतघुषा मनसा मोहदाना स्वाहा देवा अमृता भगस्त्य मादि अनेक ऋषियों के तथा उनके तप-पूत गिरि मादयन्ताम् । -"यजु० २०.४६" खंडों का उल्लेख करते हुए कहा है कि, "स्वयम्भू कश्यप ३. गोपथ ब्राह्मण (पूर्व) २.८ । ने कश्यप पर्वत पर तप किया।" 4. mohanjodaro and Indus civilisation-by कश्यप ने यह तप भेड़िया, रीछ, बाघ, लकड़बग्धा, John marshall-Vol 1 Plate 12 Figure वराह, सर्प, नेवला मादि अनेक क्रूर मौर हिंसक जन्तुओं N. 17Further excavation at mohanjodaro से घिरे हुए क्षेत्र में किया है । इस कश्यपतुङ्ग के दर्शनमात्र by J. H. Mackay Vol II folate N, XCW से अथवा इसकी प्रदक्षिणा करने से सिद्धि मिलती है। Figure N, 420
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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