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वीर-सेवा-मन्दिरमें श्री कानजी स्वामी
तीर्थ क्षेत्रोंकी यात्रा करते हुए श्री कानजी स्वामी अपने संघके साथ ता. ४ अप्रैलके प्रातःकाल दिल्ली पधारे। जैन समाजकी ओरसे आपका शानदार म्वागत किया गया और आपको वीर-सेवामन्दिरमें ठहराया गया। प्रति दन प्रात: 5 से है बजे तक और मध्यान्हमें २॥ से ॥ तक आपका प्रवचन परेडके मैदानमें बनाये गये विशाल मण्डपमें होता था। हजारोंकी संख्यामें नर-नारी प्रापका प्रवचन सुनने के लिये प्राने थे। लगातार ३ दिन तक कांग्रेसके अध्यक्ष श्री उ. न.देवर भी प्रवचन सुननेके लिए आये । ना० ७.४-५७ को दिनके १ बजे वीर-सेवामन्दिरके संस्थापक श्रा० जुगलकिशोरजी मुख्तार के सभापति-बमें वीर-सेवामन्दिर और भा०व०दि. जैन परिषदकी पोरसे श्री कानजो स्वामीको अभिनन्दन पत्र समर्पण किया गया जो कि अन्यत्र प्रकाशित किया जा रहा है। मुख्तार सा. ने संस्थाके समस्त प्रकाशितग्रन्थोंकी, तथा कमायपाहुडसुत्त और जैन साहित्य और इतिहास पर विशद-प्रकाशकी एक-एक प्रति भेंट की। संघके समस्त यात्रियोंके लिए सन्मति विद्या प्रकाशमालासे प्रकाशित हुई समस्त पुस्तकोंके ५० सेट तथा अनेकान्तके चालू वर्षको पाठों किरणोंके ५० सेट भेंट किये गये । इस समय नगरके प्रायः सभी एय-मान्य महानुभाव उपस्थित थे। इसी समय जैनावाच कम्पनी वाले बाप्रेमचन्द्रजीने दिल्ली-निवासी कुछ प्रमुख लोगोंका परिचय कानजी स्वामीको कराया | तथा संघके संचालक श्री. नेमीचन्द्रजी पाटणीने संघके प्रमुख व्यक्रियोंका परिचय उपस्थित जनताको कराया।
श्री कानजी स्वामीके निमित्तसे ता. ३ अप्रैलको वीर-सेवान्दिरके अध्यक्ष श्रीमान् बा. छोटेलालजी भी हवाई जहाजके द्वारा कलकत्तासे दिल्ली प्रागये थे। स्वागत-समारोहका संचालन आपने किया। और अन्तमें आपने सभी समागत बन्धुत्रोंका आभार माना। श्री कानजी स्वामीसे मिलने और उनसे शंका-समाधान करनेके लिये स्थानीय और बाहिरके अनेक नगरोंसे सैकड़ोंकी सन्ध्यामें लोग प्रतिदिन आते रहे। ता. १ अप्रैलके प्रातः काल १ बजे श्री कानजी स्वामीने अलवरके लिए अपने संघके साथ प्रस्थान किया। इस प्रकार पाँच दिन तक वीर-सेवामन्दिरमें आनन्दमय वातावरण रहा।
-प्रेमचन्द्रजैन बी. ए. संयुक्रमन्त्री-वीर सेवामन्दिर
अनेकान्तके प्रेमी पाठकोंसे जैन पत्रों में प्रकाशित अपनी सूचनाके अनुसार हमने विद्वानोंको अनेकान्त अमूल्य मेजना प्रारम्भ कर दिया है। जिनके पत्र २१ मार्चके पूर्व भागये थे, उन्हें २१ मार्चको अनेकान्त-प्रकाशनके दिन ही पाठवीं किरण भेज दी गई थी। तथा बादमें भाने वाले पत्रोंके अनुसार बुकपोप्टसे उन किरण भेजी गई।
हमारी सूचनाका लाभ उठाकर कितने ही ऐसे लोगोंने जिनकी संख्या १०० से भी ऊपर है-अनेकान्तको अमूल्य भेजनेके लिए पत्र भेजे हैं, जो विद्वानोंकी श्रेणीमें न आकर समर्थ व्यवसायी प्रतीत होते हैं। उन लोगोंको ज्ञात होना चाहिए कि यह पत्र प्रतिवर्ष काफी घाटा उठाकर निकाला जा रहा है चालू वर्षमें भी काफी घाटा रहेगा-जिसे वर्षकी अन्तिम किरणसे सर्व लोग ज्ञात करेंगे। ऐसी स्थितिमें हम अपने अनेकान्तके इन प्रेमी पाठकोंको अनेकान्त अमूल्य भेजने में असमर्थ हैं। फिर भी उनके अवलोकनार्थ पाठवीं और नवीं किरणको नमूनेके तौर पर भेज रहे हैं । आशा है कि पत्र उन्हें पसन्द आवेगा, और वे उसके वार्षिक मूल्यके ६) भेजकर ग्राहक श्रेणीमें अपना नाम लिखाकर हमें अनुग्रहीत करेंगे। जो भाई वर्षके प्रारंभसे ग्राहक नहीं बनना चाहते हों, वे ३) भेजकर छह मासके लिए ही ग्राहक बन जावें।
साथ ही अमूल्य अनेकान्त प्राप्त करने वाले विद्वानोंसे हम खास तौरसे आशा करेंगे की वे अपने सम्पर्कमें पाने वाले धनी एवं सम्पन्न व्यक्रियों को प्रेरणा करके अनेकान्तके ग्राहक बनाकर उसके वार्षिक या अर्धवार्षिक मूल्यको अग्रिम भिजवाकर वीर शासनके प्रचारमें हमारा हाथ बटावेंगे।
जो विद्वान चालू वर्षकी प्रारंभिक किरणोंको प्राप्त करना चाहें. पोष्टेजके लिए.) मनीआर्डरसे भिजवानेकी कृपा करें।
म्यवस्थापक-अनेकान्त