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________________ किरण ६] पुराने साहित्यकी खोज [१७५ ७४ चन्दामाला, ७५ चक्का, ७६ हाटक्की, ७७ धूमा, टगणो तेरह भेओ भेया अट्ठाइ होति ठगणस्स। ७८ तक्का, ७६ खण्डा, ८० खण्डलया ८१ कम्बलया, डगणस्स पंच भेया तिब्भेया होंति ढगणस्स ||१|| ८२ धवलंगा, ८३ बिम्बा, ८४ दम्बलिया। ग्रन्थके अन्त में 'बलिया छन्दका लक्षण देकर ग्रन्थइन नामोंके अनन्तर कुछ गाथाएँ दी है जिनमें पिंगल- समाप्ति-सूचक जो वाक्य दिया है वह इस प्रकार है:भाषित ८४ रूपोंके लक्ष्य-लक्षण भेदसे कथनकी प्रतिज्ञा तीसधुवमत्तय एरसजुत्तय पंडियलोय चवंति णरा। करते हुए पहले छन्दशास्त्र-सम्बन्धी नियमों और गणोंके विस्सामयटिट्ठिय एरसदिट्ठिय पायहसिट्ठिय तिएिणघरा भेदों-उपभेदों आदिका कुछ विस्तारके साथ वर्णन दिया है दासप्पढमंचियअट्ठतहचियचउदह तिरिणविकियणिलय और फिर 'साडा' प्रादि उपर्यत छन्दोंके लक्षणात्मक जो एरिसछंदय सेसफणिंदय सो जागेमश्चय डबलिय। स्वरूप दिये हैं। किसी-किसी छन्दके उपभेदोंका उल्लेख इति डंबलियाछंदः समाप्तः । इति पिंगलस्य चतुकरके उनके भी स्वरूप साथमें दिये हैं और जहां कहीं रशातिरूपकाः समाप्ताः । छन्दका उदाहरण अलगसे देनेको रूरत पड़ी है वहाँ इस तरह यह इस ग्रन्थका संक्षिप्त परिचय है। चंदोंअलगसे उदाहरण दिये हैं और कहीं एकसे अधिक भी की संख्या और उनके लक्षणादिको देखते हुए प्रन्थ अच्छा उदाहरण दिये हैं। साथ ही जगह-जगह पिंगलके अनुसार महत्वपूर्ण एवं उपयोगी जान पड़ता है और अनुवादादिके कथनकी बात कही गई है। एक स्थान पर 'उवचूलिउ' साथ प्रकाशित किए जानेके योग्य है, जिससे प्राकृत और छन्दका उल्लेख करते हुए उसके निर्माता कवि रल्हका अपन शके साहित्यकी श्रीवृद्धि हो सके। भी उल्लेख किया है। जैसा कि निम्न पद्यसे प्रकट है :- १३. विधवा-शील-संरचणोपाय दोहा छंद वि पढम पढि दह दह कल संजुत्त उक्त ४१४ वर्ष पहलेके लिखे हुए गुटकेमें एक स्थान सुअठ सवि मत्त दइ। (पत्र ७६,८०) पर दस गाथाएँ दी हुई हैं जिनमें विधउवचूलिउ बुहियण सुणहु हियण सुणहु गुरु गण मुण सजुत्तवाओंके शीलकी संरक्षाका सुन्दर उपाय बतलाया गया है। जंपेइ रल्ह कइ॥ ये गाथाएँ परस्पर सम्बद्ध एक ही प्राचार्यकी कृति जान इस ग्रन्थके मंगलाचरणके दो पद्य इस प्रकार हैं- पढ़ती है और इसीसे इस गाथा-समूहको यहां 'विधवाजा विज्जा चउराणोण सरिसा जा चउभुए संभुणा शील-मंरक्षणोपाय' नाम दिया गया है। इन गाथाओंमें जा विज्जाहर-जस्व-किन्नरगणा जा सूर-इंदाइया। विधवाओंके आचरण-सम्बन्धी भारतकी प्राचीन संस्कृति जा सिद्धाण सुराणराण कइणा जा धूवयं निश्चयं सन्निहित है, उसकी जानकारी के लिये इन्हें यहां पूरा ही सा अम्हाण सुहाण एव विमला वाणी सिरी भारया उदरत किया जाता है। आजकल भारतकी संस्कृति तो जो विविह-सत्थसायर पा-पत्तो सविमलजल-हेलं। महिलाओं के सम्बन्धमें कुछकी कुछ हो गई है और होती पढणब्भासतरंडो नाएसो पिंगलो जयउ ॥२॥ जा रही है। किसीको भी शील-संरक्षाकी कोई चिन्ता ही इनमेंसे पहले पद्यमें विमला वाणी श्रीभारतीका नहीं रही है। वे गाथाएँ इस प्रकार हैंस्मरण और दूसरेमें नागेश पिंगलका जयघोष उनकी (गाथा) स्तुतिको लिए हुए किया गया है। इन पद्योंके अनन्तर पुरिसेण सह सहासं संभासं वत्तकरणमेगते । 'अथ चउरापी-रूपक-नामानि' वाक्य देकर उन ८४ छन्दोंके एगट्टाणे सयणासणाई परिकठाणं च ॥१॥ नाम दिये हैं जिन्हें उपर उधत किया जा चुका है। उनके परिसस्सवालविवरण-अंगोहलि एहाण-मलणमभंगो अनन्तर जो पद्य ५४ छन्दोंके लक्षणारम्भसे पहले दिए हैं दिट्ठीह दिट्टिबधो विलवणं चलण धुवणं च ॥२॥ उनमेंसे प्रारम्भके दो और अन्तका एक पद्य इस प्रकार है:'चउरासीरूवा जं वृत्ता लक्खण-लक्खेण संजुत्ता। तबाल कुसुम-कम का तंबोल-कुसुम-कुंकम कप्पूर सुरहि तिल्ल-कत्यूरी। चउरासी रूवा भावाणं पिंगलु-नामेइ पावाणं ॥११॥ केस-सरीर नियसण-वासणमेलाइसिरिखंड ।।३।। गुरु जुवकन्नं गुरु अंतकरलयं पयोहरम्मि गुरुमज्मे नह-दंत-अलय-सीमंत-केस-रोमाण तह य परिकम्म। श्राइगुरूणं चलण विप्पो सम्वेसु लहुएसु ।।२।। अच्चतमुञ्चम्मिल्लबंधणं वेणिबंधं च ॥४॥
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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