SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनअन्य प्रशस्तिसंग्रह [१८१ बाएसरि-कीसा-सरपवास, पर पडमचरिउ ति सु-कइसेदु, एचबासि महाकई मुणि-पयास । हब अवर जायबर पखारवेतु । सुभ-पवण-हुविय-कुमय-रेणु, पत्ता-चउमुह दोणु सयंभुकइ पुष्फतु पुणु वीरु भणु का-चावहि-सिरि धीरसेणु । ते गाण-मणि-उज्जोय-कर हउ दीवोवमु होणु-गुण ॥८॥ महि-मंडलि वरिण विधुहवंदि, ६ शिसुणिवि वासाहरु जपह, वापरण-कारि सिरि-देवणंदि । किंतुहं बुह चिताउलु संपह। जइणेद यामु जाया-दुसन्तु, जइ मयंकु किरणहिं धवनइ भुवि, किड जेण पसिद्ध स-बायबन्तु। तो खजोड ण छह णिय-छवि । सम्मत्तारू युसु राबभम्बु, बह खयराउ गयणे गमु साह, दंसह-पमाणु बरु स्यड कम्यु। तो सिहति किं शिव-कमु वजह । मिरि बन्जसूरि गणि गुण-दिहाणु, जह कप्पतरु बमिय फल कप्पा, विस्यड मह छंदसण-पमाणु । तो किं तह लाइ थिय संपह। महासेण महामई विउ समहिल, बसुजेत्तिड मइ-पसह पबछ, पण गाम सुलोयणचरित कहिउ । सो तेत्तिउ परस्यले पयछ। रविसेणे पठमचरित्तु वुत्तु, इय णिसुणिवि संघाहिव वुत्तर, जिणसेणें हरिवंसु वि पवित्त । करणा धणवालेण पउत्तड। मुणि डिलि जहत्त-णिवारणत्यु, xxx इयमिरि-बाहुबलि-देन-चरिए सुहडदेव-तणय-युह धणणं वरंगुचरिउ खंडणु पयत्यु । बाल-विरइए, महाभम्व-वासर-णामीकए सेणियरायदियरसेणे कंदप्पचरिउ, समवसरणा-समागमो वणणो णाम पढमो परिमो वित्थरिय महिहिणव-रसह भरिट । समतो ॥ संधिः ॥ जिण-पासचरिउ भइसयवसेण, पन्तिमो भाग:विरयउ मुणिपुगव-पउमसेण । अमियाराहण विरहय विचित्र, जंबुदीव-भरद्द-वर-संतरि, गणि अंबसेण भव-कोस-चत्त । गिरि-सरि-सीमाराम-णिरंतरि । चंदप्पहचरिउ मणोहिरामु, अंतरवेइ मज्झि धरिबउ, मुणि विएहुसेण किउ धम्म-धामु । सहं काविट्ठविमउ मु-पसिद्धड। धणयत्तचरिउ चउवाग रु, वीर-खाणि उप्पत्ति पवित्तउ, भवरेहि विहित णाणापयार। सूरीपुरु जण-परिपालंतउ । मुणि सीहणंदि सहत्य वासु, सूरसेणु णरवइ तहोणंदणु, अणुपेहा-कय-संकप्प-णासु। अंधय-विदिठ-राउ रिउ-महणु । णवयारणेहु णरदेव वुत्त, तहो पइवय पिय-पाण-पियारी, कह असग विहिड वीरतो चरित्त । णाम सुभद्दा देवि भडारी। सिरि-सिद्धसेण पवयण विणोड, दस-दमार तहिं पांदण जाया, जिसेणें विरह आरिसेन (भारिसोर) वोर-वित्ति तिहुण-विक्खाया। गोविंदकइ दंसण-कुमार, सायर-विजउ पढमु उविणीयउ, कह-यण-समुदो लद्ध-पारु । पुणु अक्खोडु णाम हुआ बीयउ । जयधवलु सिद्ध-गुण-मुगिड तेड, तइयउ अमियामउ सिरिवल्लहु, सुप सालिहत्थु कह जीव देव । पुणु हिमवंतु तुरिउ जाणहु दुल्लहु ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy