SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण १ महावीर के महावाक्य ऐसी स्थिति में जो लोग जाति-पाँति के भेद के कारण और दूसरे का हक हड़प लेने की मनोवृत्ति को छोड़ दे। कर्म के बंधन में फंसकर अपने को इन्सान समझना ही इस प्रकार की सदिच्छा को महावीर ने अहिसा कहा है। छोड़ देते थे, उनके लिए महावीर का यह सिद्धांत कितना उनका महावाक्य हैप्रेरणादायक रहा होगा और उन्हें तत्कालीन सामंती समया सव्वभूएसु, सत्तु-मित्तेसु वा जगे। समाज के खिलाफ़ कितना विद्रोह करना पड़ा होगा। पाणाइवायविरई, जावज्जीवाए दुक्करं ।। मनुष्यमात्र में आत्मविश्वास की दृढ़ भावना पैदा कर देना सब जीवों के प्रति चाहे वह शत्रु हो या मित्र समभाव उसमें पुरुषार्थ की चिनगारी फंक देना--इससे बढ़कर भला रखना और जीव हिंसा का त्याग करना बहुत कठिन है। जनकल्याणकारी सिद्धांत और कौन-सा हो सकता है ? सत्य होने पर भी, कठोर वचन बोलने को महावीर ___ इसी कर्म सिद्धांत को ध्यान में रखकर वेदों को मानने भगवान् ने हिंसा कहा हैवाले ब्राह्मणों को लक्ष्य करते हुए महावीर भगवान ने तहेव फरसा भासा गुरुभूप्रोवघाइणी । दूसरा महावाक्य कहा है। सच्चा वि सा न वत्तव्वा जो पावस्स पागमो। उदगेण जे सिद्धिमुदाहरंति, सायं च पायं उदगं फुसत्ता, दूसरों को दुख पहुँचाने वाली कठोर भाषा यदि सत्य उदगस्स फासेण सिया य सिद्धी, सिज्झिसु पाणा बहवे दगंसि। भी हो तो उसे न बोले-इससे पाप का आश्रव होता है। -सुबह और शाम स्नान करने से यदि मोक्ष मिलता इस उपदेश से बढ़कर जनहित की भावना और क्या हो तो पानी में रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं को मोक्ष हो सकती है ? बुद्ध के उपदेशों में इसे ही बहुजनहित मिल जाना चाहिए । इसीको स्पष्ट करते हुए कहा गया है- कहा है। न वि मुडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो। लेकिन अहिंसा को पालना, उसके सिद्धांत को अपने न मुणी रण्णवासेण, कुसचीरेण ण तावसो॥ जीवन में उतारना आसान काम नहीं है। उसके लिए सिर मुडा लेने से कोई श्रमण नहीं होता, प्रोम् का आत्मदमन, इन्द्रियजय, कायक्लेश और कष्ट सहन जाप करने से ब्राह्मण नहीं होता, जंगल में रहने से मुनि करने की आवश्यकता होती है। महावीर ने कहा है कि नहीं होता, और कुश के वस्त्र पहनने से तपस्वी नही मनुष्य की इच्छा आकाश के समान अनन्त है, ऐसी हालत होता। में कैलाश पर्वत के समान सोने-चांदी के असंख्य पर्वत भी ता फिर किसरो होता है ? उसकी इच्छा को तृप्त नहीं कर सकते । इसलिए भगवान् कम्मुणा बंभणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तियो । ने सच्चे त्यागी का लक्षण बताते हुए कहा हैवइसो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥ जे य कंसे पिये भोए, लद्धे वि पिट्टि कुव्वइ । -मनुस्य अपने कर्म से ब्राह्मण, कर्म से क्षत्रिय, कर्म साहीणे चयइ भोए, से हु चाइ त्ति बुच्चइ ।। से वैश्य और कर्म से ही शूद्र होता है। वत्थगंधमलंकारं, इत्थीयो सयणाणि य । महावीर भगवान ने यज्ञ, याग, जप, तप और दान अच्छंदा जे न भुजंति, से चाद नि बुच्चइ ॥ धर्म प्रादि कर्मकाण्ड का विरोध करते हए कहा है कि इन जो सुन्दर और प्रिय भोगों को पाकर भी उनकी ओर सब बातों से कर्म का नाश नहीं हो सकता, कर्म फल तो से पीठ फेर लेता है, और मामने आए हा भोगों का त्याग भोगना ही पड़ेगा। इसलिए यदि हम समाज को प्रादर्श की कर देता है, वही त्यागी है। वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्री ओर ले जाना चाहते हैं, उसमें शांति और व्यवस्था स्था- और शयन आदि वस्तुओं का जो लाचारी के कारण भोग पित करना चाहते हैं तो हर हालत मे बरे कर्मों और बरे नहीं कर सकता, उसे त्यागी नहीं कहते । विचारों का त्याग करना पड़ेगा। तथा मनुष्य अपने विचारों और कर्मों में पूर्ण स्वतंत्रता तभी प्राप्त कर सकता है जब १. भगवान महावीर का कथन था कि यदि संसार में कि वह स्वप्न में भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर नजर डालने सुख और मुम्ब के साधन परिमित हों तो उपभोग की
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy