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________________ ३०४] अनेकान्त वर्ष १४ जिसने हृदयमें ऐसा घर कर लिया कि निकाजेसे भी ज्योतिषाचार्यजीको समझते देर नहीं लगी कि नहीं निकलती थी। मेरी मंजिल अपने भाप ही मेरे पास आती जा इधर सुशीलाकी भावनाएँ कुछ और ही और रही है, मेरा कितना अच्छा वैज्ञानिक प्रयोग है। होती जा रही थीं। अब उसे यह विश्वास हो चना मेरे पूज्य गुरुदेवका यह कैसा अनोखा मंत्र है। था कि मेरे पतिदेवमें कुछ न कुछ कमी अवश्य है, फिर मुस्कराते हुये बो -हाँ आप मेरी सारी जिसके कारण सन्तानका योग नहीं है और मेरे बातोंका मतलब तो समझ ही गई हैं। बात यह है सन्तानका योग है आखिर यह क्या है ? एक कि जिस समय आपका विवाह हुश्रा उस समय समस्या उठ कर खड़ी हुई। क्या मुझे सन्तानके आपकी और आपके पतिदेवकी जन्म-कुण्डली लिए दसरा मार्ग अपनाना पड़ेगा? नहीं नहीं, मैं ठीक-ठीक नहीं मिलाई गई। या फिर पं. रमाशंकर ऐसा नहीं कर सकती। पर सन्तान ..."। जीने उस ज्योतिषीको कुछ रुपये देकर आप जैसी ज्योतिषाचार्यजीने सुशीलाके अनुपम रूपको अप्सराको पानेका पूरा-पूरा प्रयत्न किया, और देख कर अपनी मनोकामना पूरी करनेके लिए सफल हो गए। अब उसमें इतना है कि आपके उसके सामने एक सरल एवं आकर्षक समस्या रख सन्तानका योग है और आपके पतिदेवके नहीं है, दा थी और यह निश्चय कर लिया था कि यह फिर भी सन्तान अवश्य होगी। इस मामलेको तो सुन्दर चिड़िया चंगुल में जरूर ही फँसेगी । पाठवें आप समझ ही रही होंगी। साथ ही यह ताबीज दिनका इन्तजार था। इस प्रकारको कई घटनाएँ इसमें पूरी-पूरी सहायता करेगा। मैंने इसको कई उनके जीवनमें आ चुकी थीं। वे सोचते थे कितना दिन रातके परिश्रमसे तैयार किया है। इतने हवन अच्छा है ज्योतिषका एक ही नुसखा, जिसमें भोग किसीके ताबीजके तैयार करने में नहीं किये। भी है और पैसा भी। आइये इसे बांध दूं। ___ आखिर पाठवां दिन आ ही गया मौर सुशीला सुशीला सब कुछ भले प्रकार समझ गई थी। भी सज-धज कर ताबीज लेने ज्योतिषाचार्यके पास सन्तानकी लालसा न जाने उसे किस अनजाने पथ चल दी, क्योंकि आजकी नारी अपने अंग-प्रत्यंगोंको पर ले जाना चाह रही थी। वह क्या करे ? क्या न सजा कर दूसरोंको दिखानेमें ही आनन्दका अनुभव करे ? कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था। करती है। उसे इस प्रकार देख कर ज्योतिषाचार्य- उसकी भावना और विचारोंमें द्वन्द्व मचा हुआ को सारी कल्पनाएँ साकार नजर आने लगीं। आज था। कुछ निर्णय न करनेके बाद भी उसने अपनी उनके मन में उमंग थी और भविष्यकी कल्पनाएँ बांह ज्योतिषाचार्यजीकी ओर बढ़ा दी और ताबीज आनन्दातिरेक पैदा कर रही थीं। सोचने लगे- बंधवा लिया। देखो नारीमें सन्तानको पैदा करनेकी इच्छा कितनी ताबीज बंधवानेके बाद बोली-ज्योतिषी जी! बलवती होती है। सन्तानके लिए वह सब कुछ यह ताबीज क्या करेगा! ताबीज कहीं सन्तान पैदा कर सकती है, यहाँ तक कि.........। कर सकता है ? यह तो सब आप लोगोंका पैसा सशीलाको देख कर सल्लासके साथ ज्योतिषीजी बटोरनेका ढंग है । लोगोंको फुसलानेका आपके बोले-५० रमाशंकरजी नहीं पाए आप अकेली पास अच्छा तरीका है। ही आई हैं।हाँ, मैं अकेली ही आई हूँ, कार्य-वश ज्योतिषाचार्यजी बोले-तो फिर आपके वे कहीं बाहर चले गये हैं। उस दिन मैं आपकी सामने एक वही रास्ता है, जिस पर आप अब तक बातोंको स्पष्ट रूपसे नहीं समझ पाई थी। ऐसा निर्णय नहीं कर पा रही हैं। अगर आपको संतानमालूम पड़ता था मानो श्राप कहना तो चाहते थे से मोह है तो इस रास्तेको अपनाना ही पड़ेगा। कुछ और, कह कुछ और ही रहे थे। मेरे विचारों- वरना आपके सन्तान नहीं हो सकती। में उस दिनसे बड़ी उथल-पुथल मच रही है। सुशीला बिना सब कहे सुने ही वहाँसे चल
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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