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________________ २२४ ] अनेकान्त [वणे १४ तत्वार्थसत्र और रत्नकरण्डश्रावकाचार-वर्णित घटित होना आवश्यक है। रलकाण्डके का श्रा० अतिचारोंका जब तुलनात्मक दृष्टिसे मिलान करते समन्तभद्र जैसे तार्किक व्यक्तिके हृदय में उक्त बात हैं. तो कुछ व्रतोंके अतिचारोंमें एक खास भेद नजर खटकी और इसीलिए उन्होंने उक्त दोनों ही व्रतोंके आता है। उनमें से दो स्थल खास तौरसे उल्लेखनीय एक नये प्रकारके ही पांच-पांच अतिचारोंका निरूहै-एक परिग्रहपरिमाणव्रत और दूसरा भोगोप- पण किया, जोकि उपर्युक्त दोनों आपत्तियोंसे भोगपरिमाणव्रत । तत्त्वार्थसूत्रमें परिग्रहपरिमाण- रहित हैं। व्रतके जो अतिचार बताये गये हैं, उनसे पाँचकी यहाँ पर सम्यग्दर्शन, बारह व्रत और सल्लेएक निश्चित संख्याका अतिक्रमण हो जाता है। खनाके अतिचारोंका अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, तथा भोगोपभोगव्रतके जो अतिचार बताये गये हैं, अनाचार और आभोग इन पांच प्रकारके दोषोमें वे केवल भोग पर ही घटित होते हैं, उपभोग पर वर्गीकरण किया जाता है, जिसकी तालिका इस नहीं; जब कि व्रतके नामानुसार उनका दोनों पर प्रकार है अतिचार-क्रम अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार अनाचार आभोग सम्यग्दर्शन शंका कांक्षा विचिकित्सा अन्यदृष्टिप्रशंसा अन्यदृष्टिसंस्तव १. अहिंसाव्रत छेदन बन्धन पीडन अतिभारारोपण आहार-वारण २. सत्याणुव्रत- परिवाद रहोऽभ्याख्यान पैशुन्य कूटलेखकरण न्यासापहार ३. अचौर्याणुव्रत चौरप्रयोग चौरार्थादान विलोप सशसन्मिश्र हीनाधिकविनि. ४. ब्रह्मचर्याणुव्रत अन्यविवाहकरण अनंगक्रीड़ा विटत्व विपुलतृषा इत्वरिकागमन ५. परिग्रहपरि. अतिवाहन अतिसंग्रह विस्मय अतिलोभ अतिभार-वहन ६.दिव्रत व्यतिक्रम अधोव्यतिक्रम तिर्यग्व्यतिक्रम क्षेत्रवृद्धि अवधिविस्मरण ७. देशव्रत रूपानुपात शब्दानुपात पुद्गलक्षेप आनयन प्रेष्यप्रयोग ८. अनर्थदण्डव्रत कन्दर्प कौत्कुच्य मौखर्य असमीक्ष्याधिक० अतिप्रसाधन ६. सामायिक मनोदुःप्रणिधान वचोदुःप्रणिधान कायदुःप्रणिधान अनादर अस्मरण १०.प्रोषधोपवास अष्टमृष्टग्रहण विसर्ग आस्तरण अनादर . अस्मरण ११. भोगोपभोग- विषयविषतोऽ- अनुस्मृति अतिलौल्य अतितृषा अति-अनुभव परिमाण नुपेक्षा १२. अतिथिसंवि० हरितविधान हरित-निधान मात्सर्य अनादर अस्मरण सल्लेखना जीविताशंसा मरणाशंसा भय मित्रानुराग निदान उक्त वर्गीकरण रत्नकरण्ड-वर्णित अतिचारोंको निश्चित किया हुआ न मान लेवें। किन्तु इस वर्गीसामने रखकर किया गया है, क्योंकि वे अतिचार करण पर खूब विचार करें और जिन्हें जो भी नया मुझे सबसे अधिक युक्तिसंगत प्रतीत हुए हैं। विचार उत्पन्न हो, वे उसे अनेकान्तमें प्रकाशनार्थ अन्तमें पाठकोंसे और खास तौर पर विद्वानोंसे भेजें, या व्यक्तिगत रूपसे मुझे लिखें । उनके यह नम्र निवेदन कर देना आवश्यक समझता हूँ कि विचारों और सुझााँका सादर स्वागत किया वे मेरे द्वारा किये गये वर्गीकरणको अन्तिम रूपसे जायगा।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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