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________________ किरण १ ज्या व्याख्या प्रामाप्ति परन्डागम का टीका अन्य पा? से लिखा (महाबन्धे) महाबन्ध पर (पंचाधिका प्रष्ट सहाद्विसप्तत्या) ७२ हजार श्लोक प्रमाण संस्कृत प्राकृत सहस्र ग्रंथां व्याख्या) पांच अधिक पाठ हजार ग्रंथ प्रमाण भाषा मिश्रित धवला टीका लिखी। व्याख्या को लिखा। उक्त दोनों ही उदाहरणों से यही प्रकट होता है कि प्रतः पाँच खण्डों की टीका का नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति व्याख्या प्रज्ञप्ति नामक ग्रंथ का सम्बन्ध षट् खण्डागम के है यह बात तो उक्त श्लोकों से व्यक्त नहीं होती । बल्कि छठे खण्ड से था। बप्पदेव ने उसे षष्ठ खण्ड के रूप में उनसे तो यही व्यक्त होता है कि बप्पदेव ने पाँच खण्डों पांच खण्डों में मिलाकर पट खण्डों की निष्पत्ति की और में व्याख्याप्रज्ञप्ति को सम्मिलित न करके पहले • खण्ड फिर षट् खण्डागम पर टीका लिखी । इसी तरह वीरसेन निष्पन्न किए और फिर इन पर टीका रची। स्वामी ने भी पहले व्याख्या प्रज्ञप्ति को प्राप्त कर उसके आधार पर बन्धनादि अट्ठारह अधिकारों के द्वारा सत्कर्म श्रुतावतार में ही आगे जो श्लोक वीरसेन स्वामी नामक छठे खण्ड की रचना की और तब उन षट् खण्डों से सम्बद्ध हैं वे भी इस दृष्टि से विचारणीय हैं । वे श्लोक पर धवला टीका रची। इस प्रकार हैं _अतः व्याख्या प्रज्ञप्ति को षट् खण्डागम के प्राद्य पांच "व्याख्या प्रजप्तिमवाप्य पूर्व पट खण्डत स्तत स्तस्मिन् ।। खण्डों की टीका समझना भूल है। इसी तरह उसके रचउपरितमबन्धनाद्य धिकार रष्टादश विकल्पः ॥१८॥ यिता बप्पदेव थे यह भी अभी विचारणीय है । बप्पदेव ने सत्कर्मनामधेयं पप्ठं खण्डं विधाय संक्षिप्य । कपाय प्राभृत पर उच्चारणा वृत्ति रची थी, जब धवला इति ष णां खण्डानां ग्रंथ सहमद्वि सप्तत्या ॥१८॥ टीका में उनके नाम के साथ उसका उल्लेख मिलता है। प्राकृत संस्कृत भाषामियां टीका विलिख्य धवलाख्याम्।" किन्तु धवला में व्याख्या प्राप्ति के केवल दो उल्लेख होने इन श्लोकों का भाव इस प्रकार लिया जाता है- पर भी उसे बप्पदेव कृत नहीं लिखा है। दोनों उल्लेख भी 'वहाँ वीरसेन स्वामी को व्याख्याप्रज्ञप्ति (बप्पदेव गरु बहुत महत्वपूर्ण नहीं है । एक उल्लेख तो द्रव्य प्रमाणानुगम की बनाई हई टीका) प्राप्त हो गई। फिर उन्होंने ऊपर में हैं जिसमें बतलाया है कि 'लोक' वातवलयों से प्रतिष्ठित के बन्धादि अट्ठारह अधिकार पूरे करके सत्कर्म नामका है' ऐसा व्याख्याप्रज्ञप्ति का वचन है । दूसरा उल्लेख वेदना खण्ड में है वह कुछ बड़ा है और आयुबन्ध से सम्बद्ध हैं। छठवा खण्ड संक्षेप से तैयार किया और इस प्रकार छह उसे देकर कहा गया है कि इम व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र के खण्डों की ७२ हजार श्लोक प्रमाण प्राकृत और संस्कृत साथ पट् खण्डागम सूत्र में कैसे विरोध न होगा। उसका मिथित धवला टीका लिखी । उत्तर देते हुए वीरसेन स्वामी ने कहा है कि इस सूत्र से उक्त व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र भिन्न प्राचार्य के द्वारा बनाया (पट् खण्डागम १ पु० की प्रस्तावना पृ० ३८ ।) होने के कारण पृथक है, अतः उन दोनों में एकता नहीं हो जिस प्रकार की भूल बप्पदेव सम्बन्धी श्लोकों को सकती । समझने में की गई है वैसी ही भूल इन श्लोकों को भी वीरसेन स्वामी के इस समाधान से भी यही व्यक्त समझने में की गई है। होता है कि व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र भिन्न कतक कोई ग्रन्थ हैं और वह षट खण्डागम का टीका ग्राथ नहीं है। 'धाइनका अर्थ इस प्रकार होता है ख्या प्रज्ञप्ति सूत्र' शब्द से भी यही प्रकट होता है इसमें (षट् खण्डत पूर्व) पट् खण्डागम से पहले (व्याख्या व्याख्या प्रजाप्ति को सूत्र कहा है टीका नहीं कहा। अतः व्याख्या प्रजप्ति पट् खण्डागम का टीका ग्रन्थ प्रतीत नहीं प्रज्ञप्तिमवाप्य) व्याख्या प्रज्ञप्ति को पाकर (ततः तस्मिन्) होता। फिर उसमें (उपरितमवन्धनाद्यधिकारैः अष्टादशविकल्पैः) ऊपर के बन्धन आदि अट्ठारह अधिकारों के द्वारा (सत्क १ 'तं कधं जणिज्जदि ? लोगों वाद पदिट्ठिदों त्ति वियाहपण्णत्तिवयणादो।'-पु. ३, पृ० ३५ मनामधेयं पष्ठ खण्डं विधाय) सत्कर्म नामक छठे खण्ड २'एदेण वियाह पण्णत्ति सुत्तेण सह कहं ण विरोहो ? की रचना करके (संक्षिप्य) और उसे उसमें मिलाकर ण, एदम्हादो तस्स पुधभूदस्स पाइरियभेदेण भेदमावण्णस्स (इति पण्णां खण्डानां) इस प्रकार छहों खण्डों की (ग्रन्थ एयत्ताभावादो।-पट् खण्डागम, पु०१०, पृ० २३८ ।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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