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________________ कार्तिकेय लेखक - श्री सत्याश्रय भारती [१] उस दिन राज सभा में बड़े-बड़े विद्वानों का जमघट था । महाराज ने निमन्त्रण देकर दूर-दूर के विद्वानों को बुलाया था। बड़े-बड़े वेदपाठी ब्राह्मण, और सिद्धांतरहसन विद्वान् एकत्रित हुए थे। खबर थी कि आज महाराज सब विद्वानों के सामने एक गम्भीर प्रश्न रखेंगे, और उस पर विद्वानों का तर्क-वितर्क होगा। महाराज प्राये । सबने उठकर उनका अभिवादन किया महाराज की उमर क़रीब बत्तीस तेतीस वर्ष की थी। चेहरा गौर और भरा हुआ था छाती विशाल थी। मस्तिष्क से बुद्धिमत्तामलक रही थी माँखों में भी तेज था परन्तु वह ऐसा शुद्ध न था जैसा कि चाहिए । 1 महाराज के एक तरफ प्रधान मंत्री बैठे थे। उनकी नजर महाराज की तरफ़ थी। ऐसा मालूम होता था कि वे महाराज के किसी इशारे की बाट देख रहे हैं। सभा में शान्ति थी। सभी सोच रहे थे कि, न मालूम कौन सा प्रश्न है ? विद्वानों को मन ही मन यह चिन्ता सता रही थी कि प्राज कहीं विद्वत्ता में दाग़ न लग जाय । जब सभी लोग उत्सुकता के साथ आँखें फाड़-फाड़कर महाराज की ओर देख रहे थे तब महाराज ने प्रधान मंत्री को इशारा किया। इशारा पाते ही मन्त्री महोदय उठे धौर धीरे-धीरे किन्तु गंभीर स्वर में बोलने लगे- "आज महाराज ने एक गम्भीर प्रश्न पर विचार करने के लिए आप लोगों को कष्ट दिया है। यद्यपि महाराज साहिब ने और मैं ने इस प्रश्न पर खूब विचार कर लिया है, फिर भी आप लोग विद्वान है, आप लोगों के तर्क-वितर्क से जो बात तय होगी वह बिल्कुल सत्य होगी। जो प्रश्न महाराज को और मुझे बहुत विकट मालूम होता है, संभव है वह भारको बहुत सरल मालूम हो, क्योंकि भाप लोग विद्या-बुद्धि में बड़े बड़े है जिसका कि हमें सदा भरोसा है।" पंडितों ने जब अपनी प्रशंसा सुनी तो फूलकर कुप्पा हो गये। भापस में कहने लगे- वाह ! कैसी विनय है। मजी फूल झड़ते हैं । बड़े पद पर पहुँचकर भी लेश-मात्र घमण्ड नहीं है। जब इस प्रकार फुसफुसाहट फैली तो मंत्री महोदय एक मिनिट को चप हो गये और उसने पूर्ण दृष्टि से महाराज की तरफ देखा । महाराज ने अपनी प्राखें और मुंह इस तरह मटकाया जैसे कोई किसी को शाबासी दे रहा हो। बाद में मंत्री महोदय ने फिर बोलना शुरू किया। "महाराज भाप लोगों से पहिले यह पूछना चाहते हैं कि कोई मनुष्य अगर किसी चीज को पैदा करता है तो उस चीज का पूरा मालिक वह मनुष्य है कि नही ?" - - प्रश्न सुनते ही प्रायः सभी विद्वानों के मुंह पर ईषद्धास्य की रेखा बिजली की तरह चमक गई। एक वृद्ध विद्वान् ने उठकर जरा मुसकराते हुए गम्भीरता से कहा – महाराज ! साप सरीले विद्या-प्रेमी नरेश को पाकर हम लोग सौभाग्यशाली हुए हैं । यद्यपि प्रश्न साधारण है लेकिन साधारण से साधारण बात भी आप विद्वानों की सलाह लेकर मानते हैं, -यह बात असाधारण है। महाराज इसमें सन्देह नहीं कि उत्पन्न हुई वस्तु पर उत्पादक का पूर्ण अधिकार है। हम सब लोग इस बात को मानते हैं । वृद्ध विद्वान् की बात सुनकर मन्त्री और महाराज ने इस तरह मुसकरा दिया जैसे कोई व्याथ चिडियों को अपने जाल में फँसा हुआ देखकर मुसकुराता है। इसके बाद महाराज ने मन्त्री से कहा - प्रधानजी, आगे बढ़ो, ! मन्त्री फिर कुछ कहने को तैयार ही हुए थे कि एक तरफ़ से भावाज आई - "ठहरिये मुझे कुछ कहना है।" अथ से इति तक सभी लोग चौंक पड़े। सबकी नजर एक पतले और लम्बे कद के युवक की तरफ़ पड़ी । महाराज ने कहा- विद्वन्! क्या कहना चाहते हो ? युवक विद्वान् बोला- महाराज उत्पादक होने से ही कोई किसी पीज का मालिक नहीं कहला सकता। यह नियम जड़ या जड़ तुल्य पदार्थों के लिए ही बनाया जा सकता है, न कि चेतन पदार्थों के लिए मनुष्य वेतन पदार्थों का संरक्षक हो सकता है न कि मालिक "
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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