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________________ मंगलोत्तमशरण पाठ रतनलाल कटारिया णमो अरहताणं, णमो मिद्धाणं, णमो पाइरियाणं, अर्थ-यह पंचनमस्कार मन्त्र सब पापों का नाश करन णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥' वाला है और सब मंगलों में प्रथम मंगल है। श्वे. संप्रदाय यह जैनसंस्कृति का प्रति प्रसिद्ध मूलमन्त्र है । यह में इस गाथा के ४ पद और नमस्कारमंत्र के ५ पदों को नमस्कार महामंत्र, अपगजित मंत्र, ओंकार, प्रणव (प्रणम) मिलाकर ६ पद वाला नवकारमंत्र भी माना है। मंत्र, पंचनमस्कार मंत्र, पंचमंगल, महाश्रुतस्कंध, अनादिसिद्ध- गुरुपंचनमस्कारलक्षणं मंत्रमूर्जितम् । मन्त्र, पंचपरमेष्ठी मन्त्र-आदि अनेक नामों से पुकारा विचिन्तयेज्जगज्जतुपवित्रीकरणक्षमं ॥३८॥ जाता है। श्रियमात्यंतिकी प्राप्ता योगिनो येऽत्र केचन। यह एक ही मंत्र सब सम्पदामों-अभ्युदय एवं निश्रेयस अमुमेव महामंत्र ते समाराध्य केवलं ॥४॥ का दाता है। इसमें का एक प्रारम्भिक 'अहम्, पद ही ऐसा प्रभावमस्य निश्शेषं योगिनामप्यगोचरं । है कि उसमें प्रकार से लेकर हकार तक सब स्वर और अनभिज्ञो जनो ब्रूते य. स मन्येऽनिलादितः ॥४२॥ व्यंजन आ जाते हैं। अनेक नवीन-नवीन मन्त्रों का जो अनेनैव विशुद्ध्यंति जन्तवः पापपंकिताः । निर्माण हुआ है, वे सब इसीके रूपान्तर हैं, अत: नवीन- अनेनैव विमुच्यते भवक्लेशान्मनीषिणः ॥४३॥ नवीन मन्त्रों को सिद्ध करने के झमेले में न पड़कर एकाग्र- असावेव जगत्यरिमन्भव्यव्यसनबांधवः । मन से एक मात्र इसी का सदैव आराधन करना चाहिए। अमुं विहाय सत्त्वानां नान्यः कश्चित्कृपाकरः ॥४४॥ इस मंत्र के विषय में बताया है कि --ज्ञानार्णव, (शुभचन्द्र कृत) अध्याय ३८ । 'एसो पंचणमोयारो सव्वपावप्पणासणो । अर्थ--यह पचनमस्कार मंत्र सर्वोत्कृष्ट है और संसार मंगलेसु य सन्वेसु पढमं हवदि मंगलं ॥१३॥ के प्राणियों को पवित्र करने में समर्थ है अतः इसका ध्यान 'मूलाचार, अधिकार ७' करना चाहिए । ३८ । जिन ऋषियों ने मोक्ष प्राप्त किया १. काऊण णमोक्कारं अरहताणं तहेव सिद्धाणं । है वह सिर्फ इस मन्त्र का पागधन करके ही प्राप्त किया पाइरियउवज्झाए लोगम्मि य सव्वसाहूणं ॥१॥ है।४। इसका प्रभाव योगियों के भी अगोचर है। —'मूलाचार, अधिकार ७ अजानीजन जो इसके विषय में कुछ भी कहने का दावा २. अपराजितमंत्रोऽयं सर्वविघ्नविनाशन. । मंगलेप य सर्वेषु प्रथमं मंगलं मतः ।। करते हैं वह पागल का प्रलाप समझना चाहिए ।।२। एकAmmammmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm मात्र इसी के द्वारा पापी अपने पापों से शुद्ध होते हैं और चय हो जाता है तो सब दुख दूर हो जाते हैं और प्रात्मा इसीके द्वारा ज्ञानी संसार के दुःखों से विमुक्त होते हैं ।४३१ निर्मल होकर प्रभु की सेवा में लीन रह उठती है। कबीर इस समार में भव्यजीवों का संकट में यही एक बंधु है का 'सब प्रकार से समर्थ' और जिनदत्त सूरि का 'शक्ति- इसको छोडकर संसारी प्राणियों का और कोई सहायक शाली' एक ही अर्थ के प्रकाशक है। इस प्रकार कबीर नहीं है।४॥ मादि सन्त कवियों का सतगुरु जैन अपभ्रंश में पूर्ण रूप से इस पंचनमस्कार महामन्त्र के माथवर्तमान था। क्रमशः चत्तारि मंगलं-परिहंता मंगलं, मिद्धा मंगलं, साहू ८. पूरे सूं परचा भया, सब दुख मेल्या दूरि । मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । निर्मल कीन्हीं प्रात्मा, ताथै सदा हरि ॥ चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंता लोगृतमा, सिद्धा लोगुवही, ३५ वां दोहा, पृष्ठ १४ । तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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