SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ D ३१४ ] अनेकान्त [वर्ष १४ सावय-यण बदहु किय सुकम्म, वीधो णामा गेह-जच्छि, जे वय-भह धारहि गट्ट-छम्म । चउविह-संघह दाणेण दच्छि। शंदउ रणमलु पुणु साहु धरण, तहि उवरि उवण्णा गुण संपुण्णा, पुत्त तिणि लक्खाह जुवा जिं चरिड कराविउ हु वएणु । ताह जि पुणु पढमउणं ससि पढमउ, पीथा णामें दीद भुवा मुणियण सहसारहो तब-वयधारहो तासु पिया पियचित्त सुहायरि, मरुसेण सामिहु तणमो। , भणिय कुवेरदेव णं सुरसरि । उवएससुहरु थासिय-भव-दुहु बीयउ णंदणु फुड जस जसयरु, महु मणि णिच्च थुत्ति कुलभो ॥ णिय-कुल-कमल वियासण-भायरु । सिरि विक्कम समयंतरालि, पल्हण सी (सा) हु वसण-मण-चत्तल, वतई दुस्सम विसम कालि। जिण-चरणारविंद-रय-रत्तउ । पउदइ सय संवच्छरह अएण, कउर पालही तहु [सुह] भामिणि, छण्णउन अहिय पुतु जाय पुण्ण । बाहहु चित्त णिच्च अणुगामिणि । माह दुजि किएह दहमा दिणम्मि, तीयउ सुउ पुणु बहु लक्खण धर, अणुराहुः रिक्खि पयडिय सकम्मि । जो पाराहइ अह-णिसु जिणवर । गोवागिरि गोवग्गिरि) डूंगर णिवहु रज्जि, देव-सत्य-गुरु पायहि लीणउ, कहमवि वयणु ण जंण्इ दीणउ | पह पालतइ अरिराय तज्जि । रणमलु णामु महिहि विक्खायउ, जिण-चरण-स्मल खामिय सरीरु, जालपही पिययम-अणुरायउ । सावय-वय-रहधुर-धरण-धीरु। ति सुक्कोसल चरिउ कराविउ, सिरि अयरवाल कुल गयण चंदु, गिच्च चित्ति पुणु तहु गुण भाविउ । सधवीर विधा जण जणिय णंदु । जामहि रयणायणहि ससि भायरु, कुलगिरि-वर-करणयहि वरा वे पक्खुज्जल सात णिय भज्ज, तावई जं तउ बुहहि णिरुत्तउ चरिउ पवट्टङ गुहु धरा ॥२३ अभणी णामा वय-सील-सज्ज । तहि उवरि उवरणउ पर-पहाणु, . इय-सुकोसल-मुणिवर-चरिए णिरुवम-सवेय-रयणबह-णिसु भाविउ जिधम्म-माणु । संस (भ. रिए सिरि-पंडिय-रइधू विरइए सिरि-महा भन्चमहलगि दिउ णामें साहु धण्णु ! आणासुत-रणमल-णाम-णामंकिए सुकोसल-णिवाणणिय जसेण महि वीढ छण्णु । गमणं णा। चउत्थो संधी परिच्छेत्री समत्तो॥छ। संधि ॥ प्रति देहली पंचायती मन्दिर लिपि सं. १६३३ तहु भज्जा दुक्खिय-जण जणेरि, मह सील तीर वहणेक्क धीरि । सिरि पासणाह चरिउ (पार्श्व पुराण) वीरोणामा वर चाय-लीण, पं० रइधू गइ हंसिणोव सहेण वीण । आदिभागतहु पुत्तु पठमु जिण-पाय-भत्तु, पणविवि सिरिपासहो, सिवउरि-वासहो, भाणाहिहाणु गिह-धम्मि रत्तु । विहुणिय पासहो गुण-भरिश्रो। तहु धरिणि गुणायर सुद्ध सील, भवियह सुह कारणु, दुक्ख णिवारण, जिण-धम्म-रसायणि जाहि कील । पुणु माहासमि तहु चरित्रो । पुणु रिमहणाहु पणविवि जिणिंदु, ®-सिरि अयर वाल वंसहि पहाण, भव-तम-णिण्णासणि जो दिणिदु । सिरि विधा संघह (ई) गुण बिहाशु । सिरि अजिउ वि दोम-कसायहारि, सुकौरान चरित -- संभड विजयत्तय-सोक्खकारि ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy