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________________ तीन महत्वपूर्ण पत्र (१) श्री महेन्द्र जी, प्रागरा प्रिय बन्धु आपका कृपा पत्र मिला । अनेकान्त ने अपने जीवन में जो सेवा साहित्य और समाज की की है वही मूल्यवान और प्रशंसनीय रही है। उसका प्रकाशन पुनः प्रारम्भ करके आपने बड़ी भारी आवश्यकता की पूर्ति की है। साहित्य के एक ऐसे अङ्ग की पूर्ति आप इसके द्वारा कर रहे हैं जो शताब्दियों से जन साधारण के सामने नहीं पाया और जिसके प्रकाश में लाने की महान् मावश्यकता है। आप अपने प्रयत्न में सफल हो रहे हैं और प्राशा है कि दिन पर दिन और अधिक सफल होते जाएंगे। (२) डा० दशरथ शर्मा एम० ए० डी० लिट् कृष्णनगर आदरणीय शास्त्री जी; _ 'अनेकान्त की जून १९६२ की प्रति के लिए अनेक धन्यवाद । अनेकान्त के खोजपूर्ण लेखों के लिए मैं सदा ही उत्सुक रहा हूँ। जून के अंक में भी आपने विविधरूप और ज्ञानवर्धक सामग्री प्रस्तुत की है। अनेकान्त के पुनः प्रकाशन के लिए सभी जैन समाज अभिनन्ध है। क्या हम आशा रख सकते है कि 'सर्वोदय तीर्य संरक्षण-व्रती' यह पत्र भविष्य में निगबाध गति से अपना कार्य सम्पन्न करता रहेगा। (३) पं० अमृतलाल दर्शनाचार्य वाराणसी 'अनेकान्त' की दूसरी किरण मिली । एक बार प्राद्योपान्त पढ़ गया । चित प्रसन्न हो उठा। रानी मृगावती की कहानी को कुछ जैनंतर विद्वानों ने भी चाव से पढ़ी। पापका अध्यवसाय इलाध्य है। अनेकान्त का प्रकाशन बहुत ही आवश्यक था। इसके प्रकाशन से पूरी जैन समाज को प्रसन्नता है। वीर सेवा मन्दिर और "अनेकान्त” के सहायक १०००) श्री मिश्रीलाल जी धर्मचन्द जी जैन, कलकत्ता ५००) श्री गमजीवनदास जी मगवगी, कलकत्ता ५००) श्री गजगज जी मरावगी, कलकना ५००) श्री नथमल जी सेठी, कलकत्ता ५.००) श्री वैजनाथ जी धर्मचन्द जी, कलकत्ता ५००) श्री रतनलाल जी झाझरी, कलकत्ता ०५१) ग. बा. हरवचन्द जी जैन, राँची २५१) श्री अमरचन्द जी जैन (पहाड्या), कलकत्ता २५१) श्री म० सि धन्यकुमार जी जैन, कटनी ०५०) श्री बंशीधर जी जुगलकिशोर जी, कलकत्ता २५०) श्री जुगमन्दिग्दाम जी जैन, कलकत्ता २५०) श्री मिघई कु.दनलाल जी, कटनी, २५०) श्री महावीरप्रमाद जी अग्रवाल, कलकत्ता २५०) श्री बी पार मी जैन, कलकत्ता २५०) श्री रामस्वरूप जी नेभिचन्द, कलकत्ता १५०) श्री.बजरंगलाल जी चन्द्रकुमार, कलकत्ता १५०) श्री चम्पालाल जी सरावगी, कलकत्ता १५०) श्री जगमोहन जी सरावगी, कलकत्ता १५०) श्री कस्तूरचन्द जी प्रानन्दीलाल, कलकत्ता १५०) श्री कन्हैयालाल जी सीताराम, कलकत्ता १५०) श्री पं० बाबूलाल जी जैन, कलकत्ता १५०) श्री मालीराम जी सरावगी, कलकत्ता १५०) श्री प्रतापमल जी मदनलाल जी पांड्या, कलकत्ता १५०) श्री भागचन्द जी पाटनी, कलकत्ता १५०) श्री शिखरचन्द जी सगवगी, कलकत्ता १५०) श्री सुरेन्द्रनाथ जी नरेन्द्रनाथ, कलकत्ता १००) श्री रूपचन्द जी जैन, कलकत्ता १००) श्री बद्रीप्रमाद जी प्रात्माराम, पटना
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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