SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४०] अनेकान्त [वर्ष १४ खुशीमें पांच हजारकी रकम छात्राओं को छात्रवृत्ति देनेके तदनुसार आपसे ३५०००) रुपयेकी सहायता प्राप्त हुई। लिये अपनी दिवंगत पत्नीकी स्मृतिमें दान की। बाईसवां उस्मत इस वर्ष पुनः साहू शान्तिसन् १५४ के उत्सवकी यह विशेषता है कि साह प्रसादजाके सभापतित्वमें आज मनाया जा रहा है, यह बड़ी शान्तिप्रसादजी कर-कमलों द्वारा वीर-वा-मन्दिरको खुशीकी बात है। इसी अवसर पर वीरसंवामन्दिरके नूतन बिल्डिंगका शिलान्याम हया और चौखटका मुहर्त भवनका उद्घाटन कार्य भी प्रापक ही कर-कमलों द्वारा किया गया। तथा साहुजीने बड़ी उदारताके साथ नीचंकी सम्पन्न हो रहा है यह इस उत्सवको खास विशेषता है। मंजिलका कुल खर्च उठानेको स्वीकारता प्रदान की और जुगलकिशोर मुख्तार वीरशासनजयन्ती और भवनोत्सव श्रावण कृष्णा प्रतिपदाके प्रात:काल ॥ बजेसे ॥ बजे जी मुख्तार, संस्थापक वीर-सवामन्दिरने वीर शामन जयन्ती तक चार शासन जयन्तीका समारोह भारतके प्रसिद्ध उद्योग- का इतिहास बतलाया। (जो कि इसी किरणमें अन्यत्र पति, श्रावक-शिरोमणि, दानवीर साहू शान्तिप्रसादजा जैन प्रकाशित है) महामा भगवानदीनजीने अवस्थ और कलकत्ताके सभापतित्वमें सानन्द सम्पन्न हुमा। इस अवसर अशक्त होते हुए भी बड़े मार्मिक शब्दों में अपना भाषणा पर ससंघ प्राचार्य देशभूपणजा महाराज, श्रीमती अजित- दिया। आपने इस बात पर सबसे अधिक जोर दिया कि प्रसादजी (केन्द्रीय खाद्यमन्त्री) श्रीमती कमला जेन, कथनीकी अपेक्षा करनीका महत्त्व बहुत अधिक है । हमें काका कालेलकर, महात्मा भगवानदीनजी, श्री जनेन्द्रकुमार- अपने भीतर जैनत्व जागृत करना चाहिए और इच्छा जी, श्री यशपाल जी, श्री अक्षयकुमारजी, रा. सा. लाला निरोधरूप तपको जीवनमें उतारना चाहिए । श्री काका उल्फतरायजी, ला० श्यामलालजी, ला. जुगलकिशोरजी कालेलकरने जन साहित्यकी महत्ता पर प्रकाश डाला और कागजी, ला. परसादीलालजी पाटनी, ला. मुशीलालजी, बतलाया कि अहिसाकी श्राज बहुत आवश्यकता है । ला० राजकृष्णजी, ला. तनसुखरायजी, ला. नन्हेंमलजी, आपने अहिमान्मक आन्दोलनकी इस अवसर पर चर्चा करते ला. रतनलालजी बिजली वाले, ला. रतनलालजी मादी- हुए कहा कि हमें वह काम करना चाहिए जिससे मनुष्यका पुरिया, ला. रघुवीरसिंहजी, राय बहादुर उल्फतरायजी प्रारसमें रभाव घटकर परस्पर मनुष्यता बढे । शापने ईजीनियर मेरठ, वंद्य महावीरप्रसादजी, सेठ मोहनलालजी परामर्श दिया कि हमें जातिसे जैनोंकी सख्या न बनाकर कटोतिया, बा. पन्नालाजजी अग्रवाल, डॉ. किशोर, डॉ. हृदयसे जन-भावनाका अादर करने वाले लोगोंको श्रावसी. आर. जैना, वा. श्रादीश्वर लालजी एम. ए., बा० श्यकता है। आपने श्राप के ममारकी स्थितिकी चर्चा करने श्रानन्दप्रकाशजी एम. ए., बा० गोकुलप्रसादजी एम. ए. हए शान्तिवादियांका एक मजबूत मंगठन बनानेकी भी पं० अजितकुमारजी शास्त्री, ५० दरबारीलालजी न्यायाचार्य, इस अवसर पर चर्चा की। अन्तमें आपने बताया कि मैंने पं. बलभद्रजी न्यायतीर्थ, बा० विमलप्रसादजी, श्री शांति- विदशीका भ्रमण किया है, मैं स्वयं निरामिषभोजी हूँ और लालजी वनमाली प्रादि नगरके अनेक गण्य-मान्य श्रीमान् मैंने अनभव किया है कि विदेशी लोगोंमें शाकाहारकी प्रवृत्ति और विद्वान् उपस्थित थे। बढ़ रही है। पं० हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्रीक मंगलाचरण करनेके पं० हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्रीने अपनी योजस्विनी पश्चात् बा० छोटेलालजी जैन, अध्यक्ष वीर-सेवामन्दिरने भाषामें वीर-शासनका महत्त्व बतलाते हुए अहिंसा, अनेसाहूजीका परिचय दिया । बा. प्रेमचन्दजी बी०ए०, कान्त, अपरिग्रह, कर्मसिद्धान्त आदि पर बहुत सुन्दर ढंगसे संयुक्र मंत्री वीर-सेवामन्दिरके हार पहनानेके पश्चात् श्री प्रकाश डाला और कहा कि श्रात्मासे परमात्मा बननेका ताराचन्द्रजी प्रेमीने जैन शासन और स्यावाद पर एक मार्ग बतलाना ही जैनशासनकी सबसे बड़ी विशेषता है। बहुत सुन्दर कविता बोली, जिसे सुनकर सभी उपस्थित अपने भापणके अन्तमें आपने खाद्य समस्या पर प्रकाश लोग मानन्द-विभोर हो गये। तदनन्तर पाल जुगलकिशोर डालते हए कहा कि मनुष्य स्वभावतः शाकाहारी प्राणी है
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy