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________________ १३२ अनेकान्त वर्ष १५ चत्तारि सरणं पवज्जामि-अरिहंते सरणं पवज्जामि, पर्व ४०-प्ररहंतसिद्धसाहूधम्मो तुह मंगलं होउ ॥१७॥ सिद्ध सरणं पवज्जामि, साहु सरणं पवज्जामि, केवलि (५) पप्रचरित (रविषेणाचार्य कृत) पर्व ८६ पण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि ॥ अहंद्भ्योऽथ विमुक्तेभ्य आचार्येभ्यस्तथा विधा। यह 'चत्तारिदंडक पाठ' भी बोला जाता है । इस मंग- उपाध्यायगुरुभ्यश्च साधुभ्यश्च नमो नमः ॥१०४॥ लोत्तम शरण पाठ का सम्बन्ध नमस्कार मंत्र के साथ शुरू से अर्हन्तोऽथ विमुक्ताश्च साधवः केवलीरितः । ही बहुत प्राचीन समय से आज तक चला आ रहा है । नीचे धर्मश्च मंगलं शश्वदुत्तमं मे चतुष्टयं ।।१०५ । एतद्विषयक कुछ प्राचीन प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं :- पर्व ४८-ग्रहन्तो मंगलं संतु तव मिझाश्च मंगलं । (१) सामायिक दंडक (गौतम महर्षिकृत) में नमस्कार मंगलं साधवः सर्वे मंगलं जिनशासनम् ॥२१२।। मंत्र मंगलोत्तमशरणपाठ पूर्वक दिया हुआ है इस (६) वरांगचरित (जटासिंहनंदि कृत) सर्ग १५ पर प्रभाचन्द्राचार्य कृत प्राचीन संस्कृत टीका भी है शरणोतममांगल्यं नमस्कारपुरस्सरम् । देखो"क्रियाकलाप" पृ० १४२ से १४४ । ग्रतवृद्ध्यं हृदि ध्येयं सध्ययोरुभयोः सदा ॥१२१।। (२) पाक्षिकादिप्रतिक्रमण (गौतम कृत) देखो "क्रिया- (७) हरिवसपुगण (जिनसेनाचार्यकृत) सर्ग २२ कलाप पृ० १०५ पुण्यपंचनमस्कारादपाठपनित्रितो। इच्छामि भंते ! पडिक्कमणमिदं सुत्तस्स मूलपदाणं चतुगत्तपमागल्यशरणप्रतिपादिनौ ॥२६॥ उत्तरपदाणमच्चासणदाए त जहा–णमोक्कारपदे अर महापुराण (जिनमेनाचार्य कृत) पर्व २५ हंतपदे सिद्धपदे पाइरियपदे उवज्झायपदे साहुपदे मंगल चतु गणमांगल्यमूर्तिस्त्वं चतुरनधीः । पदे, लोगोत्तमपदे सरणपदे...अंगगेसु पुवंगेसु पाहुडेसु .. पंचब्रह्ममयो देव पावनरत्वं पुनीहि माम् ॥७७।। से अक्सरहीणं वा पदहीणं वा सरहीणं वा वंजणहीणं वा प्रत्यहीणं वा......तस्स मिच्छा मे दुक्कडं । अनेकार्थनाममाला (धनंजय कृत) इसमें नमस्कारमंत्र को मंगलोत्तमशरणपाठ पूर्वक अर्हत्मिहमिति द्वावप्यहत्गिदाभिधायिनी । उल्लेखित किया है और अंग पूर्वांग पाहादि से पूर्व स्थान अहंदादीनपि प्राहुः शरणोत्तनमंगलान् ।।४।। दिया है इसमे इसकी महत्ता और अतिप्राचीनता का परि- (१०) जानार्णव (शुभचन्द्राचार्य कृत) अध्याय ३८ चय मिलता है। गुरुपंचनमस्कारलक्षणं मंत्रमूजितं । (३) भावपाहुड (कुन्दकुन्दाचार्यकृत) (षट् पाहुड,-श्रुत- विचिन्तयेज्जगज्जन्तुपवित्रीकरणक्षमं ॥३८॥ ___ सागरी टीकायुक्त पृ० २७३) मगलगरणोत्तमपदनिकुरंब यस्तु संयमी स्मरति । झायहि पंच वि गुरवे चउमंगलशरणलोयपरियरिए। अविकलमे काग्रधिया म चापवर्गश्रियं श्रयति ।।५७।। णरसुरखेचरमहिए. पाराहणणायगे वीरे ॥१२२॥ (११) सुभाषितरत्नसंदोह (अमितगति कृत) अध्याय ३१ (टीका-ध्याय त्वं हे मुने ! पंचापि गुरून् पंचपरमेष्ठिनः नमस्कारादिकं ध्येयं शरणोत्तममंगलं । चतु:मंगललोकोत्तमशरणभूतानित्यर्थः । ) संध्यानत्रितये शश्वदेकाग्रकृतचेतमा ।।८०५।। (४) पउमचरिय (विमलसूरि कृत) पर्व ८६ (१२) चारित्रमार (चामुंडराय कृत) के प्रारम्भ मे इणमो परहंताणं सिद्धाण णमो सिवं उवगयाणं । अरिहननरजोहननरहस्यहरं पूजनार्ह महन्तम् । पायरियउवउझायाणं णमो सया सव्वसाहूणं ॥६॥ सिद्धान् सिद्धाष्टगुणान् रलत्रयमाधकान् स्तुवे साधून् ।। अरहंतो सिद्धो वि य साहू तह केवलीण धम्मो य । श्रीमज्जिनेन्द्रकथिताय सुमंगलाय, एए हवंति निययं, चत्तारि वि मंगलं मझ ॥६४॥ लोकोत्तमाय शरणाय विनयजतोः । जावद्दया परहंता माणुमखित्तादि होति जयनाहा । धर्माय कायवचनाशयशुद्धितोऽहं, तिविहेण पणमिऊणं ताणं सरणं पवण्णोऽहं ॥६॥ स्वर्गापवर्गफलदाय नमस्करोमि ॥
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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