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________________ किरण ४ कार्तिकेय रानी ने ज्यादः सोच-विचार नहीं किया। वह झपटकर कमरे के भीतर गई और तलवार उठाकर नीचे उतरी । चीता पास आ गया था । लकड़हारिन ने अपने लड़के को छाती के नीचे वा । अपनी सूखी हड्डियों के शरीर का लड़के तरफ वितानसा तान दिया था। पीता लकड़हारिन के ऊपर पटने वाला ही था कि रानी ने एक लम्बी छलाँग मारकर चीते के ऊपर तलवार का वार कर दिया। परन्तु वार पूरा न बैठा और रानी छलांग मारने से गिर पड़ी । चीने लकड़हारिन को छोड़ा परन्तु रानी के ऊपर आक्रमण किया । रानी की गर्दन पर चीते का पजा जम कर बैठा। फिर भी रानी उठी, उठकर बैठ भी गई परन्तु उसी समय चीते ने पञ्जा वक्षःस्थल पर जमाया, जिसने वक्षःस्थल और पेट को चीर दिया। खून का प्रवाह छूटा । इसी अवस्था में चीते ने रानी को शिकार की तरह उठाया । परन्तु वह उठा ही न पाया था कि एक तीर ने उसे ढेर कर दिया । कुँवर ने चीते को ढेर कर दिया, परंतु माता की अवस्था देखकर घबरा गये। लकड़हारिन रो रही थी, परन्तु कुँवर के हृदय में इतना उत्ताप था कि बहने के लिये उनके हृदय में मांसू बचे ही न थे। [ 5 ] रानी, अर्धमृतक अवस्था में पड़ी थी। कोठरी मे कुँवर, दो-तीन पुरुष और तीन-चार स्त्रियाँ थी । कुटी के बाहर सैकड़ों स्त्री-पुरुष बैठे-बैठे रो रहे थे। अभी तक रानी के मुंह से एक शब्द भी न निकला था। भाषी रात के समय रानी ने प्रांखें खोलीं। कुछ देर तक कुंवर की 中心就 तरफ देखती रही, फिर धीरे से बोली- 'कुंवर तुम मेरे पीछे राजा से भिखारी हुए मुझे क्षमा करना और पर लौटकर राज्य सम्हालना ।' cour कुँवर का गला रुंध गया था। उनकी भांखें धाँसू बहा रही थीं। बड़ी मुश्किल से उनने कहा माँ ! मैं भिखारी बना, परन्तु अपनी इच्छा से बना । मुझे इसी में सुख मालूम हुआ, परन्तु तुम्हें भिखारी की मां बनने में कौनसा सुख था ? तुम्हें तो मेरे पीछे ही रानी से भिखारी की माँ बनना पड़ा । -- 'कुँवर ! पुत्र होकर के भी तुमने गुरु का काम किया है । तुमने मुझे दासता की नींद से जगाया है । तुमने जो मेरी सेवा की वह तो अलग, परन्तु तुम्हारे इसी काम से तुम उऋण हो गये हो ।' रानी ने ये बातें बड़ी मुश्किल से एक-एक शब्द पर ठहरकर कह पाई थीं। इसके बाद रानी फिर प्रचेत हो गई और सदा के लिये सो गई । उस भीषण रात्रि में सैकड़ों कण्ठों से निकले हुए करुण क्रन्दन से ग्राकाश गूंज गया । दूसरे दिन हजारों श्रादमियों ने मिलकर रानी का अग्नि संस्कार किया। उसी दिन शाम को कुंवर शौच को गये थे। परन्तु फिर वे नहीं लौटे किसानों ने बहुत खोज की, परन्तु वे सफल न हुए। 1 अब उस टेकरी पर एक मन्दिर बन गया है, जिसे लोग 'माँ बेटे का मन्दिर' कहते हैं। साल में वहाँ एक बार मेला भी लगता है । कहा जाता है कि अनेक लोगों को माताजी अब भी दर्शन दिया करती है और उस टेकरी के आस-पास कोई जंगली जानवर नहीं आ पाता । क्रमश: अनेकान्त की पुरानी फाइलें प्रकान्त की कुछ पुरानी फाइलें अवशिष्ट है जिनमें इतिहास पुरातत्व, दर्शन और साहित्य के सम्बन्ध में खोजपूर्ण लेख लिखे गए हैं। जो पठनीय तथा संग्रहणीय है । फाइलें अनेकान्त के लागत मूल्य पर दी जायेंगी, पोस्टेज खर्च अलग होगा । फाइलें वर्ष ४, ५, ८, ९, १०, ११, १२, १३, १४ की हैं अगर आपने अभी तक नहीं मंगाई है तो शीघ्र ही मंगवा लीजिये, क्योंकि प्रतियाँ घोड़ी ही भवशिष्ट है। मैनेजर 'अनेकान्त' वोर सेवामन्दिर, २१ बरियागंज, बिल्ली
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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