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________________ कविवर भगवतीदास (परमानन्द शास्त्री) जीवन-परिचय प्रन्थ-भण्डारों में स्वतन्त्र ग्रन्थके रूपमें उपलब्ध भी होती हैं । उक्त विलासकी ये कविताएँ काव्य-कलाकविवर 'भैया' भगवतीदास आगराके निवासी . थे। आपकी जाति ओसवाल और गोत्र कटारिया । - की दृष्टिसे परिपूर्ण हैं, उनमें रीति, अलकार, अनुप्रास और यमक यथेष्ट रूपमें विद्यमान हैं। था। आपके पितामहका नाम साह दशरथ था, जो अब उस समय आगराके प्रसिद्ध व्यापारियोंमेंसे एक थे साथ ही अन्तर्लोपिका, बहिर्लापिका और चित्रबद्ध और जिन पर पुण्योदयसे लक्ष्मीकी बड़ी कृपा थी। काव्योंकी रचना भी पाई जाती है। प्रस्तुत संग्रह में विशाल सम्पत्तिके स्वामी होने पर भी आप निर. यद्यपि सभी रचनाएँ अच्छी हैं, परन्तु उन सबमें भिमानी थे। उनके सुपुत्र अर्थात कविवरके पिता __ 'चेतन कर्मचरित पंचेन्द्रिय सम्वाद, सूबाबत्तीसी, साहूलालजी भी अपने पिताके ही समान सयोग्य. मनबत्तीसी, वाईसपरीषहजय, वैराग्य पच्चीसिका, सदाचारी, धर्मात्मा और उदार सज्जन थे। स्वप्न बत्तीसी, परमात्मशतक, अष्टोत्तरी और कविवर भगवतीदास १८वीं शताब्दीके प्रतिभा- आध्यात्मिकपद आदि रचनाएँ बड़ी ही चित्ताकर्षक सम्पन्न विद्वान और कवि थे । आप आध्यात्मिक और शिक्षाप्रद हैं। ये अपने विषयको अनूठी रचनाएँ समयसादि ग्रन्थोंके बड़े ही रसिक थे । इनका कविवर भक्तिरसके भी रसिक थे. इसीसे आपकी अधिक समय तो अध्यात्म ग्रन्थोंके पठन-पाठन तथा कितनी ही रचनाएँ भक्तिरससे ओत-प्रोत है। गृहस्थोचित षट्कर्मों के पालनमें व्यतीत होता था, कवित्व और पद और शेष समयका सदुपयोग विद्वद्गोष्ठी, तस्वचर्चा कविकी कविता अनूठी है और वह केवल अपने एवं हिन्दीकी भावपूर्ण कविताओंके निर्माणमें होता विषयका ही परिचय नहीं कराती, किन्तु वह कविक था। आप प्राकृत, संस्कृत तथा हिन्दी भाषाके आन्तरिक रहस्यका भी उद्घाटन करती है । कविता अभ्यासी होनेके साथ-साथ उर्दू, फारसी, बंगला भावपूर्ण होने के साथ-साथ सरस, सरल और हृदयएवं गुजराती भाषाका भी अच्छा ज्ञान रखते थे, । उसमें अध्यात्मरसकी पुट पाठकके अंतरइतना ही नहीं किन्तु उर्दू और गुजराती में अच्छी मानसमें अपना प्रभाव अंकित किये बिना नहीं कविता भी करते थे । आपकी कविताएँ सरल और रहती । कविवरको इन कविताओंका जब हम कबीर, सुबोध हैं और वे पढ़ने में बहुत ही रुचिकर मालूम दादूदयाल और सूरदास आदि कवियोंकी कविताओं होती हैं। उनकी भाषा प्राञ्जल, अर्थबोधक एवं के साथ तुलनात्मक अध्ययन करते हैं, तब उस भाषा साहित्यकी प्रौढ़ताको लिये हुए है। उसमें समय एक दूसरेकी कवितामें कितना ही भाव-साम्य लोगोंको प्रभावित करनेकी शक्ति है और साथ ही पाते हैं। और इस बातका सहज ही पता चल आत्मकल्याणकी प्रशस्त पुट लगी हुई है । कविका जाता है कि कविवरकी कविता कितनी अनुभूतिपूर्ण विशुद्ध हृदय विषय-वासनाके जजालसे जगतके सस्स. आत्मप्रभावोत्पादक एवं उद्बोधक है। और जीवांका उद्धार करनेकी पवित्र भावनासे ओत-प्रोत वह कविकी पवित्र आत्म-भावनाका प्रतीक है। है और उनमेंकी अधिकांश कविताएँ दूसरोंके उद्- कविताओंके कुछ पद्य यहाँ उदाहरणके तौर पर बोधन निमित्त लिखी गई हैं। उधृत किये जाते हैं जिनसे पाठक कविके भावोंका आपकी एकमात्र कृति 'ब्रह्मविलास' है. यह सहज ही परिचय पा सकेंगे। कविवर 'अपनी शतभिन्न-भिन्न विषयों पर लिखी गई ६७ कविताओंका अष्टोत्तरी' नामक रचनामें पुण्य-पापकी महत्ताका एक सुन्दर संग्रह है। इसमें कितनी ही रचनाएँ तो वर्णन करते हुए कहते हैं:इतनी बड़ी हैं कि वे स्वयं एक एक स्वतन्त्र ग्रन्थके 'प्रीषममें धूप तपै तामें भूमि भारी अरे, रूपमें स्वीकार की जा सकती हैं, और वे कितने ही फूलता है पाक पुनिअति ही उमहिक।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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