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अनेकान्त
[ वर्ष १४
अपनेको अहिंसक कहने बाली हमारी भारत सरकार इस सभा मनुष्य पापके भागी होते हैं, और इसीलिये मनु महाहिसा महापापका इस प्रकार खुला प्रचार कर रही है, महाराजन उन्हें कसाई बतलाया है। यह अत्यन्त दुःखकी बात है। धर्मपाण भारत के नेताओं इसलिए भारत सरकार जो दिन पर दिन नये कसाई. द्वारा इस महा हिंसाका तीव्र विरोध होना अत्यावश्यक है। खाने खुलवा रही है, और लोगों को मांस खानेके लिए मनुस्मृतिमें भी यही बात कही है:-
प्रोत्साहित एवं प्रेरित कर रही है, वह तो जीवहत्याके महानाकृत्वा प्राणिनां हिमां मांसमुत्पद्यते क्वचित्। पापकी भाजन है ही, पर उस सरकारका जो विरोध नहीं न च प्राणियः स्वग्यस्तस्मान्मांमं विवजयेत्॥ करतं. वे भी अनुमति-जनित दोषके भागी होते है। अर्थात् प्राणियोंकी हिंसा किये विना मांस पैदा नहीं
ना मार पदा नहीं भारतमें जब वैदिक धर्म का बोलबाला था और यज्ञोंमें होता, और न प्राणीका वध करना स्वर्ग देने वाला है, जो बलि दी जाती था. उस समय भी किसी शासकने इसलिए मांस नहीं खाना चाहिये।
मांस खाने का प्रचार नहीं किया और न कसाईखाने ही मांपको खानेवाले समते हांगे कि जालावरको मारने खलपाय अंग्रेगोके थानेस पूर्वका मारा भारतीय इतिहास
इ आदिका जावधानका पाप लगना दख जाइये, कहीं भी इस प्रकारका कोई बात नहीं मिलंगी। होगा, खाने पानेको क्या दाप हैपरन्तु उनक. यह स्वयं माय-मन्त्री होने का भी मुसनमानी बादशाहा भार समझ बिलकुल अज्ञानसं मरी हुई है इसका कारण यह अंग्रेज शासकों ने मांस-मण करनेका ऐसा खुला प्रचार नहीं है कि कसाई वर्गर जो भी जानवरका घात करते हैं, वे किया। प्रत्युत इस बात के अनेक प्रमाण मिलत है कि अनका उसे न्याने वालकि निमित्त ही मारते हैं। यदि खाने वाले राजानां और बादशाहोंने राजाज्ञाएँ और शाही फरमान लोग मांस खाना छोड़ देवें, तो कसाईखाना में प्रतिदिन निकाल करके प्राणघात न करनेकी घोषणा की है, जो जो लाखों प्राणी काट जाने हैं, उनका काटा जाना भी बन्द भी शिलालेग्यों एवं शासन-पत्रों के रूपम उपलब्ध है। हो जावे । शास्त्रकारांन ता यहां तक बतलाया है कि जो जामकलमे ही नाम-मण करने वाले अनेकां मुसलमानस्वय जीवधात न करके दूसरोंस कराता है, सावधात करने शासकोंने हमारे धर्म-गुरुयोंके सदुपदशसे स्वयं प्राजन्मक वालोंकी अनुमोदना, प्रशंसा और सराहना करता है, वह लिए मांस खानेका परित्याग किया है और अनेकों धाः भी जीवघात करने वालोंके सदृश ही पापी है। जिस प्रकार पों पर किसी भी जीव नहीं मारनेही 'अमारा' घोषणाएँ मांसका खानेवाला पापका भागी है, उसी प्रकार मांसका पकाने वाला, लानेवाला, परोसने वाला और बेचने वाला,
इन सबसे भी अधिक महान दुःखकी बात यह है भी पापका भागी होता है । बहुत बचपनमें हमने एक किजो शिक्षा विराग सदाचार और नैतिक नागरिकताभजनमें सुना था
प्रसारक लिए उत्तरदायी है, वह इस समय खूब दिल खोल 'हत्यारे आठ कमाई, महाराज मनु यतलाते करके मांस-भक्षाका भारी प्रचार कर रहा है और मांस
अर्थात् मनु महाराजने पाठ प्रकारके फसाई बतलाये भक्षणका उपयोगिता बनाकर धर्म-प्राण भारतीयोंकी गाढ़ी हैं। मनुस्मृ में बतलाये गये वे आठ कसाई इस प्रकार हैं
कमाईका अगष्य द्रव्य ग्वि मींच कर इस प्रकारके निकृष्ट अनुमन्ता विशसिता विहन्ता क्रय-विक्रयी।
कोटिके पुस्तक प्रकारानमें पानीकी तरह बहा रहा है। जिस संस्कर्ता चोपहर्ता च स्वादकश्च ति घातकाः ॥ भारतवर्ष में किसी माय दूध-दहीकी नदियां बहा करती थीं, अर्थात् -पशुधात करने या मांस म्यानेकी अनुमति जिय भारतमें विदेशी और म्लेच्छ कहे जाने वाले लोग भी
करन बाजा मांसक टुकड़े करने वाला, खानेके निमित्त मांस-उम्पादनके लिए पशुओंको घात कर मांसको बेचने वाला, मांमका स्वरीदने वाला, मांसका पकाने
खूनकी नालियां नहीं बहा सके, उस भारतमें आज उसीके वाला, मांसका परोसनेवाला और मांसका खाने वाला, ये और अपनेको अहिंसक कहने वाले शासकोंके द्वारा प्रतिदिन आठ प्रकारके कसाई होने हैं।
असंख्य मूक पशुओंको काट-काटकर खूनकी नदियां बहाई मनुस्मृतिके उक कथनसे स्पष्ट है कि मांस-भक्षण करने जारही हैं ॥ धर्मप्राण भारतके लिए इससे अधिक और वालेके समान उसका प्रचार, व्यापार और तैयार करने वाले दुःखकी क्या बात हो सकती है?