SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण कलाका उद्देश्य [२७३ अनुसार कलाकार सौन्दर्यकी चरम सृष्टि करके और शिवमें कोई अन्तर नहीं है। अतः सत्य और संसारकी चित्त शुद्धि करता है। कवि या कलाकार शिव स्वतः सुन्दर भी होते हैं। इस प्रकार सौन्दर्य सुधारको बात भी सौन्दर्यके आवरणसे कहता है। प्रधानवस्तु कलामें जनकल्याणकी भावना स्वभावतः कलाको कान्ता सम्मित उपदेश माना जाता है। ही रहती है । अतः कला जोवनसे भिन्न कोई वस्तु संसारके प्रायः सभी सुधारकों, साहित्यकारों नहीं। तथा नेताओंने कलाको उपयोगिताकी कसौटी पर भारतमें कला कलाके लिये का नारा योरोपसे कसा है। डक्सन, आस्कर वाइल्ड, महात्मागांधी, आया है तथा अतिवादिताका द्योतक है। कलाकों रवीन्द्रनाथ, टाल्मटाय आदि सभी इसी मतके सम- केवल कलाके लिये अथवा केवल जीवन या लोक र्थक हैं। महात्मागांधीके अनुसार कलासे जीवनका हितके लिये मानने वाले अतिवादी हैं। कलाका महत्व है। जीवन में वास्तविक पूर्णता प्राप्त करना न तो जीवनसे सम्बन्ध ही टूट सकता है और न वह ही कला है। यदि कला जीवनको सुमार्ग पर न सदाचारकी प्रचारक मात्र बनकर ही रह सकती लाये तो वह कला क्या हुई। लेकिन वे कज्ञामें है। कला-प्रसूत सामग्रीमें मानव जीवनकी महज एवं उपयोगिताके पूर्ण समर्थक थे । टालस्टायके मतसे भावनाओं तथा प्रवृत्तियोंका मूर्तिरूप कलाको समय, कला समभावके प्रचार द्वारा विश्वको एक करनेका देश और जातिके बन्धनमें न बांधकर उसे सार्वसाधन है। बकेके अनुसार आत्म-प्रकाशकी भावना देशीय तथा सार्वशासकी बना देता है जिसके ही हर प्रकारकी कलाका मूल है। सृष्टि ब्रह्माकी कारण उसके प्रणेता कलाकार भी अमर हो जाते कला है और कला मानवकी सृष्टि है। हैं। प्रसादजी, तुलसी, सूर अदि इसी कारण अमर ___ सत्य संसारमें सर्वत्र व्याप्त है । ईश्वरभी सत्य- हैं। कलाकारकी कृतिमें लोकहितकी भावना अनस्वरूप है । इसी सत्यकी उपलब्धि ही कलाका जाने ही में आ जाती है। अतः मध्यम मार्गही उद्देश्य है । कला द्वारा हम उसी सत्यकी उपासना सर्वोतम है । वह न तो जीवनसे पृथक हो और न करते हैं किन्तु सुन्दर रूपमें। चेतन, अमूर्त और प्रचारका साधन मात्र ही बनकर रह जाय। हम भावमय होनेके कारण ब्रह्म सबसे बढ़कर सुन्दर उसे केवल जीवनको सुन्दर अभिव्यक्ति मानकर ह। अतः सुन्दर सत्यका ही रूप है। माथ ही सत्य ही चलें। वीर-सेवा-मन्दिरके विद्वानों द्वारा प्रचार-कार्य जैन समाज सरधन के विशेष आग्रह पर ता० ११-४-१७ को पं० जयन्तीप्रसादजी शास्त्री सरधना गये। यहाँ जैनियोंके लगभग १५० घर हैं ५ पाँच दि. मन्दिर हैं और १ श्वे. मन्दिर है । खरधना सहरके लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पर जैन हायर सैकण्डरी जैन हायर सेकण्डरी गर्ल्स स्कूल आदि अनेक संस्थायें सुचारु रूपसे चल रही है जिनके प्रमुख कार्यकर्ता श्री. ला. चतरसेनजी जैन खहर वाले तथा श्री ला. हुकमच द्रजी जैन मा. वर्तमान मैम्यूफेक्चरिंग फैक्टरी सरधना है। रथोत्सवके दिन सभी जैन बन्धुओंने पेंठका दिन होते हुए भी दुकानें बन्द रवीं तथा जैनेतर समाजने भी रथोत्सव में सहयोग प्रदान किया। त्रिको श्री ला• सुन्दरलालजी प्रौनरीही मजिट्रेट मेरठकी अध्यक्षतामें और दूसरे दिन श्री बा. कृष्णस्वरूपजीकी अध्यक्षता विद्वानोंके प्रभाविक भाषण हये, श्री. बा० विजयकुमारजी सुपुत्र श्री. ला. चतरसनजी जैन रईसने १.१) एक सौ एक रुपया प्रदान कर अनेकान्तक सहायक बने और १०) अन्य सज्जनोंसे कुल सरधनासे १५१) हुए। जैनपमा कि आमंत्रण पर श्री. पं. हीरालालजी सिद्धान्तशास्त्री खतौली (मेरठ) गये, वहां अापके दो भाषण एवं प्रवचन हुये। जनता बहुत प्रभावित हुई और ११) रुपया वीर-सेवा-मम्मिरकी सहायतार्थ प्राप्त हुये। एतदर्थ दातारोंको हार्दिक धन्यवाद । दिल्ली में-ता. १२ अप्रेलको श्री पं० हीरालालजी सिद्धान्तशाम्त्रीने भाकाशवार्ण से महावीर-जयन्तीके दिन 'भगवान महावीरके अमूल्य प्रवचन' प्रसारित किये। तथा जैनमित्रमण्डल द्वारा प्रायोजित समारोहमें बापने और श्री. प. परमानन्दजीशास्त्रीने प्रभावक भाषण दिये मंत्री-बीरसेवा मन्दिर
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy