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किरण ११-१२)
वीर-शासन-जयन्तीका इतिहास
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जाती हैं और इसके मनाने वालोंकी संख्या प्रतिवर्ष तंजीके सन् ११३८ के उत्सवकी यह विशेषता है कि भनेकान्त माथ बढ़ रही है।
पत्र ७-८ वर्षसे बन्द पड़ा था, सभापति लाला तनसुखरायआजसे कोई तेरह वर्ष पहले रामगृह विपुलाचल) जीने उसको पुनः निकालनेकी म्बासतौरसे प्रेरणा की और तथा कलकत्तामें, वीरशासनको प्रवर्तित हुए ढाई हजार उसके संचालन तथा घाटेका भार अपने ऊपर लिया तदनुवर्षकी स्मृति एवं खुशामें, इस उत्सवका एक महान् सार उसे दो वर्ष तक बड़ी शानके साथ दिल्लीसे प्रकाशित प्रायोजन बा. छोटेलालजी और माह शान्तिसादजी किया। कलकत्ताके नेतृत्वमें हुआ था, जिसमें दशके कोने-कोनेसे
मन् १९४३ के उत्मवकी विशेषता यह है कि सभापति प्रचुर संख्यामे विद्वान् तथा प्रतिष्ठित जन पधारे थे। साथ
बाबू छोटेलालजीकी प्रेरणासे राजगृहीमें, जहां विपुलाचल हो कलकत्तामें भगवान महावीरके उपदेशोंको विश्व व्यापी
पर्वतपर वीरशासनका अवतार हुआ, वहीं उत्सव ममानका बनानेक लिये वीरशासन-संघकी भी स्थापना हुई थी।
प्रस्ताव पास हुआ। तदनुसार उत्सव राजगृहीमें प्रादर्शकलकत्तामें यह प्रायोजन ३६ अक्टूबरसे ४ नवम्बर सन्
रूपसे मनाया गया और उसमें कितने ही प्रमुग्व विद्वानाने १६४४ नक बड़ी सफलताके साथ सम्पन्न हुआ था।
भाग लिया। वीरसंवामन्दिरके द्वारा जिस वर्ष, (जुलाई मासमें) जिय स्थान पर और जिनके सभापतित्व में यह उत्सव मनाया गया
१९०४ के राजगृही-उत्सवकी यह बड़ी विशेषता है कि उमकी मूची इस प्रकार है
वहां शासनके प्रभावसे वर्षादिका प्रकोप समय पर एकदम वर्ष स्थान
सभापति
शान्त हो गया और उत्सव बड़ी शानके साथ मनाया गया, ५६३६ सरसावा पं. माणिकचन्द्रजी न्यायाचार्य, तथा विपुलाचलके उस स्थान पर जहां भगवानकी प्रथम " "
" देशना हुई थी एक कार्ति-स्तम्भ कायम करने के लिये शिना१६३८ "
ला. तनमुम्बरायजी, दिल्ली न्याम किया गया । १६३६ " ला. हुलामचंदजी, नकुड़ (महारनपुर) सन् १९४८ में मुरारके उत्सवकी यह विशेषता रही
१० मक्खनजाल जी प्रचारक, दिल्ली किबीरसेवामन्दिरकी एक शाम्बा दिल में कायम करनक
मुनि कृष्णचन्द्रजी, पचकूला लिये राय माहब उल्फतरायजीने अपने चैत्यालयके नीचेका १९४२ , ला. प्रद्युम्नकुमारजी, महारनपुर । मकान फ्री दनेकी स्वीकृति दी। तदनुसार करीब दो साल १६४३ " बाछोटेलालजी, कलकत्ता
तक राय माहबके उस मकानमें वीरसंवामन्दिरका कार्यालय १९४४ राजगिरि बा• छोटेलानजी, कलकत्ता
दिल्ली में रहा। दूसरी विशेषता यह रही कि उत्सवमें प्राय १६४५ मरमावा बा. जयभगवानजी, वकील पानीपत
हुए बाबू नन्दलालजी सरावगी कलकत्ता मेरे साथ मा नगर १६४६ " बा. छोटेलालजी, कलक ।
मरमावा पधारे और उन्होंने यह दवकर कि पन्योंकि प्रका४. , बा. नेमचन्दजी वकीन, महारनपुर
शनका कार्य अर्थाभावकं कारण रुका पडा है, उनके प्रका१६४८ मुरार शुल्लक श्रीगणेशप्रमादजी वर्णी ।
शनके लिये १००००) दम हजार रुपयेकी सहायता प्रदान १६४६ दिल्ली , " "
की, जिमा प्राप्तपरीक्षादि किमने ही ग्रन्थ प्रकाशित हुए। 18. परमावा ५. रामनाथजी, परमाग ११५ " बा. छोटेलाल जी, कलकत्ता
मन के उन्मवकी यह विशेषता है कि मैने १०१२ ० रामनाथजी, मरसावा
वीरमेवा पन्दिरके नाम जो ट्रम्ट २ मईको रजिष्ट्री कराया
था वह ट्रमनामा ट्रस्टियोंक मामने पेश किया गया और १९५३ महावीरजी सेठ छदामीलाजजी फिरोजाबाद १९१४ दिल्ली माह शांतिप्रमादजी, कलकत्ता
ट्रम्पक नियमानुपार व्यवस्थादिके लिये प्रस्ताव पास किये
गये और कुछ नये ट्रस्टी भी चुने गये। १९५५ " श्रा० दशभूपणजी महाग
गयमाहब उल्फतरायजी, दिल्ली मन् ११५३ के उन्मवकी यह विशेषता है कि इस १६. , साहू शान्तिप्रसादजी, कलकत्ता अवसर पर मैंन मप्तम धावक व्रत ग्रहण किये और इस
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